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छत्तीसगढ़ में आरक्षण 82 फीसद करने पर हाईकोर्ट की रोक; CM भूपेश बघेल ने लड़ाई लड़ने की बात कही

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छत्तीसगढ़ सरकार के अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का आरक्षण 27 प्रतिशत के साथ कुल आरक्षण को 82 प्रतिशत किए जाने के फैसले पर बिलासपुर उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हालांकि ओबीसी के आरक्षण के लिए लड़ाई लड़ने की बात कही है। राज्य सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने और कुल आरक्षण का प्रतिशत 82 करने के लिए चार सितंबर को अध्यादेश जारी किया था। इस अध्यादेश के खिलाफ कुणाल शुक्ला, पुष्पा पांडे, स्नेहिल दुबे, पुनेश्वरनाथ मिश्रा और आदित्य तिवारी ने याचिका दायर की थी। इस याचिका पर मुख्य न्यायाधीश रामचंद्र मेनन और न्यायाधीश पी.पी. साहू की युगलपीठ ने सुनवाई की और फैसला सुरक्षित रखा था।
युगलपीठ ने शुक्रवार को फैसला सुनाते हुए अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण और कुल आरक्षण बढ़ाने के फैसले पर रोक लगा दी है। हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा, “न्यायालय ने 69 प्रतिशत आरक्षण स्वीकार लिया है। इसका मतलब एससी और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के आरक्षण को स्वीकार लिया है। ओबीसी के आरक्षण को स्वीकार नहीं किया गया है, जिसको लेकर हम अपनी लड़ाई लड़ेंगे। सरकार न्यायालय में अपना पक्ष रखेगी।”
हाईकोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार आरक्षण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर भी अपने ओछे राजनीतिक पाखंड से बाज नहीं आई और अब कांग्रेस का राजनीतिक चरित्र बेनकाब हो गया है। कौशिक ने कहा कि आरक्षण का मसला कांग्रेस के लिए कभी सामाजिक उत्थान और संवेदना का विषय रहा ही नहीं है। उसने इसे महज अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए इस्तेमाल किया है।
उन्होंने आरोप लगाया, “प्रदेश सरकार ने आरक्षण से जुड़े अपने ही फैसले के खिलाफ अपने ही लोगों को सामने करके हाईकोर्ट में याचिका दायर करवा दी। यह पिछड़ा वर्ग के लोगों के साथ धोखाधड़ी है।” नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि मजे की बात यह है कि जिस दिन इस मुद्दे पर हाईकोर्ट में निणार्यक सुनवाई हो रही थी, प्रदेश के महाधिवक्ता सतीशचंद्र वर्मा कोर्ट में मजबूती से सरकार का पक्ष रखने के लिए उपस्थित ही नहीं थे।
कौशिक ने यह भी जानना चाहा कि महाधिवक्ता उसी दिन क्यों और किनके कहने पर कोर्ट से अनुपस्थित थे, इसकी भी पड़ताल होनी चाहिए। राज्य में अनुसूचित जनजाति को 32, अनुसूचित जाति को 13 तथा अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत और आर्थिक तौर पर पिछड़ वर्ग को 1० प्रतिशत आरक्षण दिए जाने का अध्यादेश जारी किया गया था। इस तरह कुल आरक्षण 82 प्रतिशत हो गया, जिस पर अदालत ने रोक लगा दी है।

 
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