कोरबा(ग्रामयात्रा छत्तीसगढ़ )। जिले के कटघोरा तहसील के ग्राम बंचर (छुरी कला) के निवासी स्वर्गीय पूरन दास महंत (आयु 73 वर्ष) ने अपने जीवन के उपरांत ऐसा कार्य किया, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल बन गया। उन्होंने अपने शरीर का देहदान करके न केवल चिकित्सा जगत को अमूल्य धरोहर दी, बल्कि समाज को मानवता की एक नई दिशा भी दिखाई।
उनका देहदान स्वर्गीय विसाहू दास स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय, कोरबा में संपन्न हुआ।
पूरन दास महंत का यह निर्णय परिवार और समाज दोनों के लिए भावुक कर देने वाला क्षण था। जब कोई व्यक्ति जीवन के अंत के बाद भी समाज की सेवा करने का संकल्प लेकर जाता है, तो वह सचमुच अमर हो जाता है। उनके परिजन लक्ष्मीन महंत ने बताया कि उन्हें यह प्रेरणा संत रामपाल जी महाराज के सत्संग से मिली। उन्होंने कहा—
“यह शरीर नश्वर है। यदि इसे केवल भौतिक सुखों के लिए ही उपयोग कर लिया जाए तो जीवन का उद्देश्य अधूरा रह जाता है। किंतु जब यह शरीर समाजहित में योगदान दे, तभी यह अमर हो जाता है। संत रामपाल जी महाराज ने हमें यह मार्ग दिखाया कि मानवता की सबसे बड़ी सेवा है—अपना जीवन दूसरों के कल्याण में अर्पित करना।”
देहदान कार्यक्रम के अवसर पर चिकित्सा महाविद्यालय की एच.ओ.डी. योगिता कंवर ने भी अपनी भावनाएँ व्यक्त कीं। उन्होंने कहा कि यह कदम केवल चिकित्सा शिक्षा के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि समाज में सेवा और करुणा की भावना को भी मजबूत करता है। उन्होंने इस पहल को संत रामपाल जी महाराज के अभियान का श्रेष्ठ उदाहरण बताते हुए कहा कि ऐसे कार्य समाज को नई दिशा देते हैं।
इस अवसर पर मुनींद्र धर्मार्थ ट्रस्ट के जिला संयोजक अजय कुर्रे सहित संस्था के प्रमुखों ने भी अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि भूखों को अन्न, गरीबों को शिक्षा और चिकित्सा क्षेत्र को साधन उपलब्ध कराना—यही संत रामपाल जी महाराज की वास्तविक प्रेरणा है। पूरन दास महंत का देहदान उसी प्रेरणा की परिणति है, जो समाज के लिए अनुकरणीय उदाहरण बनेगा।
कार्यक्रम में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी थी। परिजन, रिश्तेदार और समाजसेवी बड़ी संख्या में उपस्थित हुए। सभी ने एक स्वर में कहा कि यह कदम आने वाली पीढ़ियों को न केवल प्रेरित करेगा बल्कि चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान में भी अमूल्य योगदान देगा। उपस्थित श्रद्धालुओं में अजय कुर्रे, धर्मदास, सुमिरन सिंह, गोरेलाल, गया दास, डॉ. चेतन दास सहित कई लोग मौजूद रहे।
पूरन दास महंत भले ही इस दुनिया से विदा हो गए हों, लेकिन उनका यह योगदान समाज में अमर रहेगा। उनका जीवन और उनका निर्णय हमें यह सिखाता है कि सेवा का असली स्वरूप मृत्यु के बाद भी जीवित रह सकता है। सचमुच, उनका देहदान मानवता के लिए एक अमर धरोहर और प्रेरणादायी उदाहरण बनकर हमेशा याद किया जाएगा।

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