मनोरंजन

movie review : व्हाय चीट इंडिया

Spread the love
Listen to this article

शिक्षा के क्षेत्र का तो कब से व्यावसायिकरण हो चुका है और अब तो इसमें माफियानुमा लोग घुस आए हैं। इंजीनियरिंग, मेडिकल और एमबीए जैसी बड़ी डिग्री अच्छे पैसे कमाने का जरिया हो गई है। सीटें कम हैं और स्टूडेंट्स करोड़ों हैं। लिहाजा पेपर लीक होना, किसी की जगह किसी और का परीक्षा देना, नकल करना, सीटें बिकना, कम नंबर वालों को प्रवेश देना, प्रतिभाशाली को वंचित कर देना आम बात हो गई हैं।
इस काम में वो माता-पिता भी शामिल हैं जो किसी भी हालत में अपने बच्चों को बड़े कॉलेजों में एडमिशन दिलाने के लिए लाखों रुपये खर्च कर देते हैं। इसी कारण शिक्षा जगत के माफिया करोड़ों रुपये कमा रहे हैं और इनका अपराध नजर नहीं आता। परिणाम ये है कि बेवकूफ किस्म के इंजीनियर और डॉक्टर्स सामने आ रहे हैं जो लोगों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं।
इमरान हाशमी की फिल्म ‘व्हाय चीट इंडिया’ में इन सारी बातों को दिखाया गया है कि हमारी शिक्षा प्रणाली में कितना भ्रष्टाचार हो गया है और ऐसे लोग आ गए हैं जो स्टूडेंट्स से पैसे लेकर उन्हें बढ़िया कॉलेजों में दाखिला दिला देते हैं। इमरान हाशमी ने ऐसे ही एक व्यक्ति राकेश का किरदार निभाया है जो पैसे लेकर लोगों के एडमिशन कराता है और आने वाले पेपर के उत्तर पहले ही बता देता है। कुछ राजनेताओं का उस पर हाथ भी है।
सौमिक सेन की इस फिल्म में दिक्कत यह है कि यह बहुत कुछ कहना चाहती है, लेकिन बात को कहने का सलीका नहीं आया। उपरोक्त सारी बातें सभी को पता है और सौमिक के पास नया दिखाने को कुछ नहीं था। साथ ही इन सारी बातों को पिरोने वाली कहानी अत्यंत कमजोर है।
ऐसा लगता है कि सौमिक ने लोगों को चौंकाने के लिए कुछ सीन सोच रखे थे। उन्हें फिल्मा लिया, लेकिन इनको वे सिलसिलेवार जमा नहीं पाए। लिहाजा पूरी फिल्म बिखरी हुई लगती है।
शिक्षा में फैले भ्रष्टाचार के साथ फिल्म के मुख्य किरदार की भी कहानी है कि कैसे वह अपनी बहुत ज्यादा बोलने वाली पत्नी से परेशान है। कैसे वह एक लड़की की ओर आकर्षित हो जाता है। कैसे उसके अपने पिता के साथ कड़वे रिश्ते हैं। लेकिन ये सारी बातें बिलकुल भी अपील नहीं करती। फिल्म में कोई थ्रिल या मनोरंजन नहीं है और बोरियत भरी हुई है।
स्क्रिप्ट में कई खामियां हैं। राकेश जो चाहता है वो आसानी से करता रहता है। एक घटना को दूसरी घटना से ठीक से नहीं जोड़ा गया है। फिल्म में पुलिस भी निकम्मी दिखाई गई है। हाथ पर हाथ धरे बैठे इंस्पेक्टर पूछते रहते हैं कि मैं क्या करूं? कोई सबूत नहीं है। राकेश की पत्नी की बक-बक से भी मनोरंजन नहीं होता।
सौमिक सेन का निर्देशन भी कमजोर है। वे तय ही नहीं कर पाए कि फिल्म के हीरो राकेश को किस तरह दिखाया जाए। राकेश का एंट्री सीन तो हास्यास्पद है। वह सिनेमाघर में बैठा ‘गुप्त’ फिल्म देख रहा है और वहां पर गुंडों की पिटाई कर देता है। पता नहीं क्यों इस तरह की सीन की जरूरत फिल्म में थी? यह दृश्य फिल्म के मिजाज से मेल भी नहीं खाता। सौमिक न फिल्म के जरिये कुछ नई बात कर पाए और न दर्शकों को मनोरंजन दे पाए।
अभिनय के मामले में फिल्म जरूर अच्‍छी है। इमरान हाशमी अपनी एक्टिंग से प्रभावित करते हैं। उन्होंने अपने किरदार को पूरी फिल्म में ठीक से पकड़ा है। नुपूर के रूप में श्रेया धनवंतरी की एक्टिंग भी शानदार है और उनके कई दृश्य देखने लायक हैं। सत्तू का किरदार स्निघदीप चटर्जी ने अभिनीत किया है और उनकी एक्टिंग भी अच्‍छी है। फिल्म में कई अनजान चेहरे हैं, जिन्होंने अच्छा काम किया है।
कुल मिलाकर व्हाय चीट इंडिया एक अच्छे विषय पर खराब फिल्म है।
बैनर : टी-सीरिज़ फिल्म्स, इमरान हाशमी फिल्म्स, एलिप्सिस एंटरटेनमेंट
निर्माता : भूषण कुमार, कृष्ण कुमार, तनुज गर्ग, अतुल कस्बेकर, परवीन हाशमी
निर्देशक : सौमिक सेन
कलाकार : इमरान हाशमी, श्रेया धनवंतरी, स्निघदीप चटर्जी

 
HOTEL STAYORRA नीचे वीडियो देखें
Gram Yatra News Video

Live Cricket Info

Related Articles

Back to top button