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मेडिकल कॉलेज अस्पताल में फिर मानवता हुई शर्मसार ! गुस्साए परिजनों ने अस्पताल में जमकर की तोड़फोड़, लापरवाही की दो तस्वीरें – एक मासूम की तड़पती जान, दूसरी लाश से लिपटकर बिलखता परिवार, देखिए ख़बर…

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मेडिकल कॉलेज अस्पताल में फिर मानवता हुई शर्मसार ! गुस्साए परिजनों ने अस्पताल में जमकर की तोड़फोड़, लापरवाही की दो तस्वीरें – एक मासूम की तड़पती जान, दूसरी लाश से लिपटकर बिलखता परिवार, देखिए ख़बर…

कोरबा। सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल एक बार फिर बेरहम सिस्टम का शर्मनाक चेहरा बनकर सामने आया है। बुधवार को यहां दो दर्दनाक घटनाओं ने मानवता को झकझोर कर रख दिया। एक तरफ इलाज की आस में आया दो साल का मासूम समय पर डॉक्टर न मिलने से दम तोड़ बैठा, तो दूसरी तरफ सड़क हादसे में जान गंवाने वाले युवक के शव को बगैर परिजनों को बताए मर्चुरी में पटक दिया गया।

इन दोनों घटनाओं ने एक सवाल फिर खड़ा कर दिया है – क्या मौत के बाद ही सरकारी अस्पतालों की मशीनरी जागती है ?

पहली तस्वीर : बच्चे का गला चना से बंद, इलाज के लिए दर-दर भटके परिजन, लेकिन डॉक्टरों को फुर्सत नहीं !

पीजी कॉलेज ले सामने से आए गरीब परिवार का दो साल का बेटा, जिसके गले में चना फंस गया था, सुबह से मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती था। परिजन इलाज के लिए डॉक्टरों की मिन्नतें करते रहे, लेकिन किसी ने बच्चे को हाथ तक नहीं लगाया। सब कहते रहे बड़े डॉक्टर के आने का इंतजार करो। 

हद तो तब हो गई जब ज़रूरी मेडिकल उपकरण ‘वैक्यूम पाइप’ भी अस्पताल ने खुद रखने के बजाय परिजनों से मंगवाया। सरकारी अस्पताल की कड़वी सच्चाई यहीं उजागर हो गई — यहां जिंदगी बचाने का नहीं, जिम्मेदारी टालने का सिस्टम है।

शाम तक मासूम ने दम तोड़ दिया।

बेटे की लाश गोद में लिए मां बेसुध हो गई। पिता रोते हुए सिर्फ एक ही सवाल कर रहा था — “अगर समय पर इलाज मिलता होता, तो क्या मेरा बच्चा आज जिंदा होता ?”

परिवार छोटी-मोटी चीजें बेचकर अपना गुजारा करता है, अस्पताल में सिर्फ इंसानियत की उम्मीद लेकर आया था। पर यहां सिस्टम ने सिर्फ लाश दी।

दूसरी तस्वीर : युवक की मौत, लाश को ठूंस दिया मर्चुरी में, परिजनों को खबर तक नहीं !

रामनगर निवासी विकास हिमधर को उसके दोस्त मृत अवस्था में मेडिकल कॉलेज छोड़कर भाग गए। अस्पताल ने न कोई पूछताछ की, न ही परिजनों को खबर दी — सीधे शव को मर्चुरी में भेज दिया गया।

जब परिजन अस्पताल पहुंचे और बेटे को खोजते-खोजते मर्चुरी तक पहुंचे, तो ताले को तोड़कर अंदर घुसे। वहां लाश से लिपटकर रोते परिजनों का दर्द, अस्पताल की हर दीवार को हिला गया।

गुस्से में उन्होंने मर्चुरी में तोड़फोड़ भी की, लेकिन सवाल फिर वही — “हमारा बच्चा मरा कैसे ? क्यों अस्पताल ने हमें बिना बताए लाश मर्चुरी में छिपा दी ?”

पुलिस कह रही है – “मामला एक्सीडेंट का लग रहा है…” लेकिन परिजन पूछ रहे हैं — “क्या इंसान की लाश भी अब ‘फाइल’ बनकर बिना परिवार को बताए दफना दी जाती है ?”

प्रबंधन बना मूकदर्शक, संवेदनहीनता की हदें पार !

इन दोनों घटनाओं में अस्पताल प्रबंधन पूरी तरह बेनकाब हो गया —

  • न कहीं संवेदना
  • न कोई जवाबदेही
  • और न कोई शर्म

जब एक बाप अपने बेटे की लाश गोद में लिए सिस्टम को कोसता है… जब एक मां अपने जवान बेटे की मर्चुरी में लाश से लिपटकर चीखती है… तो यह सिर्फ खबर नहीं होती — यह सरकारी व्यवस्था पर सबसे बड़ा तमाचा होती है।

जनता पूछ रही है – क्या मेडिकल कॉलेज अस्पताल इलाज के नाम पर मौत परोस रहा है ?

फिलहाल पुलिस जांच का रटा-रटाया आश्वासन दिया जा रहा है, लेकिन सवाल अब भी जिंदा है — “इन मौतों का जिम्मेदार कौन ?” “सरकारी अस्पताल में इंसानियत कब लौटेगी ?”

अब बस यही कहना बाकी है — अगर यही व्यवस्था है, तो फिर अस्पतालों के बोर्ड पर लिखा जाए: “इलाज की गारंटी नहीं है !”

 
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