January 16, 2025 |

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छत्तीसगढ़

रेत की खुलेआम चोरी, माइनिंग विभाग मौन: खनिज संपदा की लूट को मिली खुली छूट

Gram Yatra Chhattisgarh
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जिला गरियाबंद के पंडुका थाना क्षेत्र के तर्रा घाट में रेत खनन के नाम पर खनिज संपदा की खुलेआम लूट चल रही है। स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, यह पूरा खनन अवैध है और इसमें प्रभावशाली लोगों का हाथ बताया जा रहा है। आरोप है कि तर्रा घाट में अवैध रूप से चल रहे खनन कार्य का संचालन मनोज साहू द्वारा किया जा रहा है, जो जिला पंचायत सदस्य चंद्रशेखर साहू का भाई और विधायक रोहित साहू का करीबी है।

माइनिंग विभाग की चुप्पी पर सवाल

 

तर्रा घाट पूरी तरह अवैध है, लेकिन इसके बावजूद माइनिंग विभाग और संबंधित प्रशासन इस पर कोई ठोस कार्रवाई करने से बच रहा है। खनन अधिकारी नागेश की निष्क्रियता ने स्थानीय लोगों में आक्रोश पैदा कर दिया है। ग्रामीणों का कहना है कि राजनीतिक दबाव के चलते प्रशासनिक अधिकारी भी चुप्पी साधे हुए हैं।

 

प्राकृतिक संसाधनों की हो रही बर्बादी

 

अवैध रेत खनन से इलाके की प्राकृतिक संपदा और पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंच रहा है। नदी का जलस्तर घट रहा है, जिससे आस-पास के इलाकों में जल संकट की संभावना बढ़ गई है। साथ ही, इस तरह के अवैध कार्य से सरकारी राजस्व को भी भारी नुकसान हो रहा है।

 

ग्रामीणों की आपबीती

 

तर्रा गांव के निवासियों ने बताया कि इस घाट पर रात-दिन ट्रैक्टरों और डंपरों की आवाजाही लगी रहती है। रेत माफिया इतने बेखौफ हो चुके हैं कि किसी भी विरोध को दबाने के लिए डराने-धमकाने से भी पीछे नहीं हटते।

 

प्रभावशाली लोगों की भूमिका पर संदेह

 

मनोज साहू का इस अवैध खनन में नाम आने के बाद मामला और गंभीर हो गया है। चंद्रशेखर साहू और विधायक रोहित साहू जैसे प्रभावशाली नामों से जुड़े होने के कारण ग्रामीणों को लगता है कि प्रशासन जानबूझकर इस मामले को अनदेखा कर रहा है।

 

सरकार और प्रशासन से सवाल

 

क्या खनिज संपदा की लूट पर रोक लगाने के लिए कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे?

 

क्या माइनिंग विभाग और प्रशासनिक अधिकारियों की इस चुप्पी पर जांच होगी?

 

क्या इस अवैध खनन में शामिल प्रभावशाली लोगों पर कार्रवाई होगी?

 

 

ग्रामीणों ने राज्य सरकार और जिला प्रशासन से अपील की है कि अवैध खनन को तुरंत रोका जाए और इसमें शामिल सभी लोगों पर कड़ी कार्रवाई की जाए।

 

“अगर प्रशासन ने जल्दी कार्रवाई नहीं की, तो हमें आंदोलन का सहारा लेना पड़ेगा।” – एक स्थानीय निवासी।

 

यह मामला केवल एक गांव या क्षेत्र तक सीमित नहीं है। अगर प्रशासन और सरकार इस तरह की गतिविधियों को अनदेखा करते रहे, तो यह पूरे राज्य में प्राकृतिक संसाधनों की लूट का एक बड़ा उदाहरण बन जाएगा।

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