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कोरबा मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ठेका घोटाला : डॉ. गोपाल कंवर और लेखाधिकारी अशोक कुमार महिपाल की जोड़ी का कमाल, ठेकेदार मालामाल…

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कोरबा। स्व. बिसाहू दास महंत स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय संबद्ध चिकित्सालय कोरबा में ठेकेदारी घोटाले की गूंज अब पूरे शहर में है। यहां अस्पताल अधीक्षक डॉ. गोपाल कंवर और लेखाधिकारी अशोक कुमार महिपाल की जोड़ी ने ‘सेटिंगबाजी का ऐसा मॉडल’ खड़ा कर दिया है जिसमें नियम-कायदे, निविदा प्रक्रिया और सरकारी आदेश सब धरे के धरे रह गए हैं।

सिर्फ चहेते ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने के लिए आधा दर्जन से ज्यादा ठेके एक्सटेंशन पर चल रहे हैं। कई मामलों में तो ठेके खत्म होने के बाद महीनों तक बिना वैधता के काम कराया गया और फिर पीछे से फाइल घुमा-घुमाकर उसे वैधता का जामा पहना दिया गया। हैरत की बात ये कि इसमें विभाग को भनक तक नहीं।

केस-1 : सफाई ठेका — ठेके की वैधता भी ख़त्म, फिर भी बढ़ गई सफाई कर्मियों की संख्या

साल 2022 में कामथेन सिक्योरिटी सर्विसेस रायपुर को अस्पताल की सफाई का ठेका मिला। काम खत्म होना था 31 जनवरी 2024 को। लेकिन डॉ. गोपाल कंवर को इसकी सुध तब आई जब ठेका खत्म होने में सिर्फ एक दिन बचा था। फौरन फार्मासिस्ट मित्रा और प्रभारी क्रय अधिकारी डॉ. दुर्गा शंकर पटेल को एक्टिव किया गया।

सुपरफास्ट सेटिंग से लेखाधिकारी अशोक कुमार महिपाल ने फाइल पर दस्तखत किए। फिर खेल हुआ 5 फरवरी 2024 को — जहां मित्रा ने लिखा कि विभाग से मंजूरी लेनी होगी। छह महीने तक मंजूरी की फाइल अटकी रखी गई।

इधर काम चलता रहा, बिल बनता रहा। जब 28 जून को मंजूरी आई, तब डॉ. गोपाल कंवर ने ऐसा खेल किया कि 64 सफाईकर्मियों की जगह 94 कर दिए। मतलब ठेकेदार की कमाई 50% बढ़ गई। और सबसे मजेदार बात — इस आदेश की कॉपी आज तक विभाग को नहीं भेजी गई। यानी बिना विभाग की जानकारी के 17 महीने से ठेका चल रहा है।

केस-2 : मरीजों का खाना — स्वाद से ज्यादा सेटिंग का असर

मरीजों के लिए भोजन का ठेका सीएस फिलिप केर्टस रायपुर को मिला था। ठेका खत्म होना था 31 दिसंबर 2024 को। लेकिन 6 दिसंबर को ठेकेदार ने पहले ही झोली फैला दी। 24 दिसंबर को फाइल चली, एमएस डॉ. गोपाल कंवर ने डाइट प्रभारी से पूछा — “भोजन कैसा है?” डाइट प्रभारी ने जवाब दिया — “अच्छा है।”

बस इतना सुनते ही 30 दिसंबर को बिना टेंडर 6 महीने का एक्सटेंशन। ना टेंडर, ना मूल्यांकन, ना नियम — बस चाय पर चर्चा और ठेका एक्सटेंड।

केस-3 : एसी मरम्मत — याददाश्त की बाज़ीगरी

एसी मरम्मत का ठेका 9 अक्टूबर को खत्म। लेकिन 5 नवंबर को स्टोर कीपर मनीष सिंह को याद आया कि “अरे ठेका तो खत्म होने वाला है।” 9 नवंबर को एक्सटेंशन। लेखाधिकारी अशोक कुमार महिपाल की कलम ने फिर से कमाल कर दिया। नोटशीट भी पूरी नहीं चली, विभाग को भी जानकारी नहीं। सीधा सेवा वृद्धि।

केस-4 : ऑक्सीजन — बिना टेंडर अस्पताल में सांस

ऑक्सीजन सप्लाई का ठेका 22 सितंबर को खत्म। 13 नवंबर को सर्वमंगला गैसेस एंड कंस्ट्रक्शन को एक्सटेंशन। एक लाइन में आदेश। कोई फाइल नहीं, कोई प्रक्रिया नहीं। बस महिपाल साहब की कलम और गोपाल साहब की मुस्कान।

केस-5 : वाहन स्टैंड — आचार संहिता का बहाना, सेटिंग का बहाना

वाहन स्टैंड का ठेका 31 मार्च 2024 को खत्म होना था। 20 मार्च को मित्रा को आचार संहिता की याद आई। बस 26 मार्च को 6 महीने का एक्सटेंशन। तब से आज तक बढ़ता ही जा रहा है।

सवाल अब ये है…

  • क्या डॉ. गोपाल कंवर और लेखाधिकारी अशोक कुमार महिपाल की जानकारी के बिना ये ठेका घोटाला चल सकता है? क्या विभाग, शासन और जनप्रतिनिधियों को इसकी भनक नहीं?
  • जब हर ठेके में सेटिंगबाजी और एक्सटेंशन के खेल में लाखों-करोड़ों का टर्नओवर हो रहा है, तो सवाल उठना लाजिमी है — इस खेल के असली हिस्सेदार कौन?
  • कोरबा मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ और सरकारी खजाने की लूट को कब तक नजरअंदाज किया जाएगा?
 
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