नक्सली नकली नोट छापने पर मजबूर क्यों हो गए…
सुनील दास
नक्सली अब नकली नोट छापकर उसे बस्तर के बाजारों में खपा रहे हैं।यह खबर चौंकाने वाली है क्योंकि नक्सलियों ने आज तक यह काम नहीं किया था। नक्कली मूवमेंट कई दशकों से देश के कई राज्यों में चलाया जा रहा है।कभी कहीं सुनने व पढ़ने को यह नहीं मिला था नक्सली कहीं पर नकली नोट छापकर बाजार में चला रहे हैं। नक्सली तो खुद को क्रांतिकारी कहते आए है्ं। वह खुद को जल,जंगल व जमीन की रक्षा करने वाला कहते आए हैं, खुद को आदिवासियों का रक्षक कहते आए है। इससे उनकी छवि आदिवासी क्षेत्रों में आदिवासियों के कल्याण का काम करने वाले संगठन की बनी थी।
वह मुखबिरी करने वालों को सजा देते थे, मार देते थे,पुलिस बल पर हमला करने थे तो भी देशद्रोही तो नहीं कहा जाता था। नकली नोट छापना तो देशद्रोह है। पुलिस सहित किसी संगंठन को आज तक यह पता नहीं चला था कि नक्सली अब नकली नोट छापने लगे हैं। इसका खुलासा तो तब हुआ कि जब पुलिस २३ जून को तलाशी अभियान में निकली। उसे सूचना मिली था कि ग्राम मैलासूर, कोराजगुड़ा, दंतेशपुरम और आस-पास के क्षेत्र में नकस्ली हैं। तलाशी टीम जब उस इलाके में सर्चिंग के लिए पहुंची तो नक्सलियों का पुलिस के आने की भनक लग गई थी और वह नकली नोट, नकली नोट छापने की मशीन आदि सामान छोड़कर भाग चुके थे।
एसपी किरण चौहान के अऩुसार भोले-भाले आदिवासियों को धोखे में रखकर नक्सली अंदरूनी क्षेत्रों के साप्ताहिक बाजारों में लंबे समय से नकली नोट खपा रहे थे। जानकारी के अनुसार, वर्ष 2022 में बड़े नक्सली कैडरों ने प्रत्येक एरिया कमेटी के एक-एक सदस्य को नकली नोट छापने का प्रशिक्षण दिया था। प्रशिक्षण के बाद, ये प्रशिक्षित नक्सली अपने-अपने एरिया कमेटी में नकली नोट छापकर उन्हें अंदरूनी क्षेत्रों के साप्ताहिक बाजारों में खपा रहे थे। सवाल उठता है नक्सलियों को वह काम आखिर क्यों करना पड़ा जो काम उन्होंने कभी नहीं किया यानी देशद्रोह का काम।
एक वजह तो यह बताई जा रही है कि पुलिस सख्ती के कारण पिछले कुछ सालों में नक्सली पहले की तरह बस्तर क्षेत्र में ठेकेदारों से वसूली नहीं कर पा रहे हैं। इससे उनके सामने पैसों की तंगी हो गई है। छोटे मोटे खर्चे के लिे पैसे जुटाने उन्होंने नकली नोट छापना शुरू किया। वैसे तो माना जाता है कि जब कोई देश जैसे पाकिस्तान नकली नोट छाप कर भारत भेजता था तो उसका मकसद भारत की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुचाना होता था। नक्सली अभी किस पैमाने पर नकली नोट छाप रहे थे यह साफ नहीं है. इसलिए यह तो नही कहा जा सकता कि वह बस्तर की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुचाना चाहते थे लेकिन नकली नोट छापने की मशीन व नकली नोट मिलने से यह तो साफ है कि नकली नोट बस्तर के बाजाराें में खपा रहे थे।
यह देशद्रोह है, यह काम नक्सली करना पसंद नहीं करते थे और वर्तमान में उनको इसलिए भी करना पड़ रहा होगा कि साय सरकार की सख्ती के कारण वह अपनी आतंक फैलाने वाली गतिविधियां चला नहीं पा रहे है,इससे उनका आतंक क्षेत्र के लोगों व ठेकेदारों में कम हो गया है, इससे लोग पहले की तरह डर के मारे पैसा नहीं दे रहे हैं। हो सकता है कि पैसों की कमी दूर करने के लिए नक्सली नकली नोट छापने जैसा काम करने को मजबूर हो गए हैं तो यह साय सरकार की बड़ी सफलता है। इससे साफ हो जाता है कि नकस्ली अब आर्थिक रूप से कमजोर हो रहे हैं।
बस्तर से नक्सलियों के सफाए के लिए उनका आर्थिक रूप से कमजोर होना भी जरूरी है। वह आर्थिक रूप से कमजोेर होंगे तो नए हथियार नहीं खरीद सकेंगे,नई भर्ती नहीं क सकेंगे, अपनी गतिविधयां बड़े क्षेत्र में नहीं चला सकेंगे. खाने का सामान नहीं खरीद सकेंगे।शहर से जो भी सामान नक्सली मंगाते है,पैसेन होने से उसकी सप्लाई नहीं हो सकेगी। यानी सही मायने में नक्सलियों की कमर तो अब टूटेगी जब उनके पास पैसा ही नहीं होगा।नकली नोट छापकर वह छोटामोटा खर्चा तो कर सकते हैं लेकिन शहरो में उनका नकली नोट चलने वाला है।
पुलिस को अब पात चल गया है कि नक्सली नकली नोट छाप रहे है और चला रहेहै ंतो वह अब और ज्यादा सजग हो जाएगी और जिस इलाके में नकली नोट मिलेंगे उस इलाके में जल्द पता लेगी कि कौन नकली नोट छाप रहा है। उसे जल्द पकड़ भी लिया जाएगा। पहले पता नहीं था इसिलए साप्ताहिक बाजारों में नकली नोट चलाए जा रहे थे। अब पुलिस बाजारो में भी लोगों को जोगरूक करेगी िक नकली नोट को कैसे पहचाना जा सकता है।
इससे आने वाले दिनों में नक्सली बस्तर में भी नकली नोट नही चला पाएंगे यानी आने वाले दिन नक्सलियों के लिए और भी बुरे साबित होने वाले है्ं. आज तक कोई सरकार नक्सलियों को आर्थिक रूप से कमजोर नहीं कर सकी थी, साय सरकार के समय ऐसे संकेंत मिल रहे हैं तो यह साय सरकार की बडी़ सफलता है।
नमस्कार
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