बड़े अधिकारियों को बचाने निगम में फिर हुआ ‘खेला’ — बेकसूरों को मिली सज़ा, असली जिम्मेदार अब भी सुरक्षित

कोरबा।
राज्योत्सव के कटआउट को काऊकेचर (पशु/कचरा वाहन) में ढोए जाने की घटना में अब वह सच सामने आने लगा है, जिसकी आशंका पहले दिन से जताई जा रही थी।
नगर निगम कोरबा में इस प्रकरण को लेकर पूरे सिस्टम ने मिलकर ऐसा “खेला” खेला, जिसमें बड़े अधिकारियों को बचा लिया गया और बिना गलती वाले कर्मचारियों पर कार्रवाई कर दी गई।
नगर निगम आयुक्त ने दो उप अभियंताओं अश्वनी दास और अभय मिंज तथा स्वच्छता निरीक्षक सचीन्द्र थवाईत को निलंबित कर दिया है, जबकि असल जिम्मेदारी संभाल रहे अधिकारी पूरी तरह सुरक्षित हैं।
नोडल अधिकारी था सुरेश बरुवा — पर उसका नाम कार्रवाई सूची में तक नहीं
राज्योत्सव कार्यक्रम में संपूर्ण समन्वय, परिवहन व्यवस्था, सामग्री प्रबंधन और कटआउट लगाने की मुख्य जिम्मेदारी नोडल अधिकारी सुरेश बरुवा के पास थी। साथ ही अलग-अलग कार्यपालन अभियंता स्तर के अधिकारियों की बकायदा लिखित में ड्यूटी लगाई गई थी।
कटआउट किस वाहन में जाएगा, किसे क्या काम दिया जाएगा, स्थल तक सामग्री कैसे पहुंचेगी — इन सभी निर्णयों की कमान सुरेश बरुवा के हाथ में थी।

इसके बावजूद,
न तो उसे नोटिस भेजा गया, न जवाब मांगा गया, और न ही किसी प्रकार की कार्रवाई हुई।
कर्मचारियों में यह सवाल गूंज रहा है :
“जहां जिम्मेदारी तय होनी चाहिए थी, वहां नाम तक नहीं लिया गया । आखिर क्यों ?”
विनय मिश्रा ने पहले ही “स्क्रिप्ट तैयार” कर रखी थी
यह मामला तब सामने आया सब निगम आयुक्त आशुतोष पांडेय उस समय रायपुर में प्रधानमंत्री के दौरे और राज्योत्सव आयोजन की अत्यंत महत्वपूर्ण वीआईपी ड्यूटी पर थे।
इसी दौरान कोरबा नगर निगम का पूरा प्रभार अपर आयुक्त विनय मिश्रा के पास था।
कर्मचारियों के अनुसार मिश्रा ने पहले ही अपने चहेतों को बचाने की पूरी स्क्रिप्ट तैयार कर ली थी।
जब कोरबा के संवेदनशील आयुक्त के सामने रिपोर्ट पेश की गई, तब उन्हें ऐसा दिखाया गया मानो
अश्वनी दास, अभय मिंज और सचीन्द्र थवाईत ही मुख्य दोषी हों और पूरी लापरवाही उन्हीं की वजह से हुई हो।
स्वच्छता निरीक्षक सचीन्द्र थवाईत को जबरन बनाया गया “बलि का बकरा”
इस मामले का सबसे विवादित हिस्सा है स्वच्छता निरीक्षक सचीन्द्र थवाईत का निलंबन।
जांच में सामने आया कि :
- उनकी उस दिन कोई ड्यूटी नहीं लगी थी,
- कटआउट व्यवस्था से उनका कोई संबंध नहीं था,
- वाहन चयन या परिवहन प्रक्रिया में उनकी कोई भूमिका नहीं थी,
- और घटना के समय वे किसी अन्य विभागीय कार्य में लगे हुए थे।
फिर भी उन्हें न सिर्फ नोटिस भेजा गया, बल्कि निलंबित भी कर दिया गया।
कर्मचारियों की आवाज़ :
“जिसका नाम ड्यूटी सूची में भी नहीं था, उसे सज़ा देना किस न्याय का उदाहरण है ? यह साफ़ बलि का बकरा बनाने की रणनीति है ।”
बड़े अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं ? यह सबसे बड़ा सवाल
पूरा शहर और निगम कर्मचारी अब एक ही बात पूछ रहे हैं :
- जब घटना के समय पूरा चार्ज अपर आयुक्त विनय मिश्रा के पास था, तो जिम्मेदारी तय क्यों नहीं की गई ?
- कार्यक्रम के आधिकारिक नोडल अधिकारी सुरेश बरुवा से स्पष्टीकरण क्यों नहीं ?
- वाहन आवंटन किस स्तर पर तय हुआ, किसने अनुमति दी — इसकी जांच क्यों नहीं ?
- क्यों सिर्फ निचले स्तर के कर्मचारियों पर गाज गिराई गई ?
लोगों का कहना है कि
“निगम ने वही किया जो हमेशा करता है — बड़े बच गए, छोटे फंस गए।”
गौशाला प्रकरण पर भी चुप्पी — जबकि संवेदनहीनता उससे भी बड़ी
इसी अवधि में गौशाला में गौ-माता की मौत और शवों को JCB से उठाए जाने की घटना सामने आई थी।
इस पर भी कोई उच्चस्तरीय कार्रवाई नहीं हुई।
जनता पूछ रही है :
“कटआउट भी अपमान था और गौशाला घटना भी — दोनों में दोषी कौन है ?
क्या सिर्फ निचले कर्मचारी ही जिम्मेदार हैं ?”
न्याय अधूरा है, जिम्मेदारी अधूरी है
निलंबन के आदेश जारी होने के बावजूद मामला अधूरा माना जा रहा है।
जब तक :
- विनय मिश्रा की भूमिका,
- नोडल अधिकारी सुरेश बरुवा की जिम्मेदारी,
- और गौशाला प्रकरण के दोषियों
पर ठोस कार्रवाई नहीं होती,
इस पूरे प्रकरण को कागज़ी न्याय ही माना जाएगा।
शहर में यही चर्चा है :
“निलंबन हुआ — पर खेल वही पुराना । बड़े सुरक्षित, छोटे दंडित ।”

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