
कोरबा। बालको टाउनशिप में प्रस्तावित G+9 बहुमंजिला रिहायशी भवन निर्माण को लेकर क्षेत्र में विरोध के स्वर उभर रहे हैं, लेकिन इस विरोध की नींव में कोई ठोस जनहित नहीं दिखता। बताया जा रहा है कि बालको मंडल—जिसके नाम पर विरोध के संदेश जारी किए गए—ने थोड़े ही समय में खुद से अपना ही खंडन जारी किया। ऐसे में सवाल उठना लाज़िमी है कि विरोध आखिर जनहित के लिए है या कुछ लोगों की निजी स्वार्थ साधने की चाल।
सेक्टर-6 में बनने वाला यह बहुमंजिला भवन बालको कर्मचारियों के लिए आवास सुविधा को बढ़ाने का कदम है। इस योजना से सैकड़ों कर्मचारी और उनका परिवार लाभान्वित होगा। इसके बावजूद कुछ लोगों द्वारा किया जा रहा विरोध यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या यह वाकई जनता की आवाज है या किसी ठेकेदार या निजी गुट का खेल।
विरोध के बहाने उठाए जा रहे सवालों पर एक-एक कर नजर डालते हैं —
- प्रोजेक्ट का कोई हिस्सा इन पार्षदों के वार्ड में नहीं
विरोध करने वाले जिन 10 पार्षदों ने उप-संचालक, ग्राम एवं नगर निवेश को पत्र भेजा है, वे खुद के क्षेत्रों में प्रोजेक्ट का किसी भी तरह का असर न होने के बावजूद विरोध कर रहे हैं। न तो उनके वार्ड में जमीन अधिग्रहण शामिल है और न ही इस निर्माण से कोई प्रतिकूल प्रभाव। ऐसे में उनका विरोध मूलभूत प्रश्न खड़ा करता है — विरोध जनहित में है या निजी हित में? - न जमीन का अधिग्रहण, न पर्यावरण को नुकसान
विरोध के पीछे एक प्रमुख तर्क यह दिया जा रहा है कि टाउनशिप से पर्यावरण को नुकसान हो सकता है या जमीन का बेजा उपयोग होगा। जबकि तथ्य यह है कि यह पूरा निर्माण बालको की पहले से ही अधिग्रहित जमीन पर होगा। न किसी गांव की जमीन ली जानी है, न किसी नागरिक को वहां से हटाया जाना है। पर्यावरणीय मानकों का पालन भी पूरी तरह से किया जा रहा है। - ठेकेदारी चमकाने का आरोप
जानकारों का कहना है कि यह विरोध वास्तविक मुद्दों की बजाए ठेकेदारी के खेल से उपजा है। योजना के तहत कार्यों का ठेका बनारसी राजनीति की तरह स्वार्थ और हितों पर टिका है। जिन लोगों की ठेकेदारी दांव पर लगी है, वही समूह पुश्तैनी ‘जनसेवा’ का दावा करते हुए विरोध का राग अलाप रहा है। - भाजपा मंडल के नाम का दुरुपयोग ?
विरोध के लिए ‘बालको मंडल’ यानी भाजपा के स्थानीय संगठन का नाम बार-बार इस्तेमाल किया जा रहा है। पार्टी के जानकार पदाधिकारियों का कहना है कि यह विरोध पार्टी की लाइने से बाहर है और निजी व्यक्तियों की चाल है। एक ओर जहां उद्योग मंत्री व कोरबा विधायक टाउनशिप का शिलान्यास करने जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर खुद को भाजपा से जुड़ा बताने वाले नेता इसके विरोध में उतरकर पार्टी की छवि पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। - कर्मचारियों का हित प्राथमिकता पर
वर्षों से बालको में कार्यरत कर्मचारियों को आवास की उपलब्धता, सुविधाओं में सुधार और सुरक्षित निवास की आवश्यकता है। G+9 बिल्डिंग प्रोजेक्ट इसी दृष्टिकोण को पूरा करता है। कर्मचारी संघ का भी कहना है कि ऐसे कदम स्वागत योग्य हैं और संगठन को भी इन्हें जन हितैषी कदम मानते हुए समर्थन देना चाहिए।
सवालों के घेरे में विरोध की नीयत
ऐसा पहली बार नहीं है कि विकास कार्यों को लेकर अनर्गल विरोध किया जा रहा हो। लेकिन इस मामले में खास बात यह है कि विरोध के केंद्र में जनहित का कोई ठोस आधार नहीं है। विरोध करने वाले पार्षदों के इलाकों में प्रोजेक्ट का कोई प्रभाव ही नहीं पड़ता। ना स्थानीय जनता में कोई असंतोष की बात सामने आई है, ना अधिग्रहण का मुद्दा। फिर अचानक विरोध क्यों ?
राजनीतिक द्वंद्व या स्वार्थ की राजनीति ?
विरोध को लेकर राजनीतिक हलचल भी तेज है। कुछ लोग इसे आंतरिक भाजपा राजनीति और स्वार्थी गुटबाजी का परिणाम मानते हैं। ऐसा लगता है कि मुद्दे की जड़ में भाजपा के भीतर ही किसी खास व्यक्ति या ठेकेदार के हितों का टकराव है—न कि जनता का हित। यह विरोध, सच्चाई की बजाय एक ‘दिखावे की राजनीति’ के रूप में सामने आ रहा है।बालको टाउनशिप प्रोजेक्ट से आने वाले समय में शहर की आवासीय क्षमता बढ़ेगी और रोजगार व आर्थिक गतिविधियों को भी फायदा होगा। यदि विरोध की जड़ में कोई ठोस जनहित का मुद्दा होता तो चर्चा का स्वरूप अलग होता। लेकिन वर्तमान में उठे सवालों से ज़्यादा संदेह उठता है कि यह विरोध जनता के हित में नहीं, बल्कि कुछ निजी हितों की रक्षा करने का हथकंडा है। ऐसे में स्थानीय प्रशासन और समाज को भी इस विरोध के पीछे की पृष्ठभूमि पर सूक्ष्मता से विचार करना चाहिए।

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