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कोरबा मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भोजन ठेका खत्म होने के बावजूद अवैध रूप से एक्सटेंशन। GST महीनों से जमा नहीं, घटिया भोजन परोसा जा रहा, बिलिंग में हेराफेरी — पढ़िए घोटाले की पूरी रिपोर्ट…

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कोरबा।
कोरबा जिले का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल — स्व. बिसाहू दास महंत स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय संबद्ध चिकित्सालय इन दिनों अव्यवस्थाओं, भ्रष्टाचार और घोटालों का गढ़ बन चुका है। सिक्योरिटी, हाउसकीपिंग और अब मरीजों के भोजन आपूर्ति में भी ऐसा घोटाला चल रहा है, जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे।

ठेका खत्म… फिर भी सेवा जारी !

यहां सामान्य मरीज और गर्भवती महिलाओं के लिए शासन की ओर से भोजन प्रदाय किया जाता है। सामान्य मरीज के लिए प्रतिदिन 150 रुपए और गर्भवती मरीज के लिए 250 रुपए (150 शासन + 100 NHM) निर्धारित है। इसका ठेका सी एस फिलिप फर्म को दिया गया था, जिसकी वैध अवधि 31 दिसंबर 2024 को समाप्त हो चुकी है।

हैरानी की बात ये है कि 6 माह बीतने के बाद भी न तो नई निविदा निकाली गई और न ही टेंडर आमंत्रित किया गया। पुराना ठेका नियम विरुद्ध तरीके से अवैध एक्सटेंशन पर चलाया जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि इसमें भी ‘सेटिंग’ का बड़ा खेल है।

जीएसटी जमा नहीं कर रही फर्म

शासन द्वारा तय दर में GST पहले से शामिल है। लेकिन सूत्रों के अनुसार, फर्म महीनों से उस GST को सरकार को जमा ही नहीं कर रही। यानी हर माह लाखों का बिल पास तो हो रहा है, लेकिन शासन को मिलने वाला टैक्स कहीं नहीं पहुंच रहा। इस टैक्स चोरी की जानकारी अस्पताल प्रबंधन को भी है, लेकिन एमएस साहब इसे लेकर पूरी तरह खामोश।

खाने की गुणवत्ता घोर स्तरहीन

खाना कितना घटिया परोसा जा रहा है, इसका अंदाजा अस्पताल में भर्ती मरीजों की शिकायतों से लगाया जा सकता है। निर्धारित मेन्यू की खुलेआम अनदेखी हो रही है।

  • हर दिन एक ही तरह की सस्ती और पानीदार सब्जी।
  • दाल इतनी पतली कि मरीज चम्मच से ढूंढते रह जाएं।
  • चावल की गुणवत्ता घटिया और अधपका।

मरीजों और उनके परिजनों की शिकायत रहती है कि खाना स्वादहीन, बेस्वाद और कई बार गंदा होता है। लेकिन न कोई निरीक्षण, न सुनवाई। आलम ये है कि आधे से ज्यादा मरीज खाना लेने से इंकार कर देते है, और घर से मंगवाकर खाना खाया जाता है। बावजूद खाना न खाने वाले मरीजों की भी बिलिंग हो जाती है।

फर्जी मरीज संख्या — बिलिंग का खेल

भोजन बिलिंग में भी गड़बड़ी का बड़ा खेल चल रहा है। सूत्रों के अनुसार मरीजों की वास्तविक संख्या के मुकाबले बिल में संख्या बढ़ाकर पेश की जाती है।
उदाहरण देखिए —
जब अस्पताल 100 बेड का जिला अस्पताल था, तो हर महीने भोजन का बिल 2 लाख रुपए तक पहुंचता था।
अब 350 बेड का सुपर स्पेशलिटी मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल है, लेकिन हर महीने बिल 10 से 15 लाख रुपए के बीच ही रहता है।

यानी मरीजों की संख्या बढ़ाई जाती है, घटिया खाना दिया जाता है और बिल फुल पास। कभी कटौती नहीं, बिल में कोई निरीक्षण रिपोर्ट नहीं…

औचक निरीक्षण न होने का फायदा

इतने बड़े खेल का खुलासा अब तक इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि कभी औचक निरीक्षण ही नहीं हुआ। एमएस डॉ. गोपाल कंवर की प्राथमिकता सिर्फ बिल पास कराना है, मरीजों की गुणवत्ता, GST जमा हुआ या नहीं — इससे उन्हें कोई मतलब नहीं। सूत्र बताते हैं कि बिल भारी-भरकम होने पर ही उसमें उनकी दिलचस्पी बढ़ जाती है।

सवाल जो अब उठ खड़े हुए हैं…

  1. ठेका खत्म होने के 6 महीने बाद भी नई निविदा क्यों नहीं ?
  2. GST का पैसा शासन को जमा क्यों नहीं कर रही फर्म ?
  3. घटिया भोजन, खराब क्वालिटी और फर्जी मरीज संख्या पर कोई निरीक्षण क्यों नहीं ?
  4. क्या एमएस साहब की जानकारी में नहीं है ये सब, या जानबूझकर नजरअंदाज कर रहे हैं ?
  5. स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन आंखें क्यों बंद किए बैठा है ?

जिम्मेदार कौन ?

स्पष्ट है कि अस्पताल में मरीजों के हक का भोजन भी हेराफेरी की भेंट चढ़ रहा है। शासन को टैक्स का नुकसान, मरीजों को घटिया खाना और ठेकेदार को मोटा मुनाफा।

 
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