आईएएस संजीव झा की कथा – भाग 4: करोड़ों का खर्च, स्मार्ट आंगनबाड़ी का दावा और पोषण में बढ़ोतरी का सपना – मगर हकीकत कुछ और!
दिव्या उमेश मिश्रा, जो 2012 बैच की प्रमोटी आईएएस हैं, जबकि संजीव झा 2011 बैच के डायरेक्ट आईएएस हैं। साथ ही, रानू साहू 2010 बैच की वरिष्ठ आईएएस हैं। संजीव झा के कार्यकाल में अधिकतर वेंडरों ने रानू साहू के समय ही काम करना शुरू किया था, और शायद यही वजह रही कि जांच की मांग आगे नहीं बढ़ पाई।
कोरबा। भूपेश सरकार के कार्यकाल में आईएएस संजीव झा को कई अहम पोस्टिंग्स मिलीं। उत्तर से लेकर मध्य छत्तीसगढ़ तक, जहां भी संजीव झा ने कलेक्टरी की, उन पर आरोपों की बौछार हुई। सरगुजा, कोरबा और बिलासपुर जैसे जिलों में कलेक्टर रहने के बाद उन्हें ठीक विधानसभा चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग द्वारा हटाया गया, जिससे उनकी रायपुर वापसी हुई।
संजीव झा के कोरबा में कलेक्टर बनने से पहले यहां रानू साहू कलेक्टर थीं, जिनके कार्यकाल में हुई अनियमितताओं की परतें अब खुलने लगी हैं। लेकिन संजीव झा ने अपने कार्यकाल में न केवल इन मामलों को ढकने का प्रयास किया, बल्कि खुद भी इस प्रवाह में गहराई से जुड़ गए। नतीजा ये कि ठेकेदारों और सप्लायरों के लिए मानो ‘सोने की खान’ खुल गई थी। आरोप है कि नियमों को ताक पर रख कर करोड़ों का वितरण हुआ और साथ ही साथ अधिकारियों को संरक्षण भी मिला, जिस कारण अधिकारियों ने भी स्वामी भक्ति मे गलत जानकारी देने से भी परहेज़ नहीं किया। जब महिला बाल विकास विभाग के संचालक ने इस पर कार्रवाई के लिए पत्र लिखा, तो उसे भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
महिला बाल विकास विभाग में डीएमएफ फंड का दुरुपयोग
महिला बाल विकास विभाग में डीएमएफ (जिला खनिज न्यास निधि) फंड का दुरुपयोग हैरतअंगेज था। भाजपा नेता और दबंग विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने जब कोरबा समेत आसपास के जिलों में डीएमएफ से खरीदी गई सामग्री और प्रक्रियाओं का ब्योरा मांगा, तो विभाग के अधिकारी जवाब देने से कतराते रहे। 5 जनवरी 2023 तक विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी ने जानकारी नहीं भेजी, फिर 20 जनवरी को कलेक्टर संजीव झा के हस्ताक्षर से संचालक महिला बाल विकास विभाग को एक बेमेल जवाब भेजा गया। इसके बाद संचालक दिव्या उमेश मिश्रा ने फिर 24 जनवरी को निर्देश दिया कि सूचना को दुरुस्त कर दोबारा भेजा जाए।
बदलते आंकड़े और टालमटोल की रणनीति
जब दूसरी बार जानकारी भेजी गई, तो उसमें पहली के मुकाबले आंकड़े बदल चुके थे। महिला समूहों से खाद्य सामग्री की खरीदी में कई नियमों का उल्लंघन हुआ था। सामग्री की खरीदी कोटेशन के आधार पर की गई, लेकिन जेम पोर्टल और टेंडर प्रक्रिया का जिक्र किया गया। संचालक मिश्रा ने जांच कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
सीनियरिटी की दीवार और जांच में अड़चनें
दिव्या उमेश मिश्रा, जो 2012 बैच की प्रमोटी आईएएस हैं, जबकि संजीव झा 2011 बैच के डायरेक्ट आईएएस हैं। साथ ही, रानू साहू 2010 बैच की वरिष्ठ आईएएस हैं। संजीव झा के कार्यकाल में अधिकतर वेंडरों ने रानू साहू के समय ही काम करना शुरू किया था, और शायद यही वजह रही कि जांच की मांग आगे नहीं बढ़ पाई।
कोरबा में अंबिकापुर के व्यापारियों की बढ़ती आमदरफ्त
संजीव झा के कार्यकाल में अंबिकापुर के व्यापारियों की कोरबा में लगातार बढ़ती आमदरफ्त और बड़े प्रोजेक्ट्स में उनकी मौजूदगी ने सवाल खड़े किए हैं। रानू साहू और संजीव झा के कार्यकाल में डीएमएफ फंड से महिला एवं बाल विकास विभाग में बड़े स्तर पर काम हुए और ठेकेदारों को कई तरह की रियायतें दी गईं।
स्मार्ट आंगनबाड़ी और बदहाल स्थिति का विरोधाभास
करोड़ों रुपये के बजट के बाद भी कोरबा की आंगनबाड़ी केंद्रों में कोई खास सुधार नहीं दिखा। स्मार्ट आंगनबाड़ी का दावा किया गया, लेकिन हकीकत में इनमें लगाए गए आरओ (शुद्ध पानी की मशीनें) धूल खाते रह गए क्योंकि कई जगह बिजली तक नहीं थी। महिला समूहों के नाम पर केवल कागजी खानापूर्ति हुई, जबकि ठेकेदारों ने सारा काम अपने कब्जे में ले लिया। करोड़ों की सप्लाई का नियंत्रण दलालनुमा ठेकेदारों के हाथों में था।
