
करतला/कोरबा (ग्राम यात्रा)
सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार जनपद करतला में करोड़ों रुपए के सरकारी निर्माण कार्यों की अग्रिम राशि एक ही ठेकेदार नीरज मिश्रा के हाथों में सौंप दी गई है ।
गांवों में चर्चाएँ तेज हैं — अगर कल यह ठेकेदार पैसा लेकर भाग जाए, तो जवाबदेही किसकी होगी ? सरपंच-सचिव की या फिर उन अफसरों और जनप्रतिनिधियों की, जिन्होंने नियमों को ताक पर रखकर यह सब होने दिया ?
पंचायतों में मिश्रा का बोलबाला, करोड़ों के ठेके उसके नाम
करतला ब्लॉक के दर्जनभर पंचायतों में निर्माण कार्यों का ठेका एक ही नाम पर दर्ज है — नीरज मिश्रा ।
सूत्रों के मुताबिक :
- पुरैना : आंगनबाड़ी भवन ₹11 लाख, धान गोदाम ₹20 लाख
- सुखरीकला : धान गोदाम ₹20 लाख
- बीरतराई, खरहड़कूड़ा, दमखांचा, साजापानी : प्राथमिक शाला भवन ₹16-16 लाख
- तुमान : धान चबूतरा ₹15 लाख
- चिकनीपाली : धान चबूतरा ₹15 लाख, धान गोदाम ₹20 लाख
- गिधौरी : दो आंगनबाड़ी भवन ₹22 लाख
- जुनवानी : पीडीएस भवन ₹12 लाख, आंगनबाड़ी भवन ₹11 लाख
इन परियोजनाओं की अग्रिम राशि पंचायतों से आहरित कर ठेकेदार को सौंप दी गई है । यानी काम शुरू होने से पहले ही ठेकेदार के खाते में करोड़ों रुपये जा चुके हैं ।
पंचायत निर्माण एजेंसी या ठेकेदार का ठिकाना ?
शासन के अनुसार 20 लाख तक के निर्माण कार्यों की जिम्मेदारी ग्राम पंचायत को स्वयं निभानी होती है, ताकि काम की गुणवत्ता और जवाबदेही तय रहे ।
लेकिन करतला ब्लॉक में हालात उलट हैं — पंचायतें खुद ठेकेदार बन रही हैं और फिर कमीशन लेकर काम बाहरी ठेकेदारों को दे रही हैं ।
कई पंचायतों में तो निर्माण स्थल पर पंचायत का नाम तक नहीं, सिर्फ ठेकेदार का बोर्ड लगा है ।
खनिज शाखा से पहले ही लीक हो जाती है सूचना
सबसे बड़ा खुलासा यह कि जिला खनिज न्यास मद में स्वीकृत निर्माण कार्यों की जानकारी नीरज मिश्रा को पहले ही मिल जाती है ।
सूत्रों का दावा है कि खनिज शाखा में पदस्थ एक महिला कर्मचारी मिश्रा को परियोजनाओं की सूची पहले से उपलब्ध कराती है ।
इसके बाद मिश्रा संबंधित सरपंच-सचिव से संपर्क कर “प्रस्ताव पास कराने” और “फंड स्वीकृति दिलाने” का भरोसा देता है ।
मोटी रकम देकर ठेका उसके नाम तय हो जाता है — और फिर शुरू होता है “पैसा दो, ठेका लो” का खेल ।
जनपद अध्यक्ष व अफसरों के संरक्षण की चर्चा
गांवों में यह चर्चा आम है कि जनपद अध्यक्ष अशोक विश्राम कंवर और कुछ अफसर इस ठेकेदारी नेटवर्क के मुख्य संरक्षक हैं ।
कई सूत्रों ने दावा किया कि मिश्रा के कई काम जनपद के जरिए एक ही सिग्नेचर में पास हो जाते हैं ।
यहां तक कि कुछ प्रोजेक्ट में जनपद अध्यक्ष की साझेदारी की भी चर्चा है ।
अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि यही वजह है कि नीरज मिश्रा को न कोई अधिकारी रोकता है, न कोई ठेकेदारी नियम ।
जनता का पैसा, पर जवाब कोई नहीं
अब असली खतरा यह है कि अगर मिश्रा काम अधूरा छोड़कर फरार हो गया, तो जिम्मेदारी सरपंच-सचिवों के गले में फंसेगी ।
शासन के नियमों के मुताबिक अग्रिम राशि की गड़बड़ी वित्तीय अनियमितता मानी जाएगी, और इसकी रिकवरी पंचायत प्रतिनिधियों से ही होगी ।
यानी “काम उसका, जवाब हमारा” — यही हाल है इन ग्राम पंचायतों का ।
प्रशासन खामोश, जनता सवाल पूछ रही
करतला ब्लॉक के कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस मामले की जांच की मांग की है ।
उनका कहना है कि —
“अगर प्रशासन ने अब भी आंखें मूंदे रखीं, तो आने वाले महीनों में करोड़ों का नुकसान तय है । इस ठेकेदारी प्रथा को खत्म करना ही होगा ।”
अब जिला प्रशासन के सामने चुनौती है —
- प्रत्येक परियोजना के वर्क ऑर्डर और भुगतान रसीद की जांच करे ।
- खनिज शाखा से लीक हो रही सूचनाओं की ऑडिट करे ।
- संबंधित अफसरों और जनप्रतिनिधियों की भूमिका सार्वजनिक करे ।
सवाल वही — जिम्मेदार कौन ?
गांव के एक वरिष्ठ नागरिक ने कहा —
“हमने पंचायत पर भरोसा किया, लेकिन अब सब ठेकेदार के हवाले है । अगर पैसा डूबा तो गांव भुगतेगा, अफसर नहीं ।”
यानी अब बात ठेकेदार से ज़्यादा सिस्टम की नीयत पर उठ रही है ।
क्योंकि जनता का पैसा है, जनता का विकास है — और जनता ही जवाब मांगेगी ।

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