छत्तीसगढ़

जेलों में किशोरों की पहचान करने और कानूनी सहायता प्रदान करने एक दिवसीय कार्यशाला

Spread the love
Listen to this article

दुर्ग । छत्तीसगढ़ राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, बिलासपुर के निर्देशन पर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण दुर्ग के तत्वाधान में एवं जिला न्यायाधीश/अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, दुर्ग डॉ0 प्रज्ञा पचौरी के मार्गदर्शन में नालसा की गाईड लाईन्स अनुसार जेलों में किशोरों की पहचान करने और कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए अखिल भारतीय अभियान 2024 के संबंध में एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन 24 जुलाई को दोपहर 2 बजे जिला न्यायालय, दुर्ग के सभागार स्थल पर आयोजित की गयी।

   उक्त आयोजित कार्यशाला में प्रमुख रूप में जनार्दन खरे, प्रधान मजिस्ट्रेट किशोर न्याय बोर्ड, दुर्ग भगवानदास पनिका, द्वितीय व्यवहार न्यायाधीश वरिष्ठ श्रेणी/जेएमएफसी दुर्ग पुनितराम गुरूपंच पंचम व्यवहार न्यायाधीश वरिष्ठ श्रेणी / जेएमएफसी दुर्ग, तथा संजय पुंडीर डी.एस.पी. दुर्ग, सुदर्शन महलवार, चीफ  लीगल एड डिफेंस कौंसिल सिस्टम दुर्ग के अतिरिक्त बाल कल्याण अधिकारी, जेल लीगल एड क्लीनिक के अधिवक्ता, पुलिस कर्मचारीगण एवं पैरालीगल वालेन्टियर सम्मिलित हुए।   जेलों में किशोरों की पहचान करने और कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए

अखिल भारतीय अभियान 2024 के संबंध आयोजित इस एक दिवसीय कार्यशाला में श्री जनार्दन खरे, प्रधान मजिस्ट्रेट किशोर न्याय बोर्ड, दुर्ग द्वारा कार्यशाला में उपस्थितजनों को सम्बोधित करते हुए कहा कि बच्चे अपराधी नहीं होते बल्कि वे विधि के साथ संघर्ष करने वाले बालक/किशोर होते हैं। यदि कोई विधि से संघर्षरत बालक/किशोर किसी मामले के संज्ञान में आता है तो सर्वप्रथम यह देखना चाहिए कि वह 18 वर्ष से कम का है कि नहीं, इस हेतु सर्वप्रथम संबंधित बालक/किशोर के दसवीं की अंकसूची अथवा अन्य स्कूल के सर्टिफिकेट यदि ये न हो तो दाखिला खारिज नंबर तथा यह भी न हो तो कोटवार/नगर निगम में जन्म पंजीयन और अंत में यदि उक्त प्रमाण न मिले तो बोन टेस्ट कराना चाहिए।

चूंकि उक्त कार्य में समय लगना संभावित हो तो उक्त संबंधित बालक/किशोर का रिमाण्ड लिया जा सकता है एवं विशेष किशोर पुलिस इकाई के उप पुलिस अधीक्षक द्वारा एक आवेदन अधीक्षक बाल सम्प्रेक्षण गृह को लिखकर संबंधित विधि से संघर्षरत बालक/किशोर को ष्बाल सम्प्रेक्षण गृह में रख सकते हैं व्यक्त करते हुए किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम 2015 की विस्तृत जानकारी देते हुए बालकों/विधि के साथ संघर्षरत बालक द्वारा कारित किये जाने वाले अपराध के संबंध में उक्त अधिनियम के तहत पुलिस की भूमिका के बारे में बताते हुए कार्यशाला में उपस्थित पुलिस कर्मचारियों के द्वारा पूछे गये विभिन्न प्रश्नों का विधिनुरूप समुचित उत्तर देते हुए उनकी शंकाओं का समाधान किया गया। 

रिसार्स पर्सन  सुदर्शन महलवार चीफ लीगल एड डिफेंस कौंसिल सिस्टम दुर्ग ने अपने उद्बोधन में कहा कि जेल में यदि कोई बंदी चाहे वह सजायापता हो या विचाराधीन हो किसी भी परिस्थिति में यदि वह उम्र में 18 साल से कम का दिखता हो या वह स्वयं आकर 18 साल से कम का होने दावा करे तो उक्त संबंध में पुलिस की ड्यूटी होती है कि उक्त बंदी को किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत करें।

किसी बालक/किशोर को जेल भेजने से अनुच्छेद 21 के तहत उसके मौलिक अधिकार का हनन होता है और बालक/किशोर जेल में आदतन अपराधी के संपर्क में आने से उसके बिगडऩे की संभावना भी बढ़ जाती है इसके अतिरिक्त इनके द्वारा किशोर के संबंध में गंभीर अपराधों की परिभाषा एवं तत्संबंध में पुलिस द्वारा थाने में की जाने वाली कार्यवाही को बताते हुए किशोर न्याय अधिनियम में पुलिस जॉच की प्रक्रिया एवं प्रावधान के बारे में बताया गया।

 
HOTEL STAYORRA नीचे वीडियो देखें
Gram Yatra News Video

Live Cricket Info

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button