कोरबा।
छत्तीसगढ़ की राजनीति में कई रंगीन किरदार देखे गए हैं, लेकिन ननकीराम कंवर जैसा “धरना-पुरुष” शायद ही कोई और हो। न धरने से पीछे हटते हैं, न आरोप लगाने से थकते हैं। उनकी छवि ईमानदार नेता की मानी जाती है, लेकिन दिक़्क़त ये है कि उनके आसपास खड़े सिपहसालार अक्सर विवादों और दाग़ों से घिरे रहते हैं। कहावत है “दूध का दूध, पानी का पानी”, पर कंवर जी के साथ तो उल्टा ही है—“दूध कम, पानी ज़्यादा।”
14 बिंदुओं की ‘फिक्शन स्टोरी’
ताज़ा किस्सा—कंवर जी ने कोरबा कलेक्टर अजीत वसंत पर 14 बिंदुओं का पत्र मुख्यमंत्री को भेजा। लेकिन इसमें तथ्य कम और कल्पना ज्यादा निकली। आरोप पढ़कर ऐसा लगा मानो किसी ने राजनीतिक थ्रिलर का मसौदा भेज दिया हो। न प्रमाण, न दस्तावेज़—बस आरोपों की झड़ी।
2017 का मंच वाला तमाशा
कंवर जी के आरोप लगाने का पुराना रिकॉर्ड है। मई 2017 को याद कीजिए—रामपुर विधानसभा क्षेत्र के एक गांव में सुराज अभियान का कैम्प था। मंच पर मंत्री केदार कश्यप भाषण दे रहे थे। तभी अचानक ननकीराम माइक पकड़कर गरज पड़े—
“इलाके को फर्जी ODF घोषित कर दिया गया है!”
मंच पर बैठे तत्कालीन कलेक्टर पी. दयानंद तैश में आ गए। उन्होंने वहीं सार्वजनिक तौर पर झाड़ पिलाई—
“कंवर साहब, एक घर की समस्या को पूरे इलाके पर मत थोपिए। और इस मामले में आप कभी मेरे पास आए भी नहीं।”
पब्लिक तालियां बजा रही थी, और मंत्री कश्यप को बीच-बचाव करना पड़ा। आज तक उस ‘ODF आरोप’ की पुष्टि नहीं हो पाई।
आरोपों की आदत, सबूतों की कमी
इतिहास गवाह है कि ननकीराम जी के आरोप लगाना उतना ही आसान है, जितना चाय के ठेले पर राजनीति करना।
- कभी कांग्रेस सरकार के समय ODF को फर्जी बताते रहे,
- कभी भाजपा की हार का जिम्मा अपने ही नेताओं पर डाल दिया,
- तो कभी कलेक्टरों पर मनमाने इल्जाम ठोक दिए।
ताज़ा प्रकरण में भी वही ढर्रा— बिना पुख़्ता सबूत के “कलेक्टर सब ग़लत करा रहे हैं” का राग।
धरना-शिकायत ही राजनीति?
विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी शिकायत के साथ दस्तावेज़ और तथ्य ज़रूरी होते हैं। लेकिन ननकीराम जी का पैटर्न यही दिखाता है कि—
- पहले आरोप लगाओ,
- फिर जांच की मांग करो,
- और आख़िर में कहते रहो “कार्रवाई नहीं करेंगे तो धरना पर बैठ जाऊंगा”।
जनता पूछ रही है—आख़िर यह राजनीति है या सिर्फ़ धरना और शिकायत की आदत ?
फिर लिखा रायपुर कलेक्टर को धरना देने पत्र
एक बार फिर रायपुर कलेक्टर को पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर द्वारा पत्र सौंपा गया है। पत्र में मुख्यमंत्री निवास पर धरने की चेतावनी दी गई है। सवाल यह उठता है कि क्या यह पत्र वास्तव में उनकी पीड़ा का परिणाम है या फिर एक सुनियोजित कोशिश, जिसके पीछे छत्तीसगढ़ की सुशासन व्यवस्था और भाजपा सरकार की छवि को धूमिल करने की साजिश छिपी है ?
पत्र को देखने पर प्रथम दृष्टि में यह संदेह उत्पन्न होता है कि इतने वरिष्ठ और जिम्मेदार नेता—जो स्वयं गृह मंत्री जैसे अहम पद पर रह चुके हैं—क्या वाकई इस तरह की भाषा और अंदाज़ में पत्र लिख सकते हैं ? यह शैली और कथ्य किसी साजिश की ओर अधिक इशारा करता है, बजाय इसके कि यह एक वरिष्ठ भाजपा नेता की वास्तविक अभिव्यक्ति हो।
अगर यह पत्र वास्तव में किसी सुनियोजित प्रयास का हिस्सा है, तो यह छत्तीसगढ़ शासन, आईएएस-आईपीएस बिरादरी और संपूर्ण प्रशासनिक व्यवस्था को बदनाम करने की गहरी चाल हो सकती है। ऐसी स्थिति में उच्चस्तरीय जांच आवश्यक है, ताकि सच्चाई सामने आ सके और आमजन तक स्पष्ट जानकारी पहुंचे।
अन्यथा, अधिकारी वर्ग अपने आप को राजनीतिक दबावों से घिरा महसूस करेगा और जनहित में किए जाने वाले कार्य प्रभावित होंगे। इसलिए इस पूरे प्रकरण की पारदर्शी जांच कर सरकार को स्पष्ट संदेश देना होगा कि प्रशासनिक तंत्र किसी भी राजनीतिक दबाव या साजिश का मोहरा नहीं बनेगा।

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