छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ की संस्कृति और परंपरा को जीवंत रखने में हरेली तिहार का महत्वपूर्ण योगदान

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बेमेतरा । हरेली तिहार छत्तीसगढ़ का एक महत्वपूर्ण और प्राचीन त्यौहार है, जिसे वहां के लोग बड़े धूमधाम से मनाते हैं। ‘हरेली’ शब्द का अर्थ हरियाली से है, और इस त्यौहार का मुख्य उद्देश्य हरियाली और खेती का महत्व उजागर करना है। यह त्यौहार मुख्यतः कृषि प्रधान समाज के लिए समर्पित है, जहां किसान अपने खेतों की अच्छी फसल और समृद्धि की कामना करते हैं। पूरे छत्तीसगढ़ सहित बेमेतरा ज़िले में कल रविवार को हरेली तिहार उत्साह के साथ मनाया गया। ग्रामीणों व किसानों ने खेती-किसानी से जुड़े औजारों की पूजा की। इस मौके लोग एक पेड़ माँ के नाम से भी लगायेंगे।

छत्तीसगढ़ की संस्कृति और परंपरा को जीवंत रखने में हरेली तिहार का महत्वपूर्ण योगदान है। यह त्यौहार न केवल कृषि और हरियाली का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है। इसके माध्यम से लोग अपने पूर्वजों की धरोहर और परंपराओं को संजोए रखते हैं और आने वाली पीढ़ियों को भी इससे अवगत कराते हैं। इस प्रकार, हरेली तिहार छत्तीसगढ़ की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है और इसे बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस मौके पर मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इस बार हरेली पर्व पर लोगों से एक पेड़ माँ के नाम  लगाने की अपील की है।

त्यौहार की तैयारी : 

हरेली तिहार का आरंभ सावन महीने की अमावस्या से होता है। यह त्योहार मानसून के मौसम के आगमन का प्रतीक है, जो खेती के लिए सबसे अनुकूल समय माना जाता है। इस दिन गांवों में विशेष सफाई और सजावट की जाती है। घरों के आंगनों और खेतों में नीम के पत्तों, आम की पत्तियों और गोबर से अल्पना बनाई जाती है, जो शुभता और समृद्धि का प्रतीक है।

धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियां : 

हरेली तिहार के दौरान लोग पारंपरिक वेशभूषा पहनते हैं और विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। सबसे प्रमुख अनुष्ठान ‘हल पूजा’ है, जिसमें किसान अपने हल और कृषि उपकरणों की पूजा करते हैं। वे अपने खेतों में हल चलाते हैं और भगवान से अच्छी फसल की प्रार्थना करते हैं। इस पूजा के दौरान हल, बैल और अन्य कृषि उपकरणों को सजाया जाता है और उन पर हल्दी, कुमकुम और फूल चढ़ाए जाते हैं।

हरेली तिहार के अवसर पर लोग गौरी-गौरा की पूजा भी करते हैं। यह पूजा मुख्यतः महिलाएं करती हैं, जो गौरी-गौरा की मूर्तियों को सजाकर उन्हें विभिन्न प्रकार की मिठाइयों और पकवानों का भोग लगाती हैं। इसके बाद इन मूर्तियों को गांव के तालाब या नदी में विसर्जित किया जाता है।

खेल और मनोरंजन : 

हरेली तिहार के दौरान विभिन्न खेल और मनोरंजन के कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। सबसे लोकप्रिय खेल ‘गेंड़ी’ है, जिसमें बच्चे और युवा लकड़ी की लंबी डंडियों पर चलकर खेलते हैं। यह खेल विशेष रूप से गांवों में बहुत उत्साह और उमंग के साथ खेला जाता है। इसके अलावा कबड्डी, खो-खो, और अन्य पारंपरिक खेल भी खेले जाते हैं, जो त्यौहार की रौनक को और बढ़ा देते हैं।

पारंपरिक पकवान : 

हरेली तिहार के अवसर पर विभिन्न पारंपरिक पकवान भी बनाए जाते हैं। चावल, दाल, सब्जियों और विभिन्न प्रकार की मिठाइयों का विशेष महत्व होता है। सबसे प्रमुख पकवान ‘चीला’ है, जिसे चावल के आटे और उरद दाल से बनाया जाता है। इसके अलावा ‘फरहा’, ‘ठेठरी’, ‘खुरमी’ और ‘बबरा’ भी प्रमुख पकवानों में शामिल हैं। यह पकवान घर की महिलाओं द्वारा बड़े प्रेम और लगन से बनाए जाते हैं और सभी परिवार के सदस्य मिलकर इन्हें खाते हैं।

सामाजिक महत्व : 

हरेली तिहार का सामाजिक महत्व भी बहुत अधिक है। इस दिन गांव के लोग एक साथ मिलकर त्यौहार मनाते हैं, जिससे आपसी भाईचारा और सामुदायिक भावना को बल मिलता है। यह त्यौहार सभी जाति, धर्म और वर्ग के लोगों को एकजुट करता है और समाज में एकता और समरसता का संदेश फैलाता है।

 
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