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एसपी साहब! आदिवासी मुख्यमंत्री के राज में आदिवासी परिवार हो रहा हलाकान, पीड़ित के पैरों में चक्कर लगाते पड़ गए छाले और अपराधी खुली हवा में ले रहे सांस

कोरबा, 02 अक्टूबर: छत्तीसगढ़ में पहली बार एक निर्विवाद आदिवासी मुख्यमंत्री सत्ता की कमान संभाल रहे हैं, बावजूद इसके, आदिवासी परिवारों को हलाकान होना पड़ रहा है। कोरबा में पिछले 11 महीनों से एक आदिवासी परिवार न्याय की आस में कभी थाने, कभी एसपी दरबार तो कभी प्रशासन के दफ्तरों के चक्कर लगाने को मजबूर है, लेकिन अब तक न्याय की कोई किरण दिखाई नहीं दी है।

यह मामला सिविल लाइन थाना क्षेत्र के एमपी नगर इलाके का है, जहां एक फर्जी आदिवासी महिला ने कांग्रेस सरकार के दौरान अपने राजनीतिक संबंधों का फायदा उठाते हुए, दबंगई के बल पर पहाड़ी कोरवा समुदाय के फिरत राम की ज़मीन और मकान पर कब्जा कर लिया। जब फिरत ने इसका विरोध किया तो, उसे जातिसूचक गालियाँ देते हुए मारपीट कर मकान से बाहर निकाल दिया गया। राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले इस पहाड़ी कोरवा परिवार के साथ यह अन्याय करने वाली महिला, रंजना सिंह, और उसके सहयोगी चेतन चौधरी के खिलाफ सिविल लाइन थाने में तीन एफआईआर दर्ज हैं। इनमें से एक मामले में पुलिस ने एससी/एसटी अधिनियम के तहत अपराध भी दर्ज किया है। फिर भी, बीते 11 महीनों में इनकी गिरफ्तारी नहीं हो पाई है और पीड़ित को न्याय नहीं मिल सका है।

मामला 21 नवंबर 2023 का है, जब न्याय की आस में पीड़ित पहाड़ी कोरवा फिरत राम थाने पहुंचा और अपनी आपबीती सुनाई, लेकिन उसे वहां से धक्के देकर भगा दिया गया। निराश होकर उसने तब के एसपी जितेंद्र शुक्ला से मुलाकात की और न्याय की गुहार लगाई। एसपी ने तत्काल संबंधित अधिकारियों को फटकार लगाते हुए जरूरी धाराओं के तहत अपराध दर्ज करने का निर्देश दिया। फिरत राम के अनुसार, जब वह सिविल लाइन थाने पहुंचा तो वहां के स्टाफ ने मनमाना व्यवहार किया और उससे ज़मीन के स्वामित्व का प्रमाण मांगा। फिरत ने कुछ महीनों पहले हुए संयुक्त सीमांकन की रिपोर्ट पेश की, फिर पुलिस ने उससे घर बनाने के प्रमाण मांगे। तब उसने राजमिस्त्री, प्लंबर, और इलेक्ट्रिशियन के बयान दर्ज कराए और निर्माण सामग्री के बिल भी जमा किए। इसके बावजूद पुलिस ने कहा कि उसने घर बनाने की अनुमति नहीं ली थी। इस पर फिरत का धैर्य टूट गया और उसने कहा कि उसका मकान अवैध रूप से कब्जा कर लिया गया है, सामान चोरी हो गए हैं, उसे मारा-पीटा गया है और जातिगत गालियाँ दी गई हैं। इसके बावजूद पुलिस कार्रवाई करने के बजाय उसे अपराधी जैसा व्यवहार कर रही थी।

