छत्तीसगढ़

कांग्रेस शासन में ने नहीं सुनी गई वेदांता समूह की कंपनी बालको के शोषण का शिकार हुए भू विस्थापित कर्मियों की वेदना, क्या विष्णुदेव सरकार में होगी सुनवाई, ढाई माह बाद चोटिया के सैकड़ों श्रमिकों को बेरोजगारी का डर

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कोरबा। मल्टीनेशनल कंपनियों में शुमार वेदांता समूह की कंपनी बालको अपने ही कर्मचारियों के शोषण की पराकाष्ठा पार करती जा रही है। अब कंपनी के खान सैकड़ों कर्मियों को ढाई माह बाद काम छिन जाने का डर सता रहा है। बालको के चोटिया कोयला खदान में ठेकेदार एजेंसी धनसार इंजीनियरिंग कंपनी प्राईवेट लिमिटेड द्वारा सभी कर्मचारियों को नोटिस जारी किया गया है, कि उन्हें 1 अगस्त 2024 तक कार्यमुक्त कर दिया जाएगा तथा सम्पूर्ण खनन कार्य 31 जुलाई 2024 तक पूर्ण कर लिया जाएगा। क्या पुनः वर्ष अगस्त 2020 में जिस तरह से खदान बंद करके सैकड़ों श्रमिकों की रोजी रोटी छीन ली गई थी। पुनः बालको द्वारा सभी भू विस्थापित कर्मचारियों की छंटनी करके उन्हें बेरोजगार कर दिया जाएगा।

भारत एल्यूमीनियम कंपनी लिमिटेड द्वारा चोटिया खदान व बीसीपीपी में कार्यरत 154 से अधिक भू विस्थापित कर्मचारियों के अधिकार का दामन करती आई है। आलम यह है कि वर्तमान विस्तार परियोजना में 10 हजार करोड़ से अधिक का निवेश करने वाली World Class Company की हैसियत इतनी भी नहीं है कि वह अपने कर्मचारियों को सम्मानजनक वेतनमान तो दूर, पीएफ, ईएसआईसी, बोनस, एलटीए, एक्सग्रेसिया, मेडिकल एलाउंस, ग्रेजयुटी, लीव इंकेशमेंट, एचआरए, प्रोडक्शन बोनस जैसी बुनियादी सुविधाएं तक दे सके। यहां तक कि केंद्र सरकार द्वारा कोयला कर्मियों के लिए निर्धारित न्यूनतम वेतनमान का भी भुगतान नहीं किया जा रहा है।
बता दें कि लंदन मेटल किंग के नाम से प्रसिद्ध अनिल अग्रवाल की Vedanta Resources PLC की Subsidiary बालको में खान मंत्रालय भारत सरकार की 49 प्रतिशत की शेयरधारिता है। इसके बाद भी लगातार बालको द्वारा बीसीपीसी संयंत्र एवं खदान तक में नियोजित कर्मचारियों का अनवरत शोषण जारी है। आखिर बालको प्रबन्धन को किसका संरक्षण प्राप्त है, जिसके कारण वह अपने कर्मचारियों का शोषण करके दुनिया के सामने अपनी विकासगाथा की दुहाई दे रहा है। क्या बालको के श्रमिकों एवं आम जनता के शोषण, दमन और मूलभूत अधिकारों के हनन से कोरबा व छत्तीसगढ़ की विकास गाथा लिखी जाएगी?

गौर करने वाली बात यह है कि पूर्ववर्ती बघेल सरकार द्वारा वर्ष सितंबर 2022 में खदान को पुनः शुरू करवाया गया था। महज 23 महीनों तक खदान संचालन के पश्चात पुनः सैकड़ों श्रमिकों को बेरोजगार किया जाएगा? क्या अब राज्य सरकार को हजारों करोड़ो रूपए के राजस्व रॉयल्टी, GST की क्षति नहीं होगी? क्या अब राज्य सरकार को बालको पीपीए अनुबंध के अनुसार कैप्टिव कोल ब्लॉक से पॉवर प्लांट में कोयले की खपत होने पर विद्युत की आपूर्ति करेगा? आखिर श्रमिकों एवं राज्य सरकार को होने वाले नुकसान की भरपाई कैसे होगी? यह भी सवाल यह उठता है कि क्या बालको के 10 श्रमिक यूनियन तथा वर्तमान भाजपा सरकार भू विस्थापित श्रमिकों के हुए शोषण के खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही करेगी या फिर पुनः मूकदर्शक की भांति बालको द्वारा किए जा रहे अवैध छंटनी और श्रम विरोधी कृत्यों में चुप्पी साधे मौन सहभागिता देगी।


