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आखिर भाजपा जिलाध्यक्ष राजीव सिंह ने कैसे कर दी इतनी बड़ी चूक कि जीता हुआ कोरबा सीट फंस गया !

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कोरबा। राजनीतिक दलों की छाप वाली पर्ची अपने प्रत्याशी के चुनाव प्रचार का काफी पुराना और कारगर माध्यम माना जाता है। पर कोरबा क्षेत्र के नजरिए से देखें तो इस बार के लोकसभा चुनाव में पार्टी वर्करों के हाथ से होते हुए यह पर्चियां घर-घर नहीं पहुंचाई जा सकीं। इस काम की नैतिक जिम्मेदारी भाजपा जिलाध्यक्ष याने राजीव सिंह की बनती थी। ऐसा क्यों हुआ, इसे लेकर न तो मतदान के पहले किसी ने होश रखा और न ही बाद में किसी जिम्मेदार नेता या पदाधिकारियों ने फीडबैक लेने की जहमत ही उठाई। पर्ची एक बहाना होता है लोगो से मिल उनसे अपने पार्टी के पक्ष में करने का शायद यही वजह है कि कोरबा विधानसभा जहां एक बड़ी लीड मिलनी थी वहां पिछले लोकसभा और हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के मतदान से करीब 16 हजार कम वोटिंग हुई है। 

हम मान भी लेते हैं कि शहरी क्षेत्रों में कांग्रेस पार्टी के पास कार्यकर्ताओं की भारी कमी थी। इस लिए चुनाव प्रचार अभियान भी धीमा रहा। पर भाजपा के पास तो कार्यकर्ताओं की पर्याप्त टीम उपलब्ध थी। इसके बाद भी संगठन क्षमता की कमी देखी गई। अगर ऐसा कहा जाए कि जिला भाजपा अध्यक्ष की कमजोर नेतृत्व के चलते यह दशा निर्मित हुई है, तो यह बात बिलकुल सटीक साबित होती है। नाम बड़े और दर्शन छोटे की तर्ज पर ने तो पदाधिकारियों से कोई वाजिब समन्वय स्थापित किया गया और न जमीनी कार्यकर्ताओं से कोई कारगर संवाद पर ही कोई ध्यान रखा गया। योगी आदित्यनाथ के कार्यक्रम के दौरान भी दर्शक दीर्घा के खाली रह जाने पीछे भी जिला संगठन की लापरवाह और अकुशल नेतृत्व क्षणता का ही नतीजा था। परिणाम यह मिला कि पार्टी के लिए कुछ करने की मंशा रखने वालों को पूछ परख न मिलने से उन्होंने भी कोई पहल करने से परहेज कर लिया। परिणाम यह हुआ कि ब मुश्किल अनुमानित 15 से 20 प्रतिशत लोगों के घर तक ये पहुंच पाए और वोटर पर्ची पहुंचाया गया। यह बात पार्टी के जनप्रतिनिधियों ने भी स्वीकार किया है। उनका कहना था कि शक्ति केन्द्र के पदाधिकारियों ने आलस्य ज्यादा देखा गया। उनके काम में भी वे हस्तक्षेप नहीं कर सकते थे। सब को संगठन में अलग-अलग जिम्मेदारी दी गई थी।

खासकर कोरबा के शहरी विधानसभा क्षेत्र में अपेक्षा के विपरीत प्रचार के इस अंतिम, सबसे लोकप्रिय और कारगर माध्यम पर कोई खास जोर नहीं दिखाई दिया। लोकसभा चुनाव में तो जैसे कार्यकर्ताओं का अकाल सा पड़ गया था। आप और हम समेत हर भारतीय ने अपने मताधिकार का प्रयोग कर देश को शक्तिशाली बनाने में अपना योगदान दिया है। पर देश की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी भाजपा और कांग्रेस, दोनों में ही आवश्यकता के अनुरूप पार्टी प्रत्याशी के लिए चुनाव प्रचार करने वाले लोगों की भारी कमी महसूस की गई। कांग्रेस लिए तो जहां शहरी क्षेत्र में कार्यकर्ताओं का अकाल सा पड़ गया था, लेकिन 1 लाख सालाना देने वाले फार्म को घर घर पहुंचाया गया। आज के दौर में भाजपा जैसी देश की सबसे बड़ी पार्टी को भी जमीनी स्तर में संघर्ष करते देखा गया। ये बात हम यूं ही नहीं कह रहे हैं। कोरबा शहर के कुछ चिर परिचित जन प्रतिनिधियों के अनुभव और वक्तव्य के आधार पर पेश कर रहे हैं। चाहे विधानसभा हो या लोकसभा चुनाव, सभी राष्ट्रीय पार्टी मतदाताओं के सहयोग के लिए वोटिंग पर्ची की जुगत का विशेष ध्यान रखती आई है। पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा ही यह पर्चियां सभी मतदाताओं के घर घर जाकर चुनाव से कुछ दिन पहले पहुंचाया जाता रहा है। पर इस बार जहां शहरी क्षेत्रों में कांग्रेसियों को कार्यकर्ता नहीं मिले, वहीं भाजपा जैसी पार्टी को भी इस कठिनाई से दो चार होना पड़ा। छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार होने के बावजूद कोरबा शहर में न तो इनके कार्यकर्ताओं ने मन से काम किया और ना नेताओं या पार्टी के पदाधिकारियों ने ही इस की जानकारी लेने की जहमत उठाई।