आइए जानते हैं इन सभी योजनाओं का ब्योरा:
1. स्मार्ट आंगनबाड़ी केंद्रों का निर्माण
- कंपनी: क्लिफ्को
- कुल केंद्र: 3,857 आंगनबाड़ी केंद्रों का निर्माण स्मार्ट आंगनबाड़ी के रूप में किया गया।
- प्रति केंद्र खर्च: प्रत्येक आंगनबाड़ी केंद्र पर औसतन ₹1,15,000 खर्च किए गए।
- कुल व्यय: ₹44,81,55,000 की लागत से इन केंद्रों का निर्माण हुआ।
- उद्देश्य: स्मार्ट आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से बच्चों की शिक्षा और पोषण में सुधार लाना।
2. नवजात शिशु और गर्भवती महिलाओं के उत्थान के लिए सहायता
- लाभार्थियों की संख्या: 21,482 नवजात शिशु और गर्भवती महिलाएं इस योजना का लाभ प्राप्त कर रही हैं।
- प्रति लाभार्थी भुगतान: प्रति लाभार्थी को ₹7,254 की दर से सहायता प्रदान की गई।
- वितरण कंपनी: गणपति इंटरप्राइजेज, अंबिकापुर को इस सहायता राशि का भुगतान किया गया।
- कुल खर्च: इस योजना पर ₹15,58,30,428 खर्च किए गए हैं।
- उद्देश्य: गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य एवं पोषण में सुधार करना।
3. शुद्ध पेयजल व्यवस्था
- केंद्रों की संख्या: राज्य के 1,000 केंद्रों में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था की गई।
- प्रति केंद्र भुगतान: शिव शक्ति ट्रेडर्स, अंबिकापुर को प्रत्येक केंद्र के लिए ₹29,998 की दर से भुगतान किया गया।
- कुल खर्च: इस व्यवस्था पर ₹2,99,98,000 खर्च किए गए हैं, जिसमें ₹2,000 की बचत भी की गई है।
- उद्देश्य: आंगनबाड़ी केंद्रों में शुद्ध पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करना, जिससे बच्चों और महिलाओं का स्वास्थ्य बेहतर हो।
4. मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान के अंतर्गत पूरक आहार वितरण
- योजना का फोकस: मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान के अंतर्गत गर्भवती महिलाओं को अतिरिक्त पूरक आहार प्रदान किया गया।
- बच्चों के लिए योजना: बच्चों के पोषण के लिए प्रबल योजना के तहत विशेष आहार दिया जा रहा है।
- कुल खर्च: इस योजना पर ₹1,97,48,177 खर्च किए गए हैं।
- उद्देश्य: गर्भवती महिलाओं और बच्चों के पोषण स्तर में सुधार लाकर उनकी सेहत में बेहतरी लाना।
यह केवल चुनिंदा नाम है जबकि काम यहां इन ठेकेदारों ने भी जमकर किया है।
- राधा कृष्णा इंडस्ट्रीज, राजनांदगांव – बर्तन क्रय हेतु
- सांई बाबा एजेंसी, राजनांदगांव – फर्नीचर क्रय हेतु
- नमो इंटरप्राइजेज, रायपुर – फर्नीचर क्रय हेतु
- नीतिराज इंटरप्राइजेज, नागपुर – वजन मशीन क्रय हेतु
- शिव इंडस्ट्रीज, राजनांदगांव – बर्तन क्रय हेतु
- मेसर्स श्री राम इंडस्ट्रीज, लिंक रोड, जांजगीर-चांपा – फर्नीचर क्रय हेतु
- राकेश रेस ट्रेडलिंग प्राइवेट कंपनी, रायपुर – आंगनबाड़ी सुदृढ़ीकरण हेतु
- शोर्या सप्लायर, ब्रम्हरोड, अंबिकापुर – मॉड्यूलर अनाज रैक हेतु
इस पूरे खेल के दौरान कोरबा में जिला कार्यक्रम अधिकारी आनंद प्रकाश किस्पोट्टा, उनके कथित खास सिपहसलाहकार मनोज अग्रवाल, जिला कार्यक्रम अधिकारी एम. डी. नायक, सीडीपीओ गजेन्द्र देव सिंह जो अभी कोरबा में ही है। वहीं विभाग के सहायक ग्रेड 3 और डीएमएफ शाखा प्रभारी शिव प्रसाद शर्मा मुख्य किरकार में रहे है।
संजीव झा और रानू साहू के कार्यकाल में उनकी नाक के नीचे डीएमएफ फंड का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हुआ और महिला बाल विकास विभाग की योजनाओं में भ्रष्टाचार की परतें अब सामने आ रही हैं। कई सवाल उठ रहे हैं कि किस तरह से नियमों की धज्जियां उड़ाई गईं और करोड़ों का सरकारी फंड वास्तविक सुधार की बजाय कागजों में ही खत्म हो गया।
आगे की कड़ियों में संजीव झा के कार्यकाल के दौरान किए गए विवादास्पद कार्यों का और भी खुलासा होगा। हम आपको करोड़ो के सीसीटीवी की दास्तान और उस ठेकेदार का कनेक्शन भी बतायेंगे पढ़ते रहिए ग्राम यात्रा छत्तीसगढ़
नमस्कार
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