
कोरबा।
कोरबा में मुद्दों की राजनीति नहीं… यहाँ चलती है ठेकों की राजनीति !
जहाँ बाकी जिले विकास की बहस में उलझे रहते हैं, कोरबा की राजनीति हमेशा तब गरमाती है जब किसी बड़े प्रोजेक्ट में ठेका किसी के हाथ से फिसलने लगता है। यहाँ यह कोई राज़ नहीं कि कई नेता राजनीति से पहले ठेकेदार रहे हैं और राजनीति में आते ही उनके समर्थक ‘ठेका नेटवर्क’ संभालने लगते हैं।
इसी में सबसे बड़ा और सबसे चर्चित नाम—पूर्व मंत्री और तीन बार विधायक रह चुके जयसिंह अग्रवाल।
कागज़ों में भले उन्होंने अपनी ठेकेदारी फर्म से दूरी दिखा दी हो, लेकिन कोरबा जानता है—ठेका और नेताजी का रिश्ता आज भी अटूट है।
बालको तो राजनेताओं के लिए हमेशा सॉफ्ट कॉर्नर रहा है—एक ऐसा समुंदर, जहाँ से स्थानीय नेता कभी लोटा भर पानी लेते हैं, कभी बाल्टी भर और कुछ तो पूरी डुबकी लगा लेते हैं।
कोरबा जिले में एक बार फिर वही पुराना दृश्य—विकास परियोजना आगे बढ़ते ही अचानक विरोध की आवाज़ें। बालको के सेक्टर-6 में निर्माणाधीन G-9 आवासीय परिसर पर उठे विवाद ने लोगों को चौंकाया जरूर, पर हैरान नहीं किया। कारण साफ है—कोरबा में मुद्दों की राजनीति से ज्यादा चर्चा ठेकों की राजनीति की होती है। यहाँ यह धारणा नई नहीं कि कई जनप्रतिनिधि राजनीति से पहले ठेकेदार रहे और राजनीति में आते ही उनके समर्थक भी ठेका कारोबार में सक्रिय हो जाते हैं। इसी पृष्ठभूमि में पूर्व मंत्री और तीन बार विधायक रह चुके जयसिंह अग्रवाल का अचानक सामने आया विरोध अब सवालों के घेरे में है।
17 नवंबर को श्रम एवं उद्योग मंत्री लखनलाल देवांगन ने G-9 प्रोजेक्ट का भूमिपूजन किया था।
कर्मचारियों के लिए लंबे समय से प्रतीक्षित आधुनिक आवास परियोजना को लेकर लोगों में उत्साह था। लेकिन भूमिपूजन के तीन दिन बाद ही पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल अचानक आरोपों की सूची लेकर सामने आ गए—जंगल-मद जमीन, पेड़ों की अवैध कटाई, SDM आदेश की अवहेलना, ड्रेनेज अवरुद्ध, सार्वजनिक मार्ग कब्जा… आरोप गंभीर थे, लेकिन जांच में लगातार तथ्य इसके उलट निकलते गए।
निगम से भवन निर्माण की विधिवत अनुमति
सूत्रों के अनुसार G-9 प्रोजेक्ट को कोरबा नगर निगम से सभी औपचारिकताओं के बाद भवन निर्माण अनुज्ञा प्राप्त है।
नक्शा स्वीकृति, स्ट्रक्चरल डिज़ाइन, भूमि उपयोग और ज़ोनिंग अनुपालन—सभी दस्तावेज़ निगम द्वारा जांचे और पास किए गए।
Town & Country Planning विभाग से विकास अनुज्ञा प्राप्त
ग्राम एवं नगर निवेश विभाग ने भी परियोजना को विकास अनुज्ञा प्रदान की है।
इस अनुमति के पीछे भूमि की श्रेणी, उपयोग, पहुँच मार्ग, पर्यावरणीय मानक और पूरी लेआउट बारीकी से जांची जाती है।
स्पष्ट है—जमीन अवैध या आपत्ति योग्य होती तो T&CP अनुमति जारी ही नहीं करता।
पेड़ कटाई नहीं, पेड़ों को शिफ्ट करने की पहले से स्वीकृति
पेड़ों की कटाई संबंधी आरोपों पर जांच में सामने आया कि परियोजना क्षेत्र में
पेड़ों को काटा नहीं जाना था, बल्कि उन्हें ट्रांसप्लांट किया जाना था।
इसके लिए SDM से पहले विधिवत अनुमति जारी हुई थी।
अर्थात पेड़ कटाई का दावा तथ्यात्मक रूप से गलत।
ड्रेनेज लाइन सुरक्षित, कहीं अवरोध नहीं
नगर निगम और T&CP के संयुक्त सर्वे में पाया गया कि G-9 निर्माण से ड्रेनेज लाइन को कोई बाधा नहीं है।
ना तो लाइन बदली गई,
ना मोड़ी गई,
ना उस पर किसी प्रकार का अतिक्रमण हुआ।
विरोध की टाइमिंग पर उठे सवाल
सभी वैधानिक अनुमतियों के बाद ही प्रोजेक्ट शुरू हुआ।
पेड़ ट्रांसप्लांट का आदेश पहले से मौजूद था।
ड्रेनेज सुरक्षित पाया गया।
जमीन रिकॉर्ड स्पष्ट था।
इसके बावजूद विरोध भूमिपूजन के तुरंत बाद सामने आया।
स्थानीय राजनीतिक जानकार इसे ‘ठेकेदारी समीकरण’ से जोड़कर देख रहे हैं।
शहर में चर्चा है—
“विधायक रहते भी नेताजी बड़े कामों पर पहले आपत्ति दर्ज कराते थे, फिर काम निकलने पर विरोध ख़त्म हो जाता था।”
लखन देवांगन की पहल की सराहना
इधर मंत्री लखनलाल देवांगन द्वारा कर्मचारियों की आवासीय समस्या दूर करने और बालको में आधुनिक सुविधाओं के विस्तार की दिशा में उठाए कदम को सकारात्मक माना जा रहा है।
कर्मचारी भी G-9 प्रोजेक्ट को राहत और ढांचागत सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण मान रहे हैं।
जनता का सवाल—विरोध जनता के लिए या निजी हित के लिए ?
कोरबा में विकास लगातार राजनीतिक टकरावों और दबाव की राजनीति में उलझा रहा है।
ऐसे में लोग पूछ रहे हैं—
- जब सभी अनुमति वैध थीं,
- पेड़ नहीं काटे जा रहे थे,
- ड्रेनेज सुरक्षित था,
तो फिर अचानक विरोध क्यों ?
क्या यह जनता का मुद्दा है या ठेकों की राजनीति का एक और अध्याय ?
कोरबा अब साफ जवाब चाहता है—
G-9 प्रोजेक्ट पर विरोध विकास का मुद्दा है या नेताजी की ठेकेदारी की जुगत का ताज़ा एपिसोड ?

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