2022 में बीसीपीपी के 22 भू विस्थापित पंडो आदिवासियों को जबरन वीआरएस

स्मरण रहे कि 12 दिसंबर 2022 को बालको के शोषण के विरूद्ध आवाज उठाते हुए चोटिया खदान के बीसीपीपी संयंत्र में कार्यरत 22 भू विस्थापित कर्मचारियों द्वारा एक दिवसीय विरोध प्रदर्शन किया गया था। उनसे सफाई कर्मचारी की भांति कार्य कराए जा रहे थे। हक के लिए उठाई गई आवाज के बदले भू विस्थापित कर्मियों अस्थिर दास, राय सिंह, शिव दास, फूल दास, मनहरण दास, श्याम दास, मनहरण जैसे पण्डो जनजाति के आदिवासियों को जबरन वीआरएस भराकर निकालने के उद्देश्य से निलंबित कर दिया गया। उन्हें आज तक सिर्फ 2000-3000 में गुजारा भत्ता देकर जीवन निर्वाह करने को मजबूर कर दिया गया है। जिनकी पुरखों की जमीनें कोयला खदान के नाम पर औद्योगिक विकास के नाम पर लेकर पहले प्रकाश इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने 154 भू विस्थापित कर्मचारियों का शोषण किया। अब वही कार्य बालको प्रबंधन द्वारा वर्ष 2015 से चोटिया के भू विस्थापित कर्मचारियों के साथ आज पर्यंत तक किया जा रहा है। बालको के जैसे ही अन्य दूसरे उद्योग नाल्को में ठेका कर्मचारियो को CACLB द्वारा तय किए गए HPC दर पर न्यूनतम वेतनमान का भुगतान किया जाता है, जबकि बालको द्वारा अपने कोयला खदान में कार्यरत कर्मचारियों को अपने संयंत्र में कार्यरत स्थाई बालको कर्मचारियों को LTS 9, LTS 10 में शामिल करते हुए न समान वेतन प्रदान किया गया ना ही कोयला मंत्रालय द्वारा सेंट्रल ट्रेड यूनियन के साथ हुए राष्ट्रीय कोयला वेतन समझौता 9, 10 के समान वेतन समझौता कर न्यूनतम वेतन और कर्मचारी लाभ का भुगतान किया गया। इतना ही नहीं अपने स्वार्थ सिद्धि और आर्थिक लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से एक श्रमिक संघ के तथाकथित नेता के साथ 154 भू विस्थापितों में से 130 भू विस्थापितों को डरा धमकाकर वर्ष 2020 में वीआरएस भरवाया गया। अपितु खदान को बंद करने कोयला मंत्रालय को नोटिस जून 2021 में बालको द्वारा दिया गया। इस तरह से 1 वर्ष पहले ही औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के प्रावधानों का स्पष्ट उल्लंघन करते हुए श्रमिको की छंटनी कर दी गई। तब 22 कर्मचारियों ने किसी भी हाल में वीआरएस लेने से मना कर दिया तो उन्हें बालको के परिक्षेत्र से बाहर औरंगाबाद, पुणे, कोलकाता जैसे महानगरों में सितंबर 2020 में ट्रांसफर कर दिया गया। यह बालको पर लागू कोयला कर्मियो के स्थाई आदेश के धारा 16 का उल्लंघन है। इसके बाद कर्मचारियों द्वारा हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई, जिसे श्रम न्यायालय कोरबा में सुनवाई के लिए आदेशित किया गया।


मैला ढोने पर मजबूर किया, एफआईआर दर्ज भी हुआ, पर कार्यवाही नहीं

इसके बाद बालको द्वारा चुपचाप कर्मियो को एनटीपीसी के कावेरी विहार में सफाई कर्मचारी के काम में लगा दिया गया और उनकी सितंबर 2020 से फरवरी 2021 तक की वेतन की राशि का भी गबन कर लिया गया। इन्ही कारणों से कर्मचारियों द्वारा एक दिवसीय हड़ताल किया गया था। जिसके बाद से बालको द्वारा भू विस्थापितों का शोषण अपनी पराकाष्ठा को पार कर गया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार हाथ से मैला ढोने पर प्रतिबंध लगाया गया है। उसके बाद भी 22 कर्मचारियों से फरवरी 2021 से आज पर्यंत तक manual scavenging का कार्य कराया जा रहा है। इससे साफ है कि बालको को ना प्रशासन का भय है न ही न्यायालय का। इन्ही कारणों से कर्मियो द्वारा तत्कालीन कलेक्टर संजीव झा के समक्ष याचिका दायर की गई थी। एसपी कोरबा और बांगो थाना में भी एफआईआर के लिए आवेदन दिया गया था, पर आज तक कर्मियो को किसी भी तरह से न्याय न प्रशासन से मिल पाया और न ही न्यायालय से मिला है।

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