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जयसिंह का उपहार अब भी संभाले है नगर सरकार ! जनता कर रही है हाहाकार, नहीं फिक्र कर रही लखन और साय की सरकार…

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कोरबा। सड़कों पर जिंदगी और मौत से जद्दोजहद करना तो जैसे कोरबा के नागरिकों की नियती बन गई है। पूर्व में कांग्रेस सरकार के मंत्री रहे जयसिंह अग्रवाल और नगर निगम के मौजूदा मेयर राजकिशोर प्रसाद ने लील जाने को इंतजार करते ये खतरों से भरे रास्ते कोरबा के राहगीरों को उपहार में दिए थे। तब इन्हीं सड़कों पर खूब सियासत भी हुई और भाजपा ने 2023 के चुनाव में इसे भुनाया भी। दुर्भाग्य तो यह है कि कोरबा विधानसभा में ही मौजूद इन जानलेवा गड्ढों को कोरबा के ही विधायक और वर्तमान साय सरकार के मंत्री लखनलाल देवांगन भी यूं देखते गुजर जाते हैं, मानों वे भी कांग्रेस शासन से मिली इस विरासत को आगे बढ़ाने की प्लानिंग लेकर चल रहे हैं। तभी तो, पावरसिटी कोरबा से लेकर पूरे प्रदेश में भाजपा की सरकार काबिज हुए 205 दिन गुजर जाने के बाद भी कोरबा की सबसे जर्जर इन दो सड़कों की नैया पार नहीं लग सकी। आलम यह है कि बारिश के इस मौसम में इन सड़कों पर भरे पानी की गहराई इतनी हो चली है कि सड़क की जगह छोटी नहर का निर्माण कर लें, तो लोगों के लिए नाव चलाकर राहत मिलने की संभावना बन सकती है। तभी तो कहा जा रहा है कि

“ये नेपाल का पहाड़ी रास्ता नहीं, कोरबा की सड़क है सरकार, कांग्रेस के पूर्व मंत्री और मौजूदा मेयर ने दिया था उपहार, अब इस विरासत को आगे बढ़ाती दिख रही लखन भैया की साय सरकार, जरा संभलकर चलें नहीं तो…बेवक्त बन जाएंगे शिकार”

तस्वीर में दिखाई दे रही ये सड़कें कोरबा शहर से बाहर आते ही सर्वमंगला-कुसमुंडा-इमलीछापर और बालको के परसाभांठा चैक से रुमगरा तक जाने वाले मार्ग की है। सड़कों की हालत देखकर अब जनता के मन में एक ही सवाल उठता है कि आखिर कब सड़कों की सूरत बदलेगी। खासतौर पर जिले के नदी पार कुसमुंडा क्षेत्र की सड़कों का बेहद बुरा हाल है। अधिकारी एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालकर खुद को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। सर्वमंगला मंदिर से कुसमुंडा जाने वाले मार्ग पर आए दिन लंबा जाम लगा जाता है। करोड़ों की लागत से इसमें फोरलेन का निर्माण कार्य अब तक अधूरा है। लापरवाही की वजह से काम धीमी गति से चल रहा है और इस सड़क के ऐसे हालात पिछले पांच सालों से बने हुए हैं। कुसमुंडा पहुंचने तक पूरा मार्ग बहुत ही जर्जर है। लोगों को इस मार्ग पर जान हथेली पर रखकर चलने मजबूर होना पड़ रहा है।

बारिश में कीचड़, धूप में धूल, अफसर-नेता मस्त और डेढ़ लाख आबादी हलकान

इस मार्ग पर बारिश होने पर पानी भर जाता है, जिससे कीचड़ की परेशानी होती है। धूप निकलने पर धूल उड़ने से भी आम जनता के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। इस मार्ग की बदहाली को लेकर लोग काफी आक्रोशित हैं। एक ओर कोयला परिवहन के लिए विभिन्न कंपनियों के भारी वाहन दौड़ाने वाले एसईसीएल द्वारा खदानों का संचालन केवल मुनाफा कमाने के लिