छत्तीसगढ़

जापानी खायेंगे छत्तीसगढ़ का काजू और अलसी, धनिया और मसूर

जशपुर, बस्तर, रायगढ और खैरागढ़़ के किसानों को मिलेगा लाभ, अंतर्राष्ट्रीय क्रेता-विक्रेता सम्मेलन में हुआ अनुबंध

रायपुर। जापान की पहचान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक विकसित देश, टेक्नॉलॉजी और गगनचुम्बी इमारतों को लेकर होती है लेकिन कृषि में आत्मनिर्भरता के मामले में जापान अन्य कई देशों से पीछे है। कृषि भू-भाग बहुत अधिक नही होने की वजह से जापान में सीमित स्तर पर फसल ली जाती है। भारत के बहुत से लोग जापान में रहते है और यहा रहने वाले भारतीयों को अपने देश की मिट्टी में पैदा होने वालो फल, सब्जियां हमेशा पसंद आती है। यहा अनेक भारतीय रेस्टोरेंट भी है, जहां भारतीयों की पंसद के अनुरूप खाना परोसा जाता है। जापानी सहित यहां रहने वाले भारतीयों को पसंद का जायका व स्वाद मिल सके इस दिशा में वहा रहने वाले योगेश शर्मा, श्याम सिंह लंबे समय से काम कर रहे है। क्रेता-विक्रेता सम्मेलन के माध्यम से पहली बार जापान से छत्तीसगढ़ आये योगेश और श्याम सिंह ने छत्तीसगढ़ में पैदा होने वालो काजू को जापान पहुचाने कदम बढ़ाया है। उन्होंने 18 मीट्रिक टन काजू, 10 मीट्रिक टन धनिया, अलसी और 40 मीट्रिक टन मसूर दाल का अनुबंध किया है। इस अनुबंध के बाद काजू, अलसी उत्पादन से जुड़े किसान खुश है। उन्हें उम्मीद है कि वे उत्पादन में वृद्धि करने के साथ समय पर उत्पाद को सही कीमत पर खरीददार तक पहुंचा पायेंगे। इससे आर्थिक लाभ भी बढ़ेगा।
छत्तीसगढ़ शासन द्वारा होटल सयाजी में आयोजित तीन दिवसीय क्रेता-विक्रेता सम्मेलन में विशिष्ट रूप से पहुचे श्री श्याम सिंह जापान में खाद्य सामग्रियों का व्यापार करते है। सरताज को डॉट लिमिटेड के माध्यम से खाद्यान्न सामग्री को ऑनलाइन विक्रय भी करते है। उन्होंने बताया कि जापानी सहित भारतीयों को भारतीय खाद्यान्न सामग्री पसंद आती है। किसानों द्वारा जैविक खाद के इस्तेमाल से उत्पादित काजू की डिमांड यहा होती है। उन्होंने बताया कि सम्मेलन में प्रदर्शित उत्पादों को देखने के बाद इसकी क्वालिटी अच्छी लगी। जैविक उत्पाद होने की वजह से इसकी डिमांड होती है। इसलिये इसे जापान तक लोगों को उपलब्ध कराने का फैसला लिया है। उन्होंने बताया कि जापान में काजू का उत्पादन बहुत कम है। छत्तीसगढ़ से काजू जाने के बाद यह जापानियों को बहुत पसंद आयेगी। योगेश शर्मा ने बताया कि 10 मीट्रिक टन धनिया, अलसी और 40 मीट्रिक टन मसूर दाल के लिये भी अनुबंध हुआ है। किसानों के द्वारा जैविक विधि से उत्पन्न कृषि उत्पाद अलसी, मसूर का उपयोग जापानी करते है।
*जशपुर, बस्तर, रायगढ़ में हो रहा काजू का उत्पादन*
काजू उत्पादन में छत्तीसगढ़ की पहचान राष्ट्रीय स्तर लगातार बढ़ रही है। शासन द्वारा काजू उत्पादन को बढ़ावा देने की दिशा में काजू की खेती एवं प्रोसेसिंग यूनिट स्थापना की पहल की गई है। नाबार्ड के बाड़ी विकास योजना के माध्यम से जशुपर, बस्तर एवं रायगढ़ क्षेत्रों में काजू का पौधा बड़े भू भाग में लगाया गया है। जशपुर में लगभग सात हजार हेक्टेयर में काजू का पौधा लगाया गया है। जिसमें से 15 सौ हेक्टेयर में उत्पादन होता है। बस्तर में 20 हजार हेक्टेयर में काजू की फसल है। जापान के व्यापारी द्वारा जशपुर के ग्रान प्लस आदिवासी सहकारी समिति, बस्तर के ग्रामोत्थान सेवा समिति, रायगढ़ के मॉ कैश्यू प्रोसेसिंग यूनिट से अलग-अलग छह-छह मीट्रिक टन का अनुबंध किया गया है। इससे जुड़े किसानों ने बताया कि जापान द्वारा 18 मीट्रिक टन काजू का अनुबंध के अनुसार काजू की उपलब्धता समय पर सुनिश्चित करने इसकी प्रोसेसिंग की मात्रा को बढ़ाया जायेगा। जापान द्वारा ए ग्रेड की काजू खरीदी जायेगी।
नोहर सिंह खुश, जापानी लेंगे एक टन अलसी*
छत्तीसगढ़ में पहली बार आयोजित क्रेता- विक्रेता सम्मेलन में पहुचे राजनांदगांव जिले के खैरागढ़ ग्राम हरदी के किसान नोहर सिंह जंघेल शासन द्वारा आयोजित इस तरह के सम्मेलन से बहुत खुश है। वैसे तो नोहर सिह गन्ना, चना, धान आदि की फसल लेते है लेकिन विगत कुछ साल से वे अलसी का उत्पादन कर रहे है। नोहर सिंह ने बताया कि जापान से अनुबंध हुआ है। वे एक टन अलसी हर सीजन में खरीदेंगे। उन्होंने बताया कि सामान्य अलसी की कीमत 45 रूपये प्रतिकिलों है लेकिन जैविक खेती से उत्पन्न अलसी का मूल्य 80 से 90 रूपये है। चूंकि जैकिव स्तर पर क्वालिटी युक्त अलसी तैयार की जायेगी इसलिए जापान के व्यापारी को 220 रूपये प्रतिकिलों में अलसी देने का अनुबंध हुआ है, जबकि हैदराबाद के व्यापारी से 200 रूपये प्रतिकिलों में अलसी की बिक्री करेंगे। उन्होंने बताया कि अलसी औषधि गुणों से भरपूर है। इससे कई बीमारी भी दूर होती है।

 
HOTEL STAYORRA नीचे वीडियो देखें
Gram Yatra News Video

Live Cricket Info

Related Articles

Back to top button