एशिया के सबसे बड़े कोयला खदान गेवरा में मजदूरों की जान से खिलवाड़ बन्द हो , सांसद प्रतिनिधि मसीह ने खान सुरक्षा महानिदेशालय को की विस्तृत शिकायत

वर्ष 2025 में 5 मजदूरों की मौत, सांसद प्रतिनिधि शेत मसीह ने डीजीएम्एस महानिदेशक को भेजा 5 पृष्ठों का विस्तृत शिकायत-पत्र ।
उच्च-स्तरीय स्वतंत्र जाँच, अधिकारियों के तबादले, पर्यावरण उल्लंघन पर आर्थिक जुर्माना और मृतकों को पचास लाख अतिरिक्त मुआवजा देने की मांग ।
कोरबा। कोल इंडिया की सहायक कंपनी एसईसीएल द्वारा संचालित गेवरा ओपन- कास्ट खदान (70 मिलियन टन सालाना उत्पादन क्षमता, एशिया की सबसे बड़ी खदान) पिछले एक साल से लगातार मौत का तांडव देख रही है ।
चालू वर्ष 2025 में अब तक यहाँ पाँच मजदूरों की जान जा चुकी है और कई गंभीर रूप से घायल हुए हैं। मिट्टी धंसने, बिजली का करंट, मशीन पलटने , ट्रेलर-लोडर टक्कर जैसी घटनाएँ आम हो गई हैं।
मारे गए मजदूरों का पूरा विवरण:
1. 27 मई 2025 – मिट्टी धंसने से दो व्यक्ति दबकर मरे विश्वास यादव (18 वर्ष) और धन सिंह कंवर (24 वर्ष)
2. 19 मई 2025 – बिजली का करंट लगने से हीरालाल (35 वर्ष)
3. 23 जुलाई 2025 – ड्रिल मशीन रिवर्स करते समय कुचलकर राजन राणा (25 वर्ष, )
4. 09 अक्टूबर 2025 – ट्रेलर पलटने से सानुप तिग्गा (30 वर्ष)
5. 26 अक्टूबर 2025 – लोडर और मालगाड़ी की भिड़ंत में जमुना विश्वकर्मा
इन सभी मामलों में खान सुरक्षा महानिदेशालय की जाँच या तो पूरी हो चुकी है या चल रही है, लेकिन प्रबंधन और दोषी अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई । खाना पूर्ती के लिए निचले अधिकारियों अथवा लिपिक स्तर के कर्मचारियों का स्थानांतरण मात्र किया जा रहा है ।
कोरबा लोकसभा के सांसद प्रतिनिधि (पर्यावरण विभाग) एवं वरिष्ठ आरटीआई कार्यकर्ता श्री शेत मसीह ने आज खान सुरक्षा महानिदेशालय (DGMS), धनबाद के महानिदेशक को 05 पन्नों का विस्तृत शिकायत-पत्र ई-मेल एवं स्पीड पोस्ट से भेजा है। पत्र में दुर्घटनाओं के पाँच प्रमुख कारणों का गहराई से विश्लेषण किया गया है और हर कारण के साथ सबूत व कानूनी प्रावधानों का उल्लेख है।
शिकायत-पत्र में बताए गए पाँच मुख्य कारण:
1. पर्यावरण नियमों की खुली धज्जियाँ छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल की नवीनतम परिचालन सहमति (CTO क्रमांक 11437/TS/CECB/2025, दिनांक 04.03.2025) में साफ लिखा है कि कोयला केवल तारपोलिन से ढंके टिप्परों में ही ले जाया जाएगा और 15 कैनन फॉग मशीनें चौबीस घंटे चलनी चाहिए। लेकिन प्रबंधन खुले टिप्परों से कोयला ढो रहा है।
AAQMS स्टेशनों के आसपास जानबूझकर पेड़ लगाकर और ऊँचे ढाँचे बनाकर वायु प्रदूषण के रियल-टाइम डेटा में हेराफेरी की जा रही है। इससे धूलजनित बीमारियाँ और प्रदुषण एवं दुर्घटनायें बढ़ रही हैं एवं वायु गुणवत्ता के रियल टाइम डाटा से खिलवाड़ कर पर्यावरण मंत्रालय , जिला प्रशासन , छत्तीसगढ़ राज्य पर्यावरण मंडल और केन्द्रीय प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड को भ्रामक जानकारी देते हुए खदान विस्तार एवं संचालन किया जा रहा है ।
