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संरक्षित पहाड़ी कोरवा के मकान पर फर्जी आदिवासी रंजना सिंह का कब्जा! प्रशासन की अंतिम चेतावनी – दो दिन में खाली करो नहीं तो होगी बलपूर्वक कार्रवाई, चेतन चौधरी और पास्टर चंद्रा के संरक्षण में दो साल से चल रहा कब्जा, देवी-देवताओं की तस्वीरें तक फेंकी गईं… अब प्रशासन ने कसी नकेल

कोरबा।
कोरबा में फर्जी आदिवासी बनकर सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने और संरक्षित पहाड़ी कोरवा की पुश्तैनी ज़मीन पर कब्जा जमाने का रंजना सिंह गैंग आखिरकार प्रशासन के शिकंजे में फँस गया है।

करीब दो साल से रंजना सिंह नामक महिला ने खुद को आदिवासी बताकर राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र फिरत राम (पहाड़ी कोरवा) के मकान और ज़मीन पर कब्जा कर रखा है। हैरत की बात यह कि कब्जे के दौरान उसने न सिर्फ़ पहाड़ी कोरवा परिवार को बेघर किया बल्कि उनके घर में रखी देवी-देवताओं की तस्वीरें तक बाहर फेंक दीं।

कोरबा में रंजना सिंह को मिला नोटिस, चेतन चौधरी कोरबा

इस पूरे खेल में उसका साथ दिया चेतन चौधरी और पास्टर चंद्रा ने, जिनके खिलाफ़ पहले से ही 3-3 एफआईआर दर्ज हैं। लेकिन राजनीतिक और सामाजिक दबाव में अब तक कार्रवाई ढीली पड़ी रही।


सीमांकन से लेकर कब्जा तक की पूरी कहानी

दरअसल, आंछिमार निवासी संरक्षित जनजाति पहाड़ी कोरवा फिरत राम की पुश्तैनी ज़मीन कोरबा के एमपी नगर अटल आवास के सामने स्थित है। राजस्व विभाग से सीमांकन कराने के बाद फिरत राम ने खसरा नंबर 297 में पक्की बॉन्ड्रीवाल और एक कमरा बनवाया था।

सितंबर 2023 में अचानक रंजना सिंह वहाँ पहुँची और चेतन चौधरी की मदद से मकान और जमीन पर कब्जा कर लिया। जब पीड़ित कोरवा परिवार ने थाने में शिकायत दर्ज कराई तो पुलिस ने नामजद FIR दर्ज की, लेकिन कब्जाधारियों पर कोई असर नहीं हुआ।


फर्जी आदिवासी का पर्दाफाश

रंजना सिंह लगातार यह दावा करती रही कि जमीन उसकी है और उसका खसरा नंबर 236/3 है। लेकिन जांच में जिला छानबीन समिति ने उसके आदिवासी होने का दावा फर्जी पाया और उसका जाति प्रमाणपत्र निरस्त कर दिया।
साथ ही, राजस्व न्यायालय ने पाया कि जिस जमीन की रजिस्ट्री दिखाई जा रही थी, वह भी फर्जी तरीके से की गई थी।

यही नहीं, कोर्ट के आदेश के बाद तहसीलदार कार्यालय से साफ-साफ नोटिस जारी किया गया कि जमीन शासन के नाम दर्ज है और कब्जा तत्काल हटाया जाए।


प्रशासन की सख्ती और किराए की महिलाएँ

कल जब जिला प्रशासन की टीम कब्जा खाली कराने पहुँची तो वहाँ रंजना सिंह और उसके समर्थकों ने नया खेल कर दिया। कब्जा बनाए रखने के लिए कुछ महिलाओं को किराए पर बिठा दिया गया ताकि प्रशासनिक कार्रवाई भावनात्मक दबाव में फँस जाए।

इतना ही नहीं, वही पास्टर चंद्रा, जिस पर हिंदू देवी-देवताओं की तस्वीरें फेंकने और धार्मिक भावनाएँ आहत करने का केस दर्ज है, भी मौके पर पहुँच गया। उसने कुछ तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ताओं को साथ लाकर प्रशासन का विरोध शुरू कर दिया।


दो दिन की मोहलत – फिर होगी बलपूर्वक कार्रवाई

स्थिति बिगड़ती देख प्रशासन ने मौके पर मौजूद लोगों को अंतिम चेतावनी दी। लेकिन माहौल तनावपूर्ण होते देख कार्रवाई रोकते हुए कब्जा धारकों को और दो दिन का वक्त दिया गया है जबकि 25 सितंबर को तहसील कार्यालय से जारी आदेश में पहले केवल 27 सितम्बर 2025 तक का वक्त दिया गया था।

तहसीलदार कार्यालय ने साफ कहा है कि –
 “यह भूमि शासन के नाम दर्ज है। न्यायालय का आदेश भी प्राप्त है। दो दिन में कब्जा खाली करो, अन्यथा बलपूर्वक अतिक्रमण हटाया जाएगा।”


यह प्रकरण सिर्फ़ अवैध कब्जे का नहीं बल्कि फर्जी जाति प्रमाणपत्र, धार्मिक रूपांतरण गिरोह और जमीन माफियाओं के गठजोड़ का है।
अब जब सारा मामला उजागर हो चुका है, तो शासन की अगली कार्रवाई पूरे रैकेट को ध्वस्त करने की दिशा में होगी।

 
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