Home अपराध तहसीलदार का आदेश, अपर कलेक्टर की मुहर… फिर भी नहीं हट रहा...

तहसीलदार का आदेश, अपर कलेक्टर की मुहर… फिर भी नहीं हट रहा कब्जा ! फोन आते ही रुक जाती कार्रवाई, आखिर कब मिलेगा पहाड़ी कोरवा को न्याय ?

356
0

फर्जी आदिवासी रंजना सिंह और उसके सहयोगियों को बचाने में प्रशासनिक रसूख काम कर रहे हैं — कभी फोन, कभी पुलिस बल की कमी… हर बार मिल रहा नया मौका

कोरबा।
संरक्षित जनजाति पहाड़ी कोरवा की पुश्तैनी ज़मीन और मकान पर फर्जी आदिवासी बनकर कब्जा जमाए बैठी रंजना सिंह और उसके साथियों का खेल अब खुलकर सामने आ चुका है।
लेकिन सवाल ये है कि जब तहसीलदार का आदेश, अपर कलेक्टर का फैसला और तीन-तीन एफआईआर सब कुछ पहाड़ी कोरवा के पक्ष में है — तो आखिर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही ?

जानकारी के अनुसार, तहसीलदार कोरबा ने स्पष्ट आदेश दिया था कि खसरा नंबर 236/3, रकबा 0.352 हेक्टेयर भूमि शासन के नाम पर दर्ज है और उस पर से कब्जा तत्काल हटाया जाए।


आदेश के बाद प्रशासन की टीम लवलसकर के साथ मौके पर पहुँची, पर जैसे ही कार्रवाई शुरू हुई, किसी प्रभावशाली व्यक्ति का फोन आने के बाद अधिकारी मौके से वापस लौट गए।
कहा गया कि “थोड़ा समय दे दिया गया है” — और कब्जा कायम रहा।

दुबारा पहुँचा प्रशासन, फिर बहाना – “पुलिस बल कम है”

कुछ दिन बाद जिला प्रशासन दोबारा पहुँचा, लेकिन इस बार नया कारण बता दिया गया — “पुलिस बल पर्याप्त नहीं है।”
स्थिति संभालने की जगह टीम ने कार्रवाई रोक दी और फिर से खाली हाथ लौट आई।
इस बीच, रंजना सिंह की ओर से अपर कलेक्टर न्यायालय में अपील लगा दी गई, जिससे मामला फिर से ठंडे बस्ते में चला गया।

अपर कलेक्टर ने किया साफ — “कोई स्थगन नहीं, कार्रवाई जारी रहे”

6 अक्टूबर को अपर कलेक्टर कोरबा ने अपना फैसला सुनाते हुए साफ कहा कि —
“अपीलार्थी (रंजना सिंह) का जाति प्रमाणपत्र निलंबित है। उसने कोई स्थगन आदेश प्राप्त नहीं किया है। इसलिए तहसीलदार की ओर से की जा रही बेदखली कार्रवाई पर रोक लगाने का कोई कारण नहीं है।”

 

यानि प्रशासन को कार्रवाई करने में अब कोई कानूनी बाधा नहीं बची।
फिर भी ज़मीन पर कब्जा जस का तस है — और पहाड़ी कोरवा फिरत राम अब भी अपने ही घर से बेघर है।

पर्दे के पीछे कौन दे रहा संरक्षण ?

स्थानीय सूत्र बताते हैं कि रंजना सिंह और उसके समर्थक चेतन चौधरी तथा पास्टर चंद्रा को कुछ प्रभावशाली लोगों का संरक्षण मिला हुआ है।
हर बार कार्रवाई की तारीख तय होते ही फोन कॉल, सिफारिश या मानवीयता का बहाना लगाकर मामला लटका दिया जाता है।
इसी कारण तहसीलदार और अपर कलेक्टर के आदेश के बाद भी आज तक कब्जा हटाने की हिम्मत प्रशासन नहीं जुटा पाया है।

पहाड़ी कोरवा का सवाल – “कब मिलेगा अपना हक ?”

आंछिमार निवासी फिरत राम, जो पहाड़ी कोरवा समुदाय से हैं, अपनी पुश्तैनी भूमि वापस पाने के लिए दो साल से संघर्ष कर रहे हैं।
वो कहते हैं —
“मैं कानून से लड़ रहा हूँ, प्रशासन से नहीं। पर लगता है कानून मेरे लिए नहीं, उन्हीं के लिए बना है जो फर्जी बनकर कब्जा करते हैं।”

अब आम जनता भी पूछ रही है —
“जब सारे सबूत और आदेश पहाड़ी कोरवा के पक्ष में हैं, तो फिर कार्रवाई में देरी क्यों ?”
क्या प्रशासन सच में न्याय दिलाना चाहता है या फिर किसी रसूखदार की फोन कॉल पर कानून झुक जाता है ?

 
HOTEL STAYORRA नीचे वीडियो देखें
Gram Yatra News Video

Live Cricket Info

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here