गोंडवाना अस्मिता का उदय : मनेंद्रगढ़ में 15वां गोंडवाना सांस्कृतिक विजय महोत्सव — परंपरा, पहचान और प्रतिरोध का संगम

मनेंद्रगढ़। छत्तीसगढ़ के भलौर स्थित गोंडवाना सांस्कृतिक मैदान में इस बार महज़ एक उत्सव नहीं, बल्कि अस्तित्व की पुकार गूंज उठी।
15वें गोंडवाना सांस्कृतिक विजय महोत्सव एवं ईसर गौरा महापूजन कार्यक्रम ने यह साबित किया कि परंपरा आज भी सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि जीवित प्रतिरोध है।
मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पाली-तानाखार विधायक दादा तुलेश्वर हीरा सिंह मरकाम ने मंच से जो कहा, वह किसी भी राजनीतिक बयान से कहीं गहरी बात थी —
“शराब और नशे के रूप में वही जहर आज सरकार आदिवासियों को परोस रही है, जो कभी हमारे पूर्वजों को कोलाहल विष के रूप में दिया गया था।”
“यह महोत्सव गोंडवाना की आत्मा का उत्सव है”
मरकाम ने कहा कि यह पर्व केवल धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि 88 पीढ़ियों की सांस्कृतिक चेतना का उत्सव है।
उन्होंने जोर देकर कहा —
“हमारे समाज के तीन संस्कार — जन्म, विवाह और मृत्यु — आज भी जीवित हैं। यही हमारी संस्कृति की असली ताकत है, और यही गोंडवाना की पहचान।”
उनका वक्तव्य उस गहरी चिंता की ओर भी संकेत करता है कि जिस समाज ने हजारों वर्षों की परंपरा बचाई, उसे अब सरकारी नीतियों और नशे की राजनीति ने कमजोर करना शुरू कर दिया है।

नशा मुक्त समाज ही असली स्वराज की दिशा
मरकाम ने अपने संबोधन में कहा कि अगर समाज को सशक्त बनाना है, तो नशामुक्ति आंदोलन को घर-घर पहुंचाना होगा।
उन्होंने याद दिलाया कि गोंडवाना सम्राट संग्राम शाह मंडावी जैसे महान शासकों ने 1750 वर्षों पूर्व इस भूमि को संस्कृति और शासन का आदर्श बनाया था।
“वनाधिकार कानून के तहत आदिवासियों को जो हक मिला है, वह गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के लम्बे संघर्ष का नतीजा है, वरना ये अधिकार भी किताबों तक सीमित रहते।”
“एक मुठ्ठी चावल” — आंदोलन नहीं, आत्मबल का प्रतीक
गोंगपा के राष्ट्रीय महासचिव श्याम सिंह मरकाम ने कहा कि गोंडवाना का महाकल्याण तभी संभव है जब हर गांव एक मुठ्ठी चावल के संकल्प को साकार करे।
उन्होंने कहा —
“यह केवल चावल का दान नहीं, यह आत्मबल का संकल्प है — जो हमारी अस्मिता को एक सूत्र में बांधता है।”
गोंगपा के राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. एल.एस. उदय ने समाज को गोंडवाना के पाँच मूल सिद्धांतों का पालन करने की अपील की —
माता-पिता की सेवा, सत्य का मार्ग, सम्मानजनक जीवन, लोभ से परे कर्म, और नशामुक्त जीवन।
राजनीति में भी चाहिए सांस्कृतिक शुचिता : माया प्रताप सिंह
जनपद अध्यक्ष माया प्रताप सिंह परस्ते ने बताया कि जिले की 83 ग्राम पंचायतों में से 27 पंचायतों में गोंडवाना विचारधारा से प्रेरित सरपंच चुने गए हैं।
उन्होंने कहा —
“राजनीति में नशे और धनबल की जगह अब विचार और संस्कार की राजनीति को जगह देनी होगी। यही सच्चे अर्थों में समाज का पुनर्जागरण है।”
“2028 में बनेगी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की सरकार”
गोंगपा के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष गुरु केवल प्रकाश साहब ने कहा कि सतनाम धर्म और गोंडी धर्म दोनों सत्य और सेवा के मार्ग पर चलते हैं।
उन्होंने स्पष्ट कहा —
“2028 में छत्तीसगढ़ में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की सरकार बनाकर हम उस सांस्कृतिक स्वराज को स्थापित करेंगे, जिसका सपना दादा हीरा सिंह मरकाम ने देखा था।”
लोक संस्कृति की गूंज और नई पीढ़ी की भागीदारी
कार्यक्रम में मंच पर लोक कलाकारों ने गोंडवाना के लोकगीतों, नृत्यों और पारंपरिक वाद्य-स्वरों से पूरा मैदान झंकृत कर दिया।
दिलसाय मरपच्ची, जिन्द जानम आरमो, बबली रानी, हेमा देवी उईके जैसी लोकप्रिय लोकधारा कलाकारों की प्रस्तुतियों ने गोंड समाज के गौरव को सजीव किया।
आयोजन की सफलता पर गोंगपा प्रदेश अध्यक्ष इंजीनियर संजय सिंह कमरो ने पूरी आयोजन टीम को बधाई दी।
कार्यक्रम का संचालन केवल सिंह मरकाम (जिलाध्यक्ष, एमसीबी) ने किया, जबकि आभार प्रदर्शन दीपक कुमार सिंह मरावी (पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष, युवा मोर्चा छत्तीसगढ़) ने किया। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से राम अधीन सिंह पोया निलेश पाण्डेय, छत्रपाल सिंह मरावी, संतलाल सिंह उर्रे, शिवप्रसाद सिंह मरावी, सुमन श्याम, सत्यनारायण सिंह पोया, देवराज सिंह मरावी, आदि गणमान्य अतिथियों की उपस्थिति रही।
गोंडवाना महोत्सव : परंपरा, प्रतिरोध और पहचान का मिलन
गोंडवाना विजय महोत्सव अब एक धार्मिक आयोजन से कहीं आगे निकल चुका है।
यह उस समाज की पहचान बन गया है, जिसने संघर्ष में अपने अस्तित्व को बचाया और अब पुनः सांस्कृतिक अस्मिता के रूप में उभर रहा है।
यह आयोजन यह याद दिलाता है कि —
“सरकारें चाहे कितनी भी योजनाएँ बनाएँ, पर जब तक समाज अपनी जड़ों से नहीं जुड़ेगा, तब तक अस्मिता सिर्फ किताबों में रह जाएगी।”

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