अपने बूथ और नाम ढूंढते रह गए भाग्यविधाता

पार्टी संगठन के लचर प्रदर्शन के कारण आम मतदाताओं को वोटर पर्ची उपलब्ध नहीं हो पाई। जिससे उन्हें अपने मतदान करते समय काफी दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा। जानकारों की मानें तो इस चुनाव राजनीतिक पार्टियों के पास वर्करों का अकाल सा पड़ गया। एक यह भी वजह थी जो कार्यकर्ताओं के जरिए घर-घर मतदाता पर्ची घर तक नहीं पहुंच सकी। कांग्रेस हो या भाजपा, इसके पीछे उनके प्रचार के अभियान के लिए कार्यकर्ताओं की कमी का रोड़ा बनी। या यूं कहें तो कार्यकर्ताओं का मानों अकाल सा पड़ गया था, तो गलत न होगा। अब, जबकि कोरबा शहरी विधानसभा में मतदान का ग्राफ कुछ इस तरह धराशाई हुआ, तब जाकर इस ओर भी विश्लेषकों का ध्यान गया है। वोट प्रतिशत कम होने के पीछे इस फैक्टर का समर्थन खुद राजनीतिक लोग न केवल मान रहे हैं, बल्कि खुले तौर पर कह भी रहे हैं।

आखिर के दिनों में प्रभावित कर जाता है सुंदर व्यवहार

वोटर पर्ची बांट कर अपने अपने दलों का प्रचार का भी यह सब से उपयुक्त माध्यम माना जाता है। दरअसल लोकसभा क्षेत्र बहुत बड़ा होता है। जिस वजह से प्रत्याशी सभी के घरों तक पहुंच सकें, कई बार यह संभव नहीं हो पाता है। पार्टी के कार्यकर्ताओं और जन प्रतिनिधियों के उनके घर पर आने से भी संतुष्ट होकर आम जनता किसी एक पार्टी के लिए मन बना लेती है। मतदान की घड़ी में उन कार्यकर्ताओं और जनप्रतिनिधियों के व्यवहार से प्रभावित होकर अपना अमूल्य वोट उन्हें देने का निर्णय कर लेती है और अपना मताधिकार का प्रयोग करती है। भाजपा शहर संगठन अगर इसे इमानदारी से घर घर पहुंच कर वोटर पर्ची उपलब्ध कराता, तो जनता के मन में इनके लिए अलग इमेज़ बन पाती।

पार्षदों को नहीं दी गई कोई जिम्मेदारी, अपने वार्डों पर खुद फोकस किया

ग्राम यात्रा छत्तीसगढ़ न्यूज नेटवर्क के प्रतिनिधि ने जब वार्ड लेवल के जन प्रतिधियों से चुनावी समर में किए गए कार्यों के बारे में जानकारी ली तब उनका कहना था कि उन्हें जिला संगठन की ओर से कोई जिम्मेदारी ही नहीं सौंपी गई थी। उन्होंने अपने अपने वार्ड में जो कुछ किया, वह उनकी स्वयं की पहल थी। अंततः उल्लेखनीय होगा कि अभी हार जीत का फैसला होने में समय है। प्रत्याशियों का भाग्य का फैसला तब तक बंद है। पर इससे एक महीने पहले सभी पार्टियों को इससे सबक लेते हुए अपनी अपनी कमी के संबंध में अवश्य मंथन कर लेने का वक्त यही है। ऐसे मौकों पर आम जनता को होने वाली परेशानी से आगामी चुनावों में राहत दिलाई सकती है।

नहीं तो जिस तरह इस बार भी आम लोगों ने संघर्ष कर अपने बूथ और नाम खोजने में परेशानियां झेल कर मतदान किया।

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