2. संवेदनशील पदों पर 10-11 साल से जमे अधिकारी – भ्रष्टाचार का गढ़ डिस्पैच इंचार्ज, लोडिंग इंस्पेक्टर, टेक्निकल इंस्पेक्टर जैसे संवेदनशील पदों पर वर्षों से एक ही अधिकारी बैठे हैं, जो कोल इंडिया की स्थानांतरण नीति का खुला उल्लंघन है। उदाहरण: पिछले 10-11 साल से डिस्पैच इंचार्ज का काम एक ही अधिकारी कर रहे हैं, भले कागजों में उनका पद बदलता रहता हैं। ऐसे अधिकारियों की मिलीभगत से अनुशासनहीनता और लापरवाही बढ़ रही है ।
3. खदान में सैकड़ों अप्रशिक्षित-अनधिकृत लोगों का प्रवेश रोड सेल के नाम पर बिना वीटीसी ट्रेनिंग और बिना अनुमति वाले सैकड़ों युवक दिन-रात खदान के अंदर घूम रहे हैं। इनको पास जारी करने में रोड सेल और सुरक्षा विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत है। ये लोग भारी मशीनों के आसपास रहते हैं, जिससे खुद की और दूसरों की जान खतरे में रहती है।
4. दुपहिया और भारी वाहनों के लिए एक ही सड़क खदान परिसर में बाइक-साइकिल और 60-100 टन के डंपर एक ही सड़क पर चलते हैं। बहुत कम जगह पर अलग छोटी गाड़ियों के लिए अलग रोड है, क्रॉसिंग पर अंडरपास-ओवरब्रिज नहीं हैं, सड़कों की नियमित मरम्मत नहीं होती। यही कारण है कि टक्कर और पलटने की घटनाएँ बढ़ रही हैं।
5. क्षमता से दो गुना ज्यादा टिप्परों का प्रवेश – टोकन सिस्टम में भयंकर भ्रष्टाचार खदान की निर्धारित क्षमता से कई गुना ज्यादा टिप्परों को एक साथ अंदर घुसने दिया जा रहा है। टोकन सिस्टम पूरी तरह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुका है। इससे भीषण ट्रैफिक जाम, ओवरलोडिंग और टक्करें हो रही हैं।
शेत मसीह ने खान सुरक्षा महानिदेशालय से की ये पाँच बड़ी माँगें:
1. IIT/NIT के माइनिंग विशेषज्ञों और DGMS के वरिष्ठ अधिकारियों की स्वतंत्र उच्च-स्तरीय सुरक्षा जाँच टीम तुरंत गठित की जाए।
2. टिप्परों की अधिकतम संख्या पुनः निर्धारित कर टोकन सिस्टम को पूरी तरह कम्प्यूटरीकृत और CCTV से जोड़ा जाए।
3. तीन साल से अधिक समय से एक ही संवेदनशील पद पर बैठे सभी अधिकारियों – कर्मचारियों का तुरंत तबादला हो और रोटेशन नीति सख्ती से लागू हो।
4. पर्यावरण नियमों (तारपोलिन, धूल दमन, सड़क मरम्मत) की 15 दिन में स्वतंत्र जाँच हो; उल्लंघन पर खदान का परिचालन तुरंत निलंबित हो और भारी पर्यावरणीय जुर्माना वसूला जाए।
5. मारे गए सभी मजदूरों के परिवारों को 50-50 लाख रुपये का विशेष अनुग्रह मुआवजा और एक-एक आश्रित को एसईसीएल में स्थायी नौकरी दी जाए।
शेत मसीह ने कहा – “गेवरा खदान देश को कोयला दे रही है, लेकिन यहाँ मजदूरों की जान की कीमत शून्य हो गई है। यह दुर्घटनाएँ नहीं, प्रबंधन और अधिकारियों की संगठित लापरवाही और भ्रष्टाचार से हो रही हत्याएँ हैं। अगर अभी नहीं सँभलते हैं तो निकट भविष्य में और कई परिवार बर्बाद हो जाएँगे।”
शिकायत की प्रतिलिपि माननीया सांसद श्रीमती ज्योत्स्ना चरणदास महंत को भी आवश्यक कार्रवाई हेतु भेजी गई है ।

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