कोरबा। शासन के नियमों के विपरीत पहले ही स्वयंभू तोड़ू दस्ता प्रभारी की मुहर लेकर घूम रहे नगर निगम के सब इंजीनियर योगेश राठौर ने तोड़ फोड़ के नाम पर खुद ही नियम तोड़ डाले। 8 माह पूर्व निर्दलीय पार्षद अब्दुल रहमान को शिकायत के बाद दुश्मन मान बैठे निगम के कथित अतिक्रमण प्रभारी ने गरीबों के आशियाने को तोड़ डाला। किसी ने कह दिया कि ये मकान पार्षद अब्दुल रहमान और पूर्व पार्षद संतोष राय का है। फिर क्या था दुश्मनी की आग में जल रहे निगम के भवन अधिकारी जो कि खुद को अतिक्रमण प्रभारी भी बताते है उन्होंने मकान के बाहर पहले तो रविवार को छुट्टी की शाम नोटिस चिपका आए, फिर अगले ही दिन, यानी सोमवार को आनन फानन में एक्सिवेटर लेकर कब्जा गिराने पहुंच गए। ऐसे में जबकि जिले में आदर्श आचार संहिता एक्टिव है, तोड़ू दस्ता प्रभारी ने कलेक्टर और निगम आयुक्त को अंधेरे में रखकर जो किया, उसे देखकर तो यही लगता है कि इसमें केवल और केवल बदले की कार्रवाई की गई है। यह कहने की वजह ये कि सब इंजीनियर योगेश राठौर ने अब्दुल रहमान और संतोष राय समेत जिसके नाम पर नोटिस निकाला था, उनका निर्माण तो यथावत है, लेकिन इन्हीं का समझ जिनके स्ट्रक्चर पर मशीन चलाया, वे गरीब पिछले दो साल से नगर निगम के नियमित रूप से करदाता हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने शासन के नियम अनुसार ही डेढ़ गुना दर पर भूमि क्रय करने व्यवस्थापन के लिए शासन के समक्ष बकायदा आवेदन भी कर रखा है। यानी इस बार भी कार्यवाही की गाज एक बार फिर केवल गरीबों पर ही गिरी। ऐसे में सब इंजीनियर राठौर और कोरबा तहसीलदार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठना लाजमी हो जाता है।
इस मामले में सबसे ज्यादा गौर करने लायक बात यह है कि पार्षद अब्दुल रहमान के नाम पर जो नोटिस जारी किया गया था, उस जगह पर निर्माण यथावत है।जबकि इस भूमि पर छत्तीसगढ़ शासन की योजना के अनुसार ही व्यवस्थापन नियम के अन्तर्गत बाजार मुल्य से डेढ़ गुना दर पर नजुल भूमि को खरीदी हेतु बकायदा आवेदन किया गया है। यह आवेदन आज भी प्रक्रियाधीन है। फिर ऐसा कौन-सा कारण था, जो सब इंजीनियर राठौर ने समस्त नियमों को ताक पर रखकर फौरी कार्यवाही की। अचरज तो यह है कि रविवार की शाम नोटिस जारी किया गया और सोमवार की दोपहर को तोड़ने की कार्यवाही कर दी गई। वैसे तो पूरे शहर में हजारों घर नजूल की भूमि पर बसा है, तो क्या शासन सब में कार्यवाही कर रही है या फिर निगम के इस अमले ने कुछ चुनीदा लोगों को चुन रखा है? भाजपा के सत्ता में आने से क्या अब यही होना है, कि आचार संहिता लागू रहते चुनाव के ठीक बाद बदले की कार्यवाही शुरू कर दी गई है? नोटिस जारी किया गया किसी दूसरे के नाम पर और मकान तोड़ दिया गया किसी गरीब परिवार का। ऐसे में यही स्पष्ट होता है कि पार्षद अब्दुल रहमान से द्वेष निकालने के चक्कर में नगर निगम ने योगेश राठौर ने किसी दूसरे का आशियाना धराशाई कर दिया।
सबूतों के साथ कलेक्टर-एसपी से हुई थी इनकी वसूली की शिकायत
नगर निगम के सब इंजीनियर और अतिक्रमण निरोधी दस्ते का प्रभार देख रहे योगेश राठौर अपनी विवादित कार्यप्रणाली के लिए पहले भी सवालों के घेरे में आते रहे हैं। इसे लेकर अधिवक्ता एवं पार्षद अब्दुल रहमान ने इनके खिलाफ शिकायत भी की थी। वे शासन के किस नियम के आधार पर तोड़ू दस्ता प्रभारी की सील मुहर का दुरुपयोग करते आ रहे हैं, जबकि स्वायत शाशि संस्था नगर पालिक निगम में यह पद ही सृजित नहीं है। इस विषय पर लीगल नोटिस भी भेजा गया था। तोड़ फोड़ के नाम पर भयभीत कर अवैध वसूली जैसी परेशानियों से जूझ रहे आम लोगों की सूचना पर ही यह शिकायतों पर तथ्य और सबूतों के साथ कलेक्टर, एसपी और निगमायुक्त से की गई थी। अपने खिलाफ हुई इन्ही शिकायतों की वजह से बदला लेने की नियत से सब इंजीनियर राठौर ने द्वेष पूर्ण यह कार्यवाही की, ऐसा प्रतीत हो रहा है।
कहीं किसी समुदाय विशेष को टारगेट और उद्योगपति को उपकृत करने की साजिश तो नहीं?
उल्लेखनीय बात यह भी है कि जिस जमीन को कब्जा मुक्त करवाया गया है, जिला प्रशासन ने उस पर धारा 89 के तहत कोरबा के एक उद्योगपति ने पहले ही आवेदन लगा रखा है। इससे इस बात को भी बल मिलता है कि कहीं सत्ता और प्रशासन मिलकर उद्योगपति को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से इस तरह के एपिसोड की साजिश तो नहीं रची जा रही है। सच तो यही है कि कोरबा के व्यापारी ने जिम्मेदार अधिकारियों से सांठ-गांठ कर एक नया खेल शुरू किया है। यही वजह है जो इस जगह से आम जनों के घर को नगर निगम और जिला प्रशासन के मदद से मुक्त कराने की कोशिश की गई। नगर निगम को हर साल टैक्स देने वाले उन लोगों शगुफ्ता परवीन वल्द मो. तंजीम, नसीमा खातून वल्द अख्तर अहमद और पवन शामिल हैं, जिन्होंने जल कर, बिजली बिल और निगम के संपत्ति कर जमा करने के पिछले माह की रसीदें भी देखी जा सकती हैं। उन्होंने व्यवस्थापन के लिए भी आवेदन कर रखा है। फिर भी इस तरह आनन फानन में की गई कार्यवाही से पीड़ित परिवार ऐसा भी सोचने विवश हैं, कि नगर निगम द्वारा की गई द्वेष पूर्व कार्यवाही कहीं समुदाय विशेष होने का कोई खामियाजा तो उन्हें भुगतना नहीं पड़ रहा है।