सूरजपुर(ग्रामयात्रा छत्तीसगढ़ ) । “ज़रा सोचिए 21वीं सदी का भारत… लेकिन तस्वीरें ऐसी कि दिल दहल जाए। बीमार को इलाज दिलाने के लिए परिजन उसे एंबुलेंस या वाहन में नहीं, बल्कि कंधे पर उठाकर कई किलोमीटर दूर अस्पताल तक ले जाते हैं। ये मामला है प्रतापपुर के ग्राम गोरगी का, और ये हकीकत है कोडाकु जनजाति की
“ये तस्वीर सिर्फ एक बीमार व्यक्ति की नहीं ये तस्वीर उन हजारों लोगों की पीड़ा की है, जो आज भी मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित हैं। दुर्गम वनांचल क्षेत्र में रहने वाले इस कोडाकु जनजाति के व्यक्ति की तबीयत बिगड़ी पर एंबुलेंस नहीं आई, सड़कें नहीं थीं और मजबूरी में परिजनों ने कंधे को ही सहारा बनाया।
” “पसीने से लथपथ चेहरे कांपते कंधे लेकिन उम्मीद सिर्फ एक – कहीं न कहीं अस्पताल पहुंच जाएं, और समय रहते इलाज मिल जाए। सवाल ये है.
कि क्या ये हालात एक सभ्य समाज की पहचान हैं? क्या यही विकास की तस्वीर है?” “प्रतापपुर की ये घटना सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि एक सवाल है और ये सवाल सीधा प्रशासन से है। आखिर कब तक ग्रामीणों को अपनी जान बचाने के लिए इस तरह की अमानवीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा? जवाबदेही कौन लेगा?”

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