छत्तीसगढ़

कोरबा विधानसभा के भाजपा विधायक लखन देवांगन को भी मिल सकता है छत्तीसगढ़ केबिनेट में जगह बनाएं जहां सकते हैं मंत्री,, राजनीतिक समीकरण से ये बड़ी संभावना….

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रायपुर-विष्णुदेव साय के मंत्रिमंडल में बिलासपुर संभाग का दबदबा रहने की पूरी संभावना है। अरुण साव अगर डिप्टी सीएम बनाए जाते हैं, तो बिलासपुर से अमर अग्रवाल और धरमलाल कौशिक में से एक को ही मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है। वहीं रायगढ़, कोरबा और मुंगेली जिले से भी मंत्री बनाए जा सकते हैं। जांजगीर-चांपा जिले को छोड़ दें, तो हर जगह से कैबिनेट में मंत्री पद के दावेदार हैं।

कांग्रेस सरकार के 5 साल के कार्यकाल में बिलासपुर उपेक्षित रहा। क्योंकि यहां पहली बार विधायक बनने वाले शैलेष पांडेय पूरे 5 साल विपक्षी विधायक की भूमिका में रहे, तो वहीं तखतपुर से पहली बार विधायक बनीं रश्मि सिंह को संसदीय सचिव का पद मिला। अब भाजपा की सरकार आते ही दिग्गज नेताओं के चुनाव जीतने पर एक बार फिर से मंत्रिमंडल में बिलासपुर जिले का रुतबा बढ़ेगा। अरुण साव छात्र जीवन से अखिल भारतीय परिषद के पदाधिकारी रहे। युवा मोर्चा में भी प्रदेश महामंत्री रहे। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद भाजपा सरकार के 15 साल के कार्यकाल में महत्वाकांक्षा को हावी होने नहीं दिया और वकालत करते रहे। पार्टी ने 18 साल बाद दोबारा राजनीति में उन्हें लॉन्च किया और साल 2019 में पहली बार बिलासपुर लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने। इसके बाद अगस्त 2022 में ओबीसी कार्ड खेलकर भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी।

क्यों है दावेदारी मजबूत ?

• मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे अरुण साव, विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद डिप्टी सीएम बनाए जा सकते हैं।

• अरुण साव के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रहते पूर्ण बहुमत से सरकार बनी।

बिलासपुर संभाग और साहू समाज और ओबीसी चेहरे के समीकरण में फिट बैठते हैं।

अमर अग्रवाल भाजपा के पितृपुरुष कहे जाने वाले दिवंगत नेता लखीराम अग्रवाल के बेटे हैं। अग्रवाल 1998 में पहली बार विधायक चुने गए। 4 बार के विधायक और 3 बार कैबिनेट मंत्री रहे हैं। पिछली चुनाव में हार के बाद इस बार रिकॉर्ड मतों से चुनाव जीतकर आए हैं। भाजपा सरकार के अनुभवी मंत्री रह चुके हैं।

क्यों है दावेदारी मजबूत ?

• पार्टी का पुराना और विश्वसनीय चेहरा हैं।

• बिलासपुर संभाग में अग्रवाल समाज से केवल एक ही नेता हैं।

• संघ और शीर्ष नेताओं के लगातार संपर्क में रहते हैं। अनुभव का लाभ मिल सकता है।

धरमलाल कौशिक (पार्टी का अनुभवी ओबीसी चेहरा)

धरमलाल कौशिक 1998 में पहली बार बिल्हा विधानसभा से विधायक चुने गए। 1998 के बाद वे 2008, 2018 और 2023 यानी 4 बार चुनाव जीतकर विधायक बने। कौशिक विधानसभा अध्यक्ष, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष जैसी जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। संघ और संगठन के बड़े नेताओं की पसंद हैं और ओबीसी वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले बड़े नेता हैं।

क्यों है दावेदारी मजबूत ?