तब अधिकारी ने उससे कहा कि केवल कब्जे और गाली-गलौज की शिकायत दर्ज कराई जाए, तब एफआईआर दर्ज होगी और फिर घर और ज़मीन वापस मिल सकेगी। फिरत ने वैसा ही किया और सिविल लाइन थाने में 22 नवंबर 2023 को भारतीय दंड संहिता की धारा 447, 294, 506, 34 के तहत रंजना ठाकुर और उसके सहयोगी चेतन चौधरी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। इस मामले में चालाकी से चेतन चौधरी के बेटे, दीपक चौधरी, का नाम हटा दिया गया, जबकि घटना के समय वह भी मौके पर मौजूद था। बाद में इस मामले में एससी/एसटी अधिनियम की धाराएं जोड़ी गईं, और मुआवजे की भी बात कही गई। परंतु फिरत राम का कहना है कि उसे मुआवजा नहीं चाहिए, बल्कि उसका हक़ चाहिए, और दोषियों को जेल के पीछे होना चाहिए।

दबंगों की दबंगई यहां तक नहीं रुकी। उन्होंने मार्च 2024 में दो और बार कानून अपने हाथ में लिया, जिसके बाद वर्तमान एसपी सिद्धार्थ तिवारी के निर्देश पर एफआईआर दर्ज की गई। लेकिन इन दोनों मामलों में पुलिस ने एससी/एसटी अधिनियम के तहत अपराध दर्ज नहीं किया, न ही आरोपियों की गिरफ्तारी की गई। अब सवाल यह है कि क्या पुलिस की कार्रवाई में राजनीतिक हस्तक्षेप हो रहा है या कोई और वजह है? यह तो साफ है कि फिरत राम, जो न्याय की आस में दर-दर भटक रहा है, आज भी बेघर है, जबकि उसका घर मौजूद है।

फिरत राम, अपने अधिकारों के लिए लड़ते-लड़ते थक चुका है। उसने कई बार प्रशासन की चौखट पर जाकर गुहार लगाई, लेकिन उसका अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र फर्जी निकला, जिसके बाद प्रशासन ने उसे निलंबित कर दिया। रंजना सिंह के जमीन कब्जाने के दावे भी गलत साबित हुए, क्योंकि जांच में पाया गया कि जिस ज़मीन को वह अपना बता रही थी, वह तो नगर पालिका ने पहले ही अधिग्रहण कर अटल आवास योजना के तहत दे दी थी। इसके बावजूद रंजना सिंह की रजिस्ट्री अब तक रद्द नहीं की गई है और वह मुआवजा पाने की पात्रता की भी मांग कर रही है, जो पूरी तरह से अवैध है।

रंजना सिंह और चेतन चौधरी पर दर्ज अपराधों की सूची:

अपराध क्रमांक FIR दिनांक धारा
0527 30/11/23 धारा 447, 294, 506, 34 व एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(1) व 3(2)V
0176 12/03/24 धारा 451, 295ए, 34
0181 15/03/24 धारा 294, 506, 323, 34

इन अपराधों में भारतीय दंड संहिता (IPC) और एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है।
इस पूरे प्रकरण से साफ है कि प्रशासन और पुलिसिया कार्रवाई मात्र नाम की रह गई है। जबकि एक ही मामले में एससी/एसटी अधिनियम के तहत कार्रवाई की गई है, अन्य मामलों में कुछ नहीं किया गया। लगभग 11 महीने बीत चुके हैं, लेकिन दोषियों की गिरफ्तारी नहीं हो पाई है।

सबसे बड़ी चिंता यह है कि जब राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले इस समुदाय को न्याय नहीं मिल रहा है, तो बाकी आम आदिवासी परिवारों का क्या हाल होगा? क्या सरकार और प्रशासन केवल पूंजीपतियों और दबंगों की ही सुरक्षा सुनिश्चित कर रहे हैं?

सरकार और प्रशासन के इस असंवेदनशील रवैये के खिलाफ पहाड़ी कोरवा आदिवासी परिवार आज भी न्याय की प्रतीक्षा में बैठा है। तीन से अधिक एफआईआर दर्ज होने के बावजूद आरोपी खुलेआम घूम रहे हैं। क्या पुलिस की जांच में एक साल से अधिक समय लगता है? क्या कोई उच्च अधिकारी इन मामलों की निगरानी नहीं करता? ये सवाल आज भी अनुत्तरित हैं।

आखिरकार, इस मामले से यह साफ होता है कि जब तक शासन और प्रशासन आदिवासियों की समस्याओं को गंभीरता से नहीं लेगा, तब तक न्याय की उम्मीद एक सपना ही बनी रहेगी।

 

 

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