आंखों की रोशनी के बिना बच्चों का भविष्य उज्ज्वल कर रहीं हेडमास्टर
पढ़े संघर्ष की एक नई कहानी
रायगढ़ । “मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनो में जान होती है पंख से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है।” इन पंक्तियों को चरितार्थ कर दिखाया है रायगढ़ की संध्या पांडे ने, जिन्होंने आंखों की रौशनी खोने के बाद भी हार नहीं मानी। आज वे सरकारी स्कूल की हेडमास्टर हैं और बच्चों को पढ़ाकर उनका भविष्य गढ़ रही हैं। छत्तीसगढ़ की बेटी संध्या पांडे की कहानी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो शारिरिक दुर्बलता के चलते हार मान लेता है।
सरईभद्दर शासकीय माध्यमिक विद्यालय में हेडमास्टर पद पर कार्यरत संध्या की कहानी साहस और संघर्ष की मिसाल है। 5 बहनों में सबसे बड़ी संध्या संस्कृत की शिक्षिका हैं। खास बात ये है कि हर दिन उनकी मां स्कूल साथ आतीं हैं और ब्लैकबोर्ड पर लिखने में मदद करती हैं। बच्चे जब पाठ पढ़ते हैं तो संध्या उन्हें सुनती हैं और अगर किसी को समझ नहीं आता तो उन्हें समझाती भी हैं।
7 महीने तक कोमा में रहीं संध्या
साल 1999-2000 में संध्या गणित में MSc कर रही थीं। अचानक सिर दर्द और तेज बुखार आया। इलाज के लिए रायगढ़ से रायपुर तक अस्पतालों के चक्कर लगाए, लेकिन उस समय आधुनिक जांच सुविधाएं नहीं थीं। इस दौरान अचानक संध्या की आवाज और आंखों की रौशनी चली गई। वे 7 महीने से ज्यादा कोमा में भी रहीं। कई कोशिशों के बाद जब उन्हें होश आया, तो आवाज वापस लौटी, लेकिन आंखों की रौशनी हमेशा के लिए जा चुकी थी।
परिवार ने बढ़ाया संध्या का हौसला
शारिरिक दुर्बलता के चलते संध्या घर में गुमसुम रहने लगीं थीं, बेटी को उदास देख उनके माता-पिता ने संध्या को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। तभी संध्या ने अपना ज्ञान दूसरों में बांटने की ठानी। 2005 में उन्हें जानकारी मिली कि शिक्षकों की सीधी भर्ती हो रही है, जिसमें 100% नेत्रहीनों के लिए भी पद मौजूद हैं। संध्या ने उसी भर्ती में इंटरव्यू दिया और अपने बैद्धिक प्रदर्शन से वह चयनित भी हुईं।
डुमरपाली स्कूल से शुरू किया शिक्षण सफर
संध्या को पहली पोस्टिंग कोड़ातराई के डुमरपाली स्कूल में मिली। स्कूल दूर था, आने-जाने में दिक्कत होती थी। उनकी मां शारदा पांडे रोज उनके साथ स्कूल जाती थीं। 2008 में संध्या का ट्रांसफर रायगढ़ हो गया जिसके बाद उनकी जिंदगी की दिशा बदल गई। ट्रांसफर के बाद संध्या सरईभद्दर स्कूल पहुंचीं और आज तक संध्या इसी स्कूल में अपनी सेवाएं दे रही हैं। अब वे छठवीं कक्षा को संस्कृत का पाठ पढ़ाती हैं।
2023 में बनीं हेडमास्टर
स्कूल का स्टाफ ऑफिस के कामों में संध्या की मदद करता है। संध्या ब्रेल लिपि का इस्तेमाल नहीं करतीं, बल्कि जो कुछ भी उन्हें याद है, उसी के सहारे बच्चों को पढ़ाती हैं। स्थानीय शिक्षक कहते हैं, “हमें कभी महसूस नहीं होता कि संध्या दिव्यांग हैं। उनके साथ काम करना हमेशा प्रेरणा देता है। बच्चे पहले पाठ पढ़ते हैं, संध्या सुनती हैं और फिर समझाती हैं। लिखने-पढ़ाने का काम मां करती हैं, लेकिन क्लास के संध्या खुद ही संचालित करतीं हैं।”
शिक्षिका गौरी पटेल ने बताया कि “20 साल से हम साथ काम कर रहे हैं। संध्या ने कभी हार नहीं मानी। आज वे प्रधान पाठक (हेडमास्टर) के पद पर हैं। सभी शिक्षक उनके निर्देशों पर काम करते हैं।”

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