• धरमलाल कौशिक भाजपा में ओबीसी (कुर्मी वर्ग) के बड़े नेता हैं।

विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर काम करने का अनुभव।

• संघ और संगठन के बड़े नेताओं के करीबी हैं, जिसका फायदा मिल सकता है।

ओपी चौधरी (प्रशासनिक अनुभव, ओबीसी फेस)

IAS की नौकरी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए ओपी चौधरी पिछला विधानसभा चुनाव हार गए थे। दोबारा रायगढ़ सीट से पार्टी ने मौका दिया और चुनाव जीत गए। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के चहेते हैं। सीएम पद की रेस में थे, लिहाजा उनका कैबिनेट मंत्री बनना तय माना जा रहा है।

क्यों है दावेदारी मजबूत ?

• ओबीसी वर्ग से आते हैं और युवा चेहरा हैं।

• आईएएस जैसे पद छोड़कर राजनीति में आने का लाभ मिल सकता है।

• प्रशासनिक अनुभव के आधार पर दावेदारी।

• प्रचार के दौरान केन्द्रीय मंत्री अमित शाह ने बड़ा आदमी बनाने का वादा किया था।

• राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की गुड बुक में हैं ओपी चौधरी।

धर्मजीत सिंह (अनुभवी चेहरा)

धर्मजीत सिंह वो नेता हैं, जिस पार्टी में गए वहां से चुनाव में जीत दर्ज की है। 5 बार के विधायक हैं। विधानसभा उपाध्यक्ष रह चुके हैं। इसके साथ ही उत्कृष्ट विधायक का पुरस्कार भी मिल चुका है। यह अलग बात

है कि भाजपा में नया चेहरा हैं।

क्यों है दावेदारी मजबूत?

• पांच बार के विधायक और संसदीय कार्य का अनुभव

• जिस पार्टी में गए, वहां से चुनाव जीतकर आए हैं।

• भाजपा संगठन के बड़े नेताओं के साथ ही रमन सिंह से अच्छे संबंध हैं।

पुन्नूलाल मोहले (SC वर्ग से पार्टी का बड़ा चेहरा, लंबा अनुभव)

पुन्नूलाल मोहले राजनीति के अपराजेय योद्धा हैं। चार बार सांसद और सात बार विधानसभा चुनाव जीतकर आए हैं। तीन बार के मंत्री रहे हैं। अनुसूचित जाति वर्ग के बड़े नेता हैं। संगठन में भी मजबूत पकड़ है।

क्यों है दावेदारी मजबूत ?

• पुन्नुलाल मोहले अनुसूचित जाति वर्ग के बड़े नेता हैं, जातिगत समीकरण के हिसाब से दावेदारी मजबूत है।

• सांसद और मंत्री पद का लंबा अनुभव रहा है।

• सहज, सरल और स्वच्छ छवि के नेता हैं।

लखनलाल देवांगन (पिछड़ा वर्ग और जिलेवार समीकरण में फिट)

कोरबा के कद्दावर मंत्री और तीन बार के विधायक जयसिंह अग्रवाल को हराकर विधानसभा चुनाव जीतकर आए हैं। इससे पहले कोरबा नगर निगम में मेयर रह चुके हैं। 2013 में भाजपा सरकार में कटघोरा सीट से चुनाव जीते थे और सरकार में राज्य मंत्री का दर्जा मिला था, तब संसदीय सचिव बनाए गए थे। इस बार कैबिनेट मंत्री की दावेदारी स्वाभाविक है।

क्यों है दावेदारी मजबूत?

• ओबीसी वर्ग से आते हैं और अनुभवी चेहरा हैं।

• जिले और जातिगत समीकरण की राजनीति में फिट हैं।

• सहज, सरल और स्वच्छ छवि के निर्विवाद नेता हैं।

• कोरबा नगर निगम में मेयर और विधायक बनकर राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त संसदीय सचिव रह चुके हैं।

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