सोशल मीडिया पर वायरल हुआ कोरबा नगर निगम का ‘खेला’ — जिले की हो रही भयंकर बदनामी, अब जनता पूछ रही है कब होगा न्याय ?

कोरबा।
पशु ट्रॉली में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का फ्लेक्स ले जाने का मामला थमने का नाम नहीं ले रहा। अब यह विषय सोशल मीडिया और इंस्टाग्राम पर तेजी से वायरल हो चुका है।
लोग खुलकर सवाल उठा रहे हैं कि आखिर इस अपमानजनक घटना की जिम्मेदारी कौन लेगा।
पूरा कोरबा जिला चर्चा में है, और जिला प्रशासन की कार्यशैली पर उंगलियां उठने लगी हैं।
सोशल मीडिया पर उठे सवाल
सोशल मीडिया पर सैकड़ों पोस्ट, वीडियो और स्टोरी के जरिए लोग प्रशासन से जवाब मांग रहे हैं —
“कब प्रशासन देगा जवाब ?”
“कब होगा छत्तीसगढ़ में हुए इस अपमान का न्याय ?”
“कब होगी कार्यवाही ?”
“सही दोषी को क्यों बचा रहा है निगम प्रशासन ?”
जनता का सवाल सीधा है — जब पूरा मामला सामने आ चुका है, तो फिर कार्रवाई में देरी क्यों ?
क्या नगर निगम प्रशासन किसी प्रभावशाली अधिकारी या राजनीतिक व्यक्ति को बचाने की कोशिश कर रहा है ?
ग्राम यात्रा इस वीडियो की पुष्टि नहीं करता है
क्या साज़िश है या बेलगाम हुआ प्रशासन ?
चर्चा इस बात की भी है कि क्या यह घटना सशक्त महापौर और जिम्मेदार आयुक्त को बदनाम करने की साज़िश है, या फिर वाकई निगम के अधिकारी अब बेलगाम हो चुके हैं ?
सूत्र बताते हैं कि कुछ अधिकारियों ने जिम्मेदारी तय होने से पहले ही चहेते कर्मचारियों को बचाने की तैयारी शुरू कर दी थी, जबकि जिनका इस मामले से सीधा लेना-देना नहीं था, उन्हें नोटिस थमा दिया गया।
अपर आयुक्त के प्रभार में हुआ विवाद
मामले की जड़ में एक और तथ्य यह भी सामने आया है —
आयुक्त आशुतोष पांडेय की मोस्ट वीआईपी ड्यूटी के कारण प्रशासनिक कार्यभार अपर आयुक्त विनय मिश्रा के पास था।
यानी पूरे राज्योत्सव की तैयारी और फ्लेक्स से संबंधित जिम्मेदारी मिश्रा के अधीन थी।
लोगों का कहना है कि जैसे ही यह जिम्मेदारी गलत हाथों में गई, हालात बिगड़ गए।
पशु ट्रॉली में फ्लेक्स ले जाने की घटना ने कोरबा जिले को पूरे प्रदेश में हास्यास्पद स्थिति में ला दिया।
भयंकर बदनामी झेल रहा कोरबा जिला
सोशल मीडिया और इंस्टा पर वायरल तस्वीरों के चलते कोरबा जिले की छवि पर गहरा धब्बा लगा है।
जहां एक ओर राज्योत्सव कोरबा के सम्मान की बात होनी चाहिए थी, वहीं अब यह मामला “राज्योत्सव से अपमानोत्सव” बनकर उभर रहा है।
लोगों का कहना है कि यह सिर्फ एक गलती नहीं, बल्कि एक प्रशासनिक संवेदनहीनता है, जिसने मुख्यमंत्री से लेकर शहर के जनप्रतिनिधियों तक सभी को असहज कर दिया है।
जनता की मांग — दोषियों पर सीधी कार्रवाई
कोरबा के नागरिकों और स्थानीय सामाजिक संगठनों ने मांग की है कि इस मामले में सिर्फ नोटिस नहीं, बल्कि वास्तविक कार्रवाई होनी चाहिए।
अगर प्रशासन इस घटना को हल्के में लेता है, तो यह भविष्य में भी अफसरों को गैर-जिम्मेदाराना रवैया अपनाने की छूट देगा।
अब सवाल यह है कि क्या कोरबा जिला प्रशासन इस अपमानजनक घटना की सच्चाई जनता के सामने लाएगा या फिर नोटिस और फाइलों के बीच यह मामला दब जाएगा ?
क्या दोषियों की पहचान छिपाई जाएगी या फिर शासन इस पर उदाहरणात्मक कार्रवाई करेगा ?
जनता का एक ही संदेश है —
“अब बस जवाब चाहिए, जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। क्योंकि अपमान पूरे कोरबा का हुआ है।”

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