सुनील दास
राजनीतिक दल चुनाव हार जाते हैं तो जनता उनको सत्ता न सौंपकर किसी एक दल को सत्ता सौंप देती है तो कायदे से जनता ने उनको विपक्ष का काम करने को कहा तो वही करना चाहिए। अक्सर ऐसा होता है कि जिसे जनता सत्ता के लायक नहीं समझती है, वह सरकार से खुद को हर तरह से लायक साबित करने जुट जाता है। उसके लिए सबसे आसान होता है कि सरकार को हर क्षेत्र में फेल बताना।रोज बयान जारी करना होता है, सरकार इस क्षेत्र में फेल है, सरकार उस क्षेत्र में फेल है। इसके लिए वह कोई रचनात्मक काम नहीं करता है। ऐसा काम भी नहीं करता है जो जनता को अच्छा लगे। इसके लिए वह रोज बयान जारी करने के साथ ही हर तीन चार माह में शक्तिप्रदर्शन करता है। यह जानते हुए भी शक्ति प्रदर्शन करता है कि उससे न तो राज्य को फायदा होना है और न ही जनता को कोई फायदा होना है।शक्ति प्रदर्शन से जनता को कई दिन तक परेशानी होती है।
अगर राज्य में विधानसभा सत्र चल रहा हो तो विपक्ष की कोशिश तो यही होती है कि विधानसभा घेराव कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया जाए। ऐसा नहीं है कि विपक्ष के शक्ति प्रदर्शन के लिए सड़क पर उतरना जरूरी है। विधानसभा सत्र चल रहा है तो हर मुद्दे पर विपक्ष अपनेी शक्ति का प्रदर्शन विधानसभा में कर सकता है। विधानसभा में शक्ति प्रदर्शन में वह मजा कहां होता है, जो सड़क पर हजारों लोगों की भीड़ के बीच होता है। ज्यादा भीड़ होती है तो नेताओं को लगता है कि वह वाकई बड़े नेता हैं। पुलिस के साथ घक्ता मुक्की,जोर आजमाइश होने पर ही ऐसा लगता है कि पार्टी के लोगों ने जनता के लिए संघर्ष किया है।जो नेता घायल हो जातै है, उनकी तस्वीरें दूसरे दिन छपती है. यह सबूत होती है कि फलाने नेता ने जनता के लिए अपना खून बहाया था। पार्टी के लिए कितना बड़ा काम किया था। घायल नेताओं की तस्वीर उनके लिए मेडल की तरह होती है।
कोई राजनीतिक दल विधानसभा घेराव करने की घोषणा करता है तो उसके साथ ही पुलिस की तैयारी भी शुरू हो जाती है। राजनीतिक दल जितना बडा होता है, उसके कार्यक्रम में उतनी ही ज्यादा भीड़ जुटती है, इसलिए पुलिस को दल को देखकर अपनी तैयारी करनी पड़ती है। बड़ा राजनीतिक दल है सड़क को एक दो दिन पहले बंद कर दिया जाता है।इससे हजारों लोगों को परेशानी होती है तो होती रहे। विधानसभा घेराव करने वालो को कोई खास फर्क नहीं पड़ता है.। ज्यादा हुआ तो घेराव करने वाले दल का कोई बड़ा नेता यह बयान दे देगा कि हम नहीं चाहते हैं कि हमारे कार्यक्रम से जनता को परेशानी हो। सरकार ने तो हमे मजबूर कर दिया है घेराव करने के लिए। यानी घेराव कार्यक्रम के दौरान हजारों लोगों को हुई परेशानी के लिए राजनीतिक दल नहीं सरकार जिम्मेदार है।
धरना प्रदर्शन करने वाले,आदोंलन करने वाले सभी राजनीतिक दल जानते है, सभी संगठन भी जानते हैं कि इससे जनता को बहुत परेशानी होती है। लेकिन वह ऐसा कोई रास्ता नहीं निकालते हैं जिससे वह धरना प्रदर्शन भी करे और जनता को कोई परेशानी न हो।कांग्रेस ने २४ जुलाई को विधानसभा को घेराव किया तो शहर की एक सड़क को बंद किया गया। इससे १४ वार्डों की सड़कों व गलियों में जाम लगा रहा। लोग अपने घरों से नहीं निकल सके। ठेला खोमचेवालों को एक दो दिन कमाई नहीं हुई।घेराव को लेकर कांग्रेस नेता का बयान पेपर में पढ़ने को मिला कि लोगों के लिए न्याय मांगने और सरकार को नींद से जगाने के लिए कांग्रेस को विधानसभा का घेराव करना पड़ा।यह बयान पढ़कर जाम से परेशान लोगों ने जरूर यह कहा होगा। हमारे लिए न्याय इस तरह मत मांगो कि हमें परेशानी हो। हमारे लिए न्याय मांगना है तो इस तरह मांगो कि हमें कोई परेशानी न हो।यह किसी एक राजनीतिक दल की बात नहीं है, सभी राजनीतिक दल विपक्ष में रहने पर यही करते हैं। पता नहीं राजनीतिक दलों को कब यह बात समझ में आएगी कि जनता को परेशान कर जनता का विश्वास नहीं जीता जा सकता।