“विष्णु साय की सुशासन सरकार तथ्यों पर करती है फैसला, न कि बेतुकी पातियों पर”
कोरबा |
वरिष्ठ भाजपा नेता ननकीराम कंवर द्वारा कोरबा कलेक्टर अजीत वसंत (IAS) पर लगाए गए 14 बिंदुओं वाले आरोप अब जांच के दायरे में हैं।
लेकिन प्रशासनिक सूत्रों से प्राप्त शुरुआती जानकारियाँ बता रही हैं कि — इन आरोपों में न तो ठोस साक्ष्य हैं और न ही प्रशासनिक उल्लंघन का कोई प्रमाण।
शिकायत का प्रारंभिक परीक्षण बताते हैं कि 14 बिंदुओं में से किसी में भी तथ्यात्मक दम नज़र नहीं आता।
शुरुआती जांच : कागजों में आरोप, हकीकत में सच्चाई
राज्य सरकार ने इस शिकायत की जांच बिलासपुर संभाग के कमिश्नर सुनील जैन को सौंपी है।
कमिश्नर ने जांच की दिशा में प्रारंभिक दस्तावेज़ीय सत्यापन (Document Scrutiny) शुरू कर दी है।
सूत्रों का कहना है कि —
“ननकीराम कंवर की चिट्ठी मिलते ही जांच में तथ्य खुद सामने आने लगे।
जिन बातों को आरोप की शक्ल दी गई थी, वे वास्तविकता में प्रशासनिक प्रक्रियाओं के अनुरूप पाई गईं।”
सरकारी सूत्रों ने साफ किया है कि कलेक्टर अजीत वसंत के निर्णय और फाइल नोटिंग्स सभी वैधानिक प्रक्रिया के तहत हुए हैं।
इससे यह स्पष्ट है कि शिकायत में कोई ठोस आधार नहीं है।
राज्य सरकार का रुख स्पष्ट – तथ्य पहले, निर्णय बाद में
विष्णुदेव साय सरकार का प्रशासनिक मॉडल स्पष्ट और पारदर्शी है।
यह सरकार व्यक्ति नहीं, तथ्य देखती है।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय कई बार कह चुके हैं कि —
“सरकार किसी भी शिकायत को गंभीरता से लेती है,
लेकिन निर्णय तथ्यों के आधार पर होगा, न कि व्यक्तिगत द्वेष या राजनीतिक मनमुटाव पर।”
इस मामले में भी सरकार ने वही रुख अपनाया है।
यानी — जांच होगी, लेकिन निष्कर्ष सिर्फ तथ्यों से निकलेगा, न कि भावनाओं से।
कमिश्नर की जांच पर सवाल उठाने वालों की मंशा संदिग्ध
जैसे ही जांच प्रारंभ हुई, कुछ तथाकथित लोग अब कमिश्नर की कार्यवाही पर सवाल उठा रहे हैं। तवा गर्म देख रोटी सेकने वाले तथाकथित लोग सवाल की शक्ल में तथ्यों को तोड़कर पेश कर रहे है जबकि
प्रशासनिक सूत्र कहते हैं कि —
“जो सवाल उठा रहे हैं, वे जांच की सच्चाई से भलीभांति परिचित हैं।
दरअसल, जब आरोपों में दम नहीं मिला तो अब जांच प्रक्रिया को ही कटघरे में खड़ा करने की कोशिश हो रही है।”
विश्लेषकों का मानना है कि यह एक सोची-समझी रणनीति है ताकि सरकारी तंत्र और प्रशासनिक ईमानदारी पर भ्रम फैलाया जा सके। लेकिन वो अपना और जांच का हश्र जानते है।
कोरबा में दो ही ‘स्थायी विरोधी’ — ननकीराम और जयसिंह
कोरबा की राजनीति में यह कोई नई बात नहीं है कि प्रशासनिक पदों को लेकर व्यक्तिगत असंतोष उभरता है।
वैसे तो जिले में सैकड़ों नेता हैं,
परंतु जयसिंह अग्रवाल और ननकीराम कंवर ही ऐसे नाम हैं जिनके कलेक्टरों से संबंध कभी मधुर नहीं रहे।
जयसिंह अग्रवाल जहां बेतुके बयान देने में माहिर हैं,
वहीं ननकीराम कंवर बेतुकी पातियाँ लिखने के लिए चर्चित हैं।
राजनीतिक जानकार इसे “व्यक्तिगत रंजिश का प्रशासनिक दुरुपयोग” मानते हैं।
अजीत वसंत की कार्यशैली – परिणाम और पारदर्शिता का मॉडल
कोरबा कलेक्टर अजीत वसंत का कार्यकाल अब तक पारदर्शिता और तकनीकी सुधारों के लिए जाना जाता है।
- ई-ऑफिस व्यवस्था,
- कोरबा में सड़कों का जाल
- डीएमएफ का सदुपयोग
- भू-अभिलेख डिजिटलीकरण,
- और नागरिक सेवाओं की त्वरित निगरानी जैसी पहलें
उनके नेतृत्व में कोरबा में प्रभावी ढंग से लागू की गईं हैं।
यही वजह है कि आम जनता और स्थानीय संगठनों में कलेक्टर की छवि “कठोर लेकिन ईमानदार” अधिकारी की बनी हुई है।
राजनीति बनाम प्रशासन — अब जनता तय करेगी सच्चाई
ननकीराम कंवर की शिकायत को लेकर जिस तरह कुछ राजनीतिक मंचों पर प्रचार चलाया जा रहा है,
उसने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि —
क्या प्रशासनिक ईमानदारी को राजनीतिक महत्वाकांक्षा की भेंट चढ़ाया जा रहा है ?
जांच आयोग से जुड़े अधिकारी कहते हैं —
“कलेक्टर अजीत वसंत पर लगाए गए 14 बिंदु औपचारिक शिकायत स्तर के हैं।
इनमें किसी भी बिंदु को ‘दुराचार’ की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।”इधर कहा जा रहा है कि
कोरबा के इस कथित “विवाद” में न तो कोई तथ्यात्मक आधार है,
न कोई प्रशासनिक उल्लंघन।
जांच अपने रास्ते पर है, और सच्चाई बहुत जल्द सामने होगी।
साय सरकार की नीति स्पष्ट है —
“व्यक्तिगत द्वेष नहीं, केवल तथ्य और पारदर्शिता।”

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