छत्तीसगढ़

जांच और कानून व्यवस्था के लिए अलग-अलग पुलिस की टीम का गठन करेगी छत्तीसगढ़ सरकार

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रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार पुलिस सुधार की दिशा में बड़ा कदम उठाने जा रही है। राज्य सरकार अगले महीने पेश होने जा रहे बजट में प्रस्ताव लाने वाली है कि पुलिस में क्राइम इनवेस्टिगेशन (अपराधों की जांच) और लॉ एंड आर्डर (कानून व्यवस्था) बनाए रखने के लिए अलग-अलग टीमों का गठन किया जाएगा।
जांच करने वाली टीम मौके पर कानून व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी में नहीं उलझेगी बल्कि जो अपराध हुआ है उसकी वैज्ञानिक जांच में जुटेगी। कानून व्यवस्था देखने वाली टीम की जिम्मेदारी होगी कि वह मौके पर जाए और व्यवस्था बनाए रखे।
इस संबंध में पुलिस सुधार के लिए बने कई आयोगों ने सुझाव दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2014 के एक फैसले में भी जांच और कानून व्यवस्था का काम अलग-अलग टीमों को देने की बात कही थी। छत्तीसगढ़ वह पहला राज्य होगा जो इस दिशा में काम करने जा रहा है।
ज्ञात हो कि राज्य में कांग्रेस की नई सरकार के आने के बाद से पुलिस सुधार की मुहिम चल रही है। नए डीजीपी डीएम अवस्थी ने पदभार ग्रहण करते ही जिलों में पदस्थ क्राइम ब्रांचों को भंग कर दिया है। अब नई व्यवस्था बनाने की कवायद चल रही है।
सूत्रों के मुताबिक गृह विभाग ने वित्त विभाग को प्रस्ताव बनाकर दिया है जिसे आगामी बजट में शामिल किया जाना है। इस प्रस्ताव के मुताबिक थानों में दो क्राइम इनवेस्टिगेशन की टीम एक इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी के नेतृत्व में गठित की जाएगी।
इसी तरह एक अलग टीम लॉ एंड आर्डर के लिए होगी जिसका इंचार्ज इंस्पेक्टर होगा। इन दोनों इंस्पेक्टर के ऊपर एक सीनियर इंस्पेक्टर की नियुक्ति की जाएगी जिसे राजपत्रित अधिकारी का दर्जा दिया जाएगा। दोनों टीमें अपने थाने के सीनियर इंस्पेक्टर को रिपोर्ट करेंगी। सीनियर इंस्पेक्टर जिले के एसपी, डीएसपी या अन्य अधिकारी को रिपोर्ट करेगा।
पुलिस सुधार की दिशा में यह सरकार का पहला कदम माना जा रहा है। बजट में शामिल होने के बाद थानों में नई टीमों का गठन किया जाएगा। क्राइम इनवेस्टिगेशन के लिए पुलिस टीमों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। उन्हें कानून के ज्ञान के साथ ही फारेंसिक और साइबर तकनीक का भी प्रशिक्षण दिया जाएगा।
भारत में पुलिस व्यवस्था पुलिस एक्ट 1861 के मुताबिक चल रही है। यह कानून अंग्रजों ने बनाया था। इसी वजह से आज भी पुलिस व्यवस्था को औपनिवेशिक कहा जाता है। स्वतंत्र भारत में पुलिस सुधारों के लिए 1977 में पहली बार धर्मवीर की अध्यक्षता में राष्ट्रीय पुलिस आयोग का गठन किया गया। इस आयोग ने भी जांच और कानून व्यवस्था के लिए अलग टीमों की सिफारिश की थी।
1998 में जेएफ रिबरो समिति, 2000 में पद्मनाभैया समिति, आपात काल के दौरान गठित शाह आयोग सभी ने पुलिस सुधारों की वकालत की लेकिन कुछ नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद भी कोई काम नहीं हो पाया है। अब छत्तीसगढ़ में पहल की जा रही है।
2015 की एक रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश में अपराधियों की सजा की दर महज 47 फीसद है। यानी आधे से अधिक मामलों में अपराधी कोर्ट से बरी हो जाते हैं। देश में पुलिस पर कुल बजट का तीन फीसद ही खर्च किया जाता है। 2016 में देशभर में पुलिस में 24 फीसद पद रिक्त थे।
यहां प्रति लाख व्यक्तियों पर 181 पुलिस वालों की जगह 137 जवान ही तैनात हैं। हालांकि संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक प्रति लाख लोगों पर 222 पुलिस जवान होने चाहिए।

 
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