बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में तकनीकी शिक्षा विभाग द्वारा जारी वेतन वसूली के आदेश को खारिज करते हुए कर्मचारी को बड़ी राहत दी है। न्यायमूर्ति ए.के. प्रसाद की एकलपीठ ने 22 अगस्त 2025 को पारित आदेश में कहा कि 16 साल बाद की जाने वाली वसूली पूरी तरह से अनुचित, अन्यायपूर्ण और कानून के विरुद्ध है।
मामला एक सरकारी सेवक का है, जो वर्ष 1996 में तकनीकी शिक्षा विभाग में व्याख्याता (Lecturer) के रूप में नियुक्त हुआ और पदोन्नति पाकर प्राचार्य के पद तक पहुँचा। विभाग ने 21 दिसंबर 2022 को आदेश जारी कर यह कहते हुए उसके वेतन से वसूली शुरू कर दी कि 2006 से उसे अधिक वेतन दिया गया है। जबकि वेतन निर्धारण विभागीय अधिकारियों ने ही वैध आदेशों के तहत किया था और इसमें कर्मचारी की कोई भूमिका नहीं थी।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता मतीन सिद्दीकी और दीक्षा गौराहा ने पैरवी की। सुनवाई के दौरान अधिवक्ता दीक्षा गौराहा ने जोरदार तर्क रखते हुए कहा कि विभाग द्वारा 16 वर्ष बाद की जा रही वसूली उच्चतम न्यायालय के स्टेट ऑफ पंजाब बनाम रफीक मसीह (2015) फैसले के प्रतिकूल है। उस फैसले में स्पष्ट कहा गया है कि यदि अधिक भुगतान कर्मचारी की किसी धोखाधड़ी, गलत बयानी या तथ्य छिपाने के कारण नहीं हुआ है, तो वसूली नहीं की जा सकती। इस सिद्धांत की पुष्टि बाद में थॉमस डेनियल (2022) और जोगेश्वर साहू (2023) मामलों में भी की जा चुकी है।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि रिकॉर्ड में कहीं भी ऐसा नहीं है कि कर्मचारी ने विभाग को गुमराह किया हो या किसी तरह का गलत ब्योरा दिया हो। वेतन निर्धारण पूरी तरह से सक्षम प्राधिकारी के आदेशों से हुआ और कर्मचारी ने केवल वह वेतन प्राप्त किया जो विभाग ने स्वयं तय किया था। इतने लंबे समय बाद वसूली करना न केवल न्यायसंगत नहीं बल्कि कर्मचारी के आर्थिक जीवन पर असंगत बोझ डालने जैसा है।
न्यायालय ने यह भी माना कि याचिकाकर्ता पहले से ही शिक्षा ऋण और आवास ऋण के भारी बोझ तले दबा है, और वसूली होने पर उस पर असहनीय आर्थिक संकट आ सकता है।
अदालत ने 21 दिसंबर 2022 के विभागीय आदेश को निरस्त करते हुए वसूली पर रोक लगा दी। साथ ही यह निर्देश भी दिया कि यदि विभाग ने पहले से कोई राशि वसूल की है, तो उसे तीन माह के भीतर कर्मचारी को लौटाना होगा। हालांकि अदालत ने विभाग को यह स्वतंत्रता दी है कि वह भविष्य में नियमों के अनुसार वेतन निर्धारण में संशोधन कर सकता है, बशर्ते कर्मचारी को सुनवाई का अवसर प्रदान किया जाए।
इस आदेश से न केवल याचिकाकर्ता को बड़ी राहत मिली है, बल्कि राज्य के अन्य कर्मचारियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण नजीर स्थापित हुई है।

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