November 22, 2024 |

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आखिरकार जयसिंह अग्रवाल ने ले ही लिया विधानसभा में अपनी हार का बदला !

रक्षा बंधन पर टूटे रिश्तों की राजनीति: जयसिंह अग्रवाल का पतन और लखनलाल देवांगन का उदय

Gram Yatra Chhattisgarh
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कोरबा : विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद तिलमिलाए जयसिंह अग्रवाल ने अपनी हार का बदला उन बहनों से लिया है जो सालों से उनके लिए राखी लेकर पहुंचती थी लेकिन अपनी बौखलाहट में जयसिंह ने हार का जिम्मेदार शहर की महिलाओं को मानते हुए उनसे इस बार रक्षासूत्र न बंधवाने का निर्णय लिया। इधर शहर विधायक और उद्योग-श्रम मंत्री लखनलाल देवांगन ने महिलाओं से किये अपने वादे को निभाते करीब 10 हजार से अधिक बहनों से खड़े होकर अपनी कलाई पर न केवल राखी बंधवाई बल्कि उनके हर सुख-दुःख में खड़े रहने के अपने संकल्प को वापस से दोहराया है। लखन को न केवल कोरबा शहर के हर वार्ड की बहनों का आशीर्वाद मिला बल्कि कटघोरा विधानसभा से भी पहुंची बहनों ने अपना प्रेम राखी के रूप में उनको दिया है।

रक्षा बंधन का पर्व, जो भाई-बहन के बीच अटूट प्रेम और विश्वास का प्रतीक माना जाता है, इस बार कोरबा शहर में एक नया मोड़ ले आया है। विगत 15 वर्षों से पूर्व राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने कोरबा की गरीब बहनों से अपने कलाई पर राखी बंधवाकर इस पवित्र बंधन को निभाया था। हर साल की तरह बहनें इस वर्ष भी अपने भाई की कलाई पर राखी बांधने की उम्मीद लगाए बैठी थीं, लेकिन इस बार उन्हें निराशा हाथ लगी।

जयसिंह अग्रवाल, जो कि हाल ही के विधानसभा चुनाव में हार का सामना कर चुके हैं, इस वर्ष अपने निवास या कार्यालय में रक्षा बंधन का आयोजन करने में विफल रहे। यह कदम उन गरीब बहनों के लिए बहुत बड़ा आघात साबित हुआ, जिन्होंने पिछले 15 वर्षों से जयसिंह अग्रवाल को भाई मानकर राखी बांधी थी। इस बार उनकी कलाई सूनी रह गई और दिलों में ठेस पहुंची।

यह घटना सवाल खड़े करती है कि क्या जयसिंह अग्रवाल का रक्षा बंधन के प्रति स्नेह और प्रेम वास्तव में सच्चा था, या वह केवल एक राजनीतिक हथकंडा था? क्या यह पवित्र बंधन भी सिर्फ राजनीति के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा? जब सत्ता हाथ से गई, तो क्या अपने बहनों के साथ वह भावनात्मक संबंध भी खत्म हो गया?

इस पूरे घटनाक्रम में एक और नाम उभर कर सामने आया, और वह है उद्योग मंत्री लखनलाल देवांगन का। लखनलाल देवांगन ने अपने सरकारी आवास पर रक्षा बंधन का आयोजन किया, जहां उन्होंने न केवल अपनी कलाई पर राखी बंधवाई, बल्कि कोरबा की बहनों को यह विश्वास दिलाया कि वह हमेशा उनके साथ खड़े रहेंगे। इस कदम ने जनता के दिलों में लखनलाल देवांगन की छवि को और भी मजबूती दी। उन्होंने यह दिखा दिया कि राजनीति के बीच भी मानवीय संबंधों की अहमियत है और वह अपने वादों को निभाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

लखनलाल देवांगन का यह कदम केवल एक सादगी भरा आयोजन नहीं था, बल्कि यह जनता से जुड़े रहने का एक संदेश भी था। उन्होंने अपनी बहनों से राखी बंधवाकर न सिर्फ अपनी राजनीतिक समझदारी का परिचय दिया, बल्कि यह भी साबित किया कि वह सत्ता की दौड़ में जीतने के बाद भी जनता से कटे नहीं हैं। यह एक ऐसा अवसर था जहां लखनलाल ने जनसंपर्क और विश्वास को अपने पक्ष में किया, जबकि जयसिंह अग्रवाल के पास इस बार का रक्षा बंधन मानो उनके राजनीतिक पतन की कहानी कह रहा था।

इस घटना के बाद जयसिंह अग्रवाल की आलोचना होना स्वाभाविक था। कोरबा के लोग, खासकर वह बहनें जिन्होंने उन्हें इतने सालों तक राखी बांधी, खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही हैं। उनकी नजरों में जयसिंह अग्रवाल का यह कदम न केवल एक भावनात्मक धोखा था, बल्कि यह भी साबित करता है कि जब राजनीति का स्वार्थ पूरा हो जाता है, तो संबंधों का मूल्य कुछ नहीं रह जाता।

दूसरी ओर, लखनलाल देवांगन ने यह साबित कर दिया कि राजनीति में भी भावनाओं की अहमियत होती है। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि कोरबा की बहनें खुद को अकेला न महसूस करें। उन्होंने राखी बंधवाकर एक बार फिर यह साबित किया कि राजनीति का असली मकसद जनता की सेवा करना है, न कि केवल सत्ता पाना।

कोरबा की जनता के बीच इस पूरे घटनाक्रम ने एक गहरा असर छोड़ा है। जयसिंह अग्रवाल, जिन्होंने इतने सालों तक बहनों के साथ रक्षा बंधन का पवित्र संबंध निभाया, अब एक ऐसे नेता के रूप में उभरकर सामने आए हैं, जो सत्ता के बिना अपने पुराने संबंधों को भी निभाने में असफल रहे। वहीं, लखनलाल देवांगन ने अपने सादगी और जनसेवा के प्रति समर्पण से खुद को जनता का सच्चा हितैषी साबित किया है।

आखिर में, यह कहना गलत नहीं होगा कि कोरबा की जनता ने इस बार एक नेता के खोखले वादों और दूसरे के जनसेवा के प्रति सच्चे संकल्प का फर्क स्पष्ट रूप से देखा है। जयसिंह अग्रवाल जहां जनता की नजरों में एक विलेन बनकर उभरे हैं, वहीं लखनलाल देवांगन ने खुद को कोरबा के हीरो के रूप में स्थापित किया है। यह घटना स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि राजनीति में केवल सत्ता ही नहीं, बल्कि जनसेवा और भावनात्मक जुड़ाव का भी महत्व होता है।

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