अपर आयुक्त ने फिर कर दिया खेला ! चहेतों को बचाने बेकसूरों को थमाया नोटिस — क्या होगी कार्रवाई या फिर खानापूर्ति से निपटेगा मामला ?

कोरबा।
नगर निगम कोरबा में एक बार फिर “खेला” हो गया है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के फ्लेक्स को पशु वाहन में ले जाने के मामले में अब जिम्मेदारी तय करने की जगह चहेतों को बचाने और बेकसूरों पर कार्रवाई करने का आरोप लग रहा है।
नगर निगम के प्रभारी आयुक्त एवं अपर आयुक्त विनय मिश्रा पर सवाल उठ रहे हैं कि उन्होंने एक बार फिर वही किया जो उनके कार्यकाल की पहचान बन गया है — बड़ी गलती पर छोटे कर्मचारियों को बलि का बकरा बनाना।
राज्योत्सव की तैयारी में हुआ बड़ा फॉल्ट
नगर निगम कोरबा ने राज्योत्सव कार्यक्रम के मद्देनज़र अलग-अलग नोडल अधिकारी नियुक्त किए थे, जिन्हें मैदान की साज-सज्जा और प्रचार सामग्री की जिम्मेदारी दी गई थी।
इसी दौरान मुख्यमंत्री सहित अन्य जनप्रतिनिधियों के कटआउट और फ्लेक्स को पशु-वाहन से कार्यक्रम स्थल तक ले जाया गया, जिसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल होते ही हड़कंप मच गया।

मामले की प्रारंभिक जांच में यह स्पष्ट हुआ कि कटआउट ले जाने की जिम्मेदारी उप अभियंता अश्वनी दास के पास थी। उन्होंने ही पशु वाहन में फ्लेक्स और कटआउट लोड कर ओपन थिएटर मैदान तक पहुंचवाया।
नियमों के अनुसार प्रारंभिक जिम्मेदारी उन्हीं की बनती है, पर नगर निगम ने नोटिस भेजने की दिशा उलट दी। अश्वनी दास को भी नोटिस जारी किया गया लेकिन उसके साथ और ऊपर के अधिकारियों को बक्श दिया गया है। पूरे कार्यक्रम के नोडल अधिकारी अधीक्षण अभियंता सुरेश बरुवा है उनको भी नोटिस नहीं किया गया जबकि सैद्धान्तिक व नीतिगत जिम्मेदारी उनकी ही बनती है।
वास्तविक जिम्मेदार बचे, छोटे कर्मचारी फंसे
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, इस काम का पूरा सुपरविजन कार्यपालन अभियंता भूषण उरांव की 5 सदस्यीय टीम के अधीन था।
फिर भी स्वच्छता निरीक्षक सचिन्द्र थवाईत और फायर ब्रिगेड प्रभारी अभय मिंज को नोटिस जारी कर दिया गया है — जिनका इस काम से सीधा संबंध नहीं था।
दोनों को 48 घंटे के भीतर जवाब देने के निर्देश दिए गए हैं।

स्थानीय कर्मचारी नाराज़ हैं कि “जो निर्णय लेते हैं वे बच जाते हैं, और जो आदेश पालन करते हैं, वही फंस जाते हैं।”
विनय मिश्रा पर फिर उठे सवाल
यह कोई पहली बार नहीं जब अपर आयुक्त विनय मिश्रा के प्रभार में विवाद हुआ हो।
पिछले दिसंबर में भी उन्होंने कथित तौर पर प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) तक गलत जानकारी भेज दी थी, जिसकी वजह से नगर निगम की प्रतिष्ठा पर सवाल खड़े हुए थे।
अब एक बार फिर वही पैटर्न दिखाई दे रहा है — पहले नियमों की अनदेखी, फिर अफसरशाही का संरक्षण, और आखिर में खानापूर्ति के लिए नोटिस।
शहर के जानकारों का कहना है —
“जब भी मिश्रा प्रभार में रहते हैं, कोई न कोई विवाद खड़ा होता है। जिम्मेदारी तय करने की बजाय ‘कवरअप’ में ज्यादा वक्त लगाया जाता है।”
भाजपा शासन में कांग्रेस स्टाइल का ‘सिस्टम’
लोगों का यह भी कहना है कि भाजपा शासन में भी नगर निगम के अंदर कांग्रेस शासनकाल जैसे तौर-तरीके जिंदा हैं —
जहां चहेते अफसरों को बचाना और बेकसूरों को सज़ा देना आम चलन बन चुका है।
नगर निगम का यह रवैया न सिर्फ कर्मचारियों में असंतोष फैला रहा है, बल्कि पूरे शहर की छवि पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।
अब जनता पूछ रही है
- क्या वास्तव में दोषियों पर कार्रवाई होगी या फिर नोटिस भेजकर मामला ठंडा कर दिया जाएगा ?
- क्या नगर निगम आयुक्त यह बताएंगे कि नियमों की जिम्मेदारी तय क्यों नहीं की गई ?
- क्या फिर से यह मामला फाइलों में दबा रह जाएगा, जैसे पहले हुआ था ?

इस पूरे प्रकरण ने एक बार फिर नगर निगम कोरबा की कार्यशैली पर बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में चर्चा है कि अब इस ‘खेला’ की जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी या वरिष्ठ अधिकारी से कराई जानी चाहिए।
क्योंकि अगर अब भी कार्रवाई नहीं हुई — तो यह संदेश जाएगा कि नगर निगम में लापरवाही नहीं, संरक्षण की परंपरा चल रही है।

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