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कोरबा। न्याय पत्र लेकर लोकतंत्र का ढोल पीटने वाले महापौर राजकिशोर प्रसाद पहले खुद के किए अन्याय को याद कर लेते तो बेहतर होता। उन्होंने पहले तो किसी और के हक पर फर्जी जाति प्रमाण पत्र के जरिए डाका डालकर यह पद हासिल कर लिया, जिसे जिला जांच समिति ने निलंबित कर रखा है। अब कांग्रेस के ये पॉपेट मेयर स्वयं अल्पमत में होकर भी कुर्सी का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। नीति तो यही कहती है कि नैतिकता के आधार पर राजकिशोर प्रसाद को कूटरचना कर हथियाई गई मेयर चेयर छोड़ देना चाहिए और हाथा जोड़कर क्षमां की याचना करते हुए विनम्रता से त्यागपत्र दे देना चाहिए। अगर आप सचमुच न्याय और लोकतंत्र की दुहाई दे रहे हैं, तो खुद भी उसका पालन करें और तब दूसरों को ज्ञान बांचें तो गरिमा की बात होगी। नगर निगम कोरबा का दुर्भाग्य तो यही है कि ऐसा होगा नहीं।
नगर पालिक निगम कोरबा के इतिहास की बात करें तो कुछ वक्त पहले तक कुल 67 वार्ड थे। इसमें से आठ वार्ड बांकीमोंगरा में समाहित हो गए और अब कोरबा निगम में 59 वार्ड और इतने ही पार्षद रह गए हैं। इनमें से भी बीते दिनों दो कांग्रेसी और दो जकांछ पार्षदों ने भाजपा का दामन थाम लिया। उसके बाद रविशंकर शुक्ल नगर के निर्दलीय पार्षद अब्दुल रहमान भाजपा की सदस्यता ले चुके हैं। कुल मिलाकर मौजूदा स्थिति में भाजपा के पास 31 और साकेत पर काबिज कांग्रेसी महापौर राजकिशोर प्रसाद की झोली में केवल 26 पार्षद रह गए हैं, जबकि बहुमत के लिए कम से कम 30 पार्षदों का समर्थन अनिवार्य होता है। भले ही अविश्वास प्रस्ताव के लिए दो तिहाई यानी 59 में 40 पार्षदों के हस्ताक्षर जरुरी हैं, लेकिन कांग्रेस का न्याय पत्र लेकर जनता के लिए न्याय की वकालत करने वाले महापौर राजकिशोर प्रसाद खुद अन्याय व अन्याय करते हुए झूठ की सियासी बुनियाद पर टिकी इस मेयर की चेयर पर कब्जा जमाए हुए हैं। अगर सचमुच उन्हें न्याय-अन्याय की तलब होती, तो नैतिकता के आधार पर ही सही, उन्हें अब तक त्यागपत्र देकर स्वयमेव विनम्रता के साथ महापौर पद छोड़ दिया जाना चाहिए था।
ऐसे नहीं तो वैसे, कुर्सी तो गियो ही समझो, 60 दिन और जीहुजूरी करा लीजिए हुजूर
ऐसे नहीं तो वैसे ही सही पर नगर निगम कोरबा में काबिज कांग्रेस महापौर राजकिशोर प्रसाद की कुर्सी खतरे में पड़ ही चुकी है। मौजूदा हाल यह है कि मेयर राजकिशोर अल्पमत में हैं। इनके पास 26 कांग्रेसी पार्षद हैं, जबकि 31 भाजपा के पास और सूत्रों की मानें तो दो अन्य पार्षदों ने भी भाजपा की सदस्यता प्राप्त करने आवेदन दे रखा है। इनकी जाति को तो जिला जांच समिति ने पहले ही फर्जी करार देते हुए निलंबित कर रखा है और यह रिपोर्ट प्रदेश जांच समिति को भेजी जा चुकी है। अब इंतजार है तो सिर्फ 4 जून का, जिसमें आज से ठीक 60 दिन शेष रह गए हैं। इसके बाद प्रदेश की जांच समिति से एक आदेश संचालनालय को जारी होगा और इसके आधार पर रिपोर्ट की कॉपी मंत्रालय जाएगी। मंत्रालय से आदेश निकलेगा कि इनकी जाति फर्जी है, जिसके आधार मेयर पद पर निर्वाचन शून्य घोषित किया जाता है और राजकिशोर प्रसाद को पद से हटाया जाना चाहिए।
नैतिकता के नाते इस्तीफा कैसे, यहां तो किसी और अंगुलियों पर नाच रहे धागे से बंधे मेयर
सियासी एक्सपर्ट की मानें तो इतनी फजीहत झेलने की बजाय नैतिकता के आधार राजकिशोर प्रसाद को समझदारी से काम लेते हुए समय रहते नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे देना चाहिए, जो एक सम्मानजनक विदाई होगी। पर आखिर ये होगा भी तो कैसे। क्योंकि पपेट मेयर की पहचान रखने वाले यह एक ऐसे मेयर हैं, जो एक ऐसे धागे से बंधी कठपुतली हैं, जो किसी और की अंगुलियों से नाचते हैं। वह कहते हैं कि बैठो तो बैठ जाते हैं, खड़ा हो कहें तो खड़े हो जाते हैं। हुक्मरानों के समक्ष हाथ जोड़े चरणवंदन करने मशहूर इस अनोखे मेयर की डोर ही कुछ यूं बंधी है कि समझदारी भरा कदम लेने सोच आए भी तो कैसे। फिर ऐसे में तो नैतिकता के नाते इस्तीफा का साहसभरा फैसला लेने का तो सवाल ही नहीं उठता।