छत्तीसगढ़

निगम अफसरों की शिकायतें को नजरंदाज कर बढ़ाया जा रहा घूसखोर अफसरों का हौसला, अगर शिकायत पर होते रहते कार्यवाही तो निगम में आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो को नहीं करनी पड़ती कार्यवाही!

कोरबा। नगर निगम के घूसखोर इंजीनियरों के इस ताजा मामले में नगर निगम कोरबा की बहुत हुआ किरकिरी,,सवाल उठता है कि आखिर रिश्वत और कमीशन का कारोबार चलाने वाल अफसरों और कर्मचारियों के हौसले इस कदर क्यों बुलंद हैं। आखिर क्यों स्थानीय अधिकारियों को यह सब नजर नहीं आता, जो सीधे एसीबी की टीम को पहल करनी पड़ रही। नगर निगम कोरबा में भ्रष्टाचार को लेकर समय-समय पर शिकायत होती रही है। पर कार्यवाही के अभाव से इन घूसखोरों के दुस्साहस को बल मिलता गया।

परिणाम यह निकला कि आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो द्वारा कोरबा निगम के दो अधिकारियों को रंगे हाथों पकड़ा गया।

कांग्रेस के कार्यकाल में नगर निगम में स्थापित भ्रष्टाचार की दुकान को बंद करने की बजाय यूं ही लापरवाही बरतना, न केवल भ्रष्टाचार को बढ़ावा है, आम नागरिकों के लिए न्याय की उम्मीद करना बेमानी होगा।।

कुछ माह पहने आई एक शिकायत को ही देख लें, जिसमें वार्ड क्रमांक 23 रविशंकर शुक्ल नगर के पार्षद एवं अधिवक्ता अब्दुल रहमान ने जोन कार्यालय अंतर्गत निगम अधिकारियों के साथ आयुक्त व कोरबा कलेक्टर से भी की गई थी। इस बात को साढ़े पांच माह गुजर गए पर कार्यवाही तो दूर कोई सुनवाई तक नहीं की गई। जनप्रतिनिधियों व आम लोगों की शिकायतों को इस तरह नजरंदाज किया जाता रहा तो भ्रष्टाचार भला कैसे रोका जा सकता है।

इस दिशा में गंभीरता से कदम उठाए गए तो नगर निगम के छोटे कर्मियों से लेकर बड़े अधिकारी तक भ्रष्टाचार में उलझते दिखाई देंगे। 8 जनवरी 2024 की इस शिकायत में निवेदन किया गया था कि लंबे समय से पदस्थ रविशंकर जोन कार्यालय में मनोहर प्रसाद राठौर और सिदार के द्वारा संपत्ति कर के नाम पर अवैध वसूली किया जाता है। इस संबंध में 8 जनवरी को 2024 को झूल बाई और श्रीमती अर्चना पावा के पति द्वारा बताया गया कि वे संपत्ति कर बनवाने के लिए रवि शंकर जोन कार्यालय गए थे। जहां पर मनोहर प्रसाद राठौर द्वारा संपत्ति कर बनवाने के नाम पर अर्चना से 5000 हजार लिया और 540 रुपए का रसीद काटकर दिया गया। साथ ही कहा गया कि बाकी पैसा ऊपर के साहब लोगों को भी देना पड़ता है। इसी तरह झूल बाई से भी संपत्ति कर बनवाने के नाम पर 3500 रुपये नगद लिए गए और उसे भी 540 रुपए का रासीाद काटकर दिया गया। लंबे समय से यह खेल वहा पदस्थ बाबू के द्वारा किया जा रहा है। इसी तरह वहीं पर मोहनलाल द्वारा भी आम जनता से संपत्ति कर बनवाने राशन कार्ड बनवाने प्रधानमंत्री आवास से मिलने वाले रकम को जल्दी करवाने बेजा कब्जा में बनने वाले मकान को रोककर अवैध रकम वसूली कर बेजा कब्जा में मकान बनने की मौखिक सहमति देने की बात कही गई। इस तरह आम लोगों से अवैध उगाही धड़ल्ले से जारी है। इस संबंध में पार्षद रहमान ने जोन प्रभारी चंद्रा के समक्ष शिकायत की गई। तब श्री चंद्रा ने मनोहर प्रसाद राठौर से पूछताछ की और मनोहर प्रसाद राठौर ने श्री चंद्रा के सामने अपनी गलती को स्वीकार कर 4500 रुपये नगद श्रीमती अर्चना पात्रा के पति को वापस किया गया। क्या उच्च अधिकारियों के सहमति से होता है ऐसा कार्य
अगर नहीं तो क्यों नहीं होता ऐसे शिकयतों में कार्यवाही।।

आरोपि सहायक अभियंता व उप अभियंता निलंबित

आयुक्त प्रतिष्ठा ममगाई ने रिश्वत लेने के आरोपित निगम के सहायक अभियंता डीसी सोनकर एवं उप अभियंता देवेन्द्र स्वर्णकार को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। इसे गंभीरता से लेते हुए आयुक्त ममगाई ने दोनों के विरूद्ध उक्त कार्रवाई की।


ऐसे तय होता है किस को कितना कमीशन

निर्माण कार्य आबंटित किए जाने के दौरान ही कमीशन निश्चित कर दिया जाता है। रनिंग बिल के साथ ही अधिकारी अपना हिस्सा लेना शुरू कर देते हैं। नाम नहीं बताने की शर्त पर एक ठेकेदार ने बताया कि जब कार्यादेश जारी होता है, तब तीन प्रतिशत कमीशन लिया जाता है, उसके बाद ही कार्यादेश सौंपा जाता है। काम शुरू होने पर कनिष्ठ अभियंता, सहायक अभियंता, कार्यपालन अभियंता व अधीक्षण अभियंता को दो- दो प्रतिशत देना पड़ता है। यही नहीं एकाउंटेंड को एक, आडिट शाखा व निर्माण शाखा में आधा – आधा प्रतिशत बांटना पड़ना है। एक जनप्रतिनिधि को एक प्रतिशत (वर्कआर्डर के दौरान का एक प्रतिशत अतिरिक्त) व शीर्ष अधिकारी को तीन प्रतिशत दिया जाता है। इसके अलावा संबंधित विभाग के लिपिकों को अलग से राशि देनी पड़ती है।
इस तरह से अलर भ्रष्टाचार होता रहेगा तो किसी भी कार्य में गुणवत्ता की उम्मीद कैसे कर सकते हैं
निगम आयुक्त को तत्काल संज्ञान लेते हुए ऐसे दाग़ दार अधिकारी कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से हटते हुए अच्छे लोगों को उक्त स्थान पर बैठना चाहिए जिससे जनता को लाभ मिल सके।

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