
बेमेतरा/रायपुर।
छत्तीसगढ़ के उप मुख्यमंत्री अरुण साव एक गंभीर विवाद में घिर गए हैं। आरोप है कि उनके परिवार में आयोजित एक निजी गमी कार्यक्रम का खर्च लोक निर्माण विभाग (PWD) से उठाया गया। सामने आए दस्तावेज़ों के अनुसार करीब 97 लाख रुपये का बिल विभाग द्वारा स्वीकृत कर भुगतान किया गया है। बिल गुरुदेव टेंट हाउस, बेमेतरा की ओर से लगाया गया था, जिसे विभाग ने बाकायदा “सरकारी कार्यक्रम” के तौर पर प्रोसेस किया।

9 अगस्त 2024 का कार्यक्रम, बिल में ‘मुख्यमंत्री आगमन’ का उल्लेख
मामला 9 अगस्त 2024 से जुड़ा है। इस दिन मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय उप मुख्यमंत्री अरुण साव के घर हुए गमी कार्यक्रम में शोक व्यक्त करने पहुंचे थे।
यही निजी आयोजन सरकारी कागज़ों में “मुख्यमंत्री आगमन कार्यक्रम” के रूप में दर्ज किया गया और इसी आधार पर भारी खर्च विभागीय मद से पास कर दिया गया। दस्तावेज़ों में इस प्रविष्टि को पूरे मामले की कड़ी माना जा रहा है।
97 लाख रुपये का टेंट बिल, विभागीय दफ्तरों में चर्चा तेज
गुरुदेव टेंट हाउस के बिल में टेंट, पंडाल, साज-सज्जा, साउंड, स्टेज और अन्य व्यवस्थाओं का उल्लेख है। अधिकारियों के अनुसार निजी कार्यक्रम के लिए इतने बड़े भुगतान का उदाहरण विभाग में पहले कभी देखने को नहीं मिला।
कुछ कर्मचारियों ने off-record बताया कि फाइल तेज़ी से चली और “ऊपर से निर्देश” की चर्चा विभागीय गलियारों में आम रही।
PWD और नगरीय प्रशासन—दोनों विभाग अरुण साव के पास
प्रकरण को और गंभीर बनाता है यह तथ्य कि PWD का प्रभार स्वयं उप मुख्यमंत्री अरुण साव के पास है।
इससे सवाल उठ रहे हैं कि क्या विभागीय अधिकारी दबाव में थे और क्या निजी आयोजन को जानबूझकर सरकारी कार्यक्रम की आड़ में दिखाया गया।
विपक्ष का हमला—“यह सरकारी धन का दुरुपयोग”
विपक्ष ने इस पूरे मामले को सरकारी धन की खुली मनमानी बताया है। विपक्षी नेताओं का कहना है कि:
- निजी गमी कार्यक्रम को सरकारी योजना बताकर फंड जारी कराना गंभीर अनियमितता है
- 97 लाख रुपये के बिल की प्रक्रिया संदिग्ध है
- तत्काल उच्चस्तरीय जांच की आवश्यकता है
विपक्ष ने यह भी कहा कि यह मामला सत्ता और सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का प्रत्यक्ष उदाहरण है।
सरकार की चुप्पी ने बढ़ाए सवाल
प्रकरण के सामने आने के बावजूद न तो PWD विभाग और न ही उप मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया दी गई है। सरकारी चुप्पी से मामले पर और संशय गहरा गया है।
अब उठ रहे प्रमुख सवाल
- क्या निजी पारिवारिक गमी कार्यक्रम को सरकारी आयोजन में परिवर्तित किया गया ?
- क्या विभागीय प्रक्रिया को दरकिनार करके 97 लाख रुपये का भुगतान कराया गया ?
- क्या यह मामला वित्तीय अनियमितता और सत्ता के दुरुपयोग की श्रेणी में आता है ?
दस्तावेज़ों के सामने आने के बाद पूरा प्रकरण राजनीतिक हल्कों में चर्चा, आरोप-प्रत्यारोप और जांच की मांगों के बीच केंद्र बिंदु बन गया है।
टेक्स्ट पर क्लिक कर वीडियो देख सकते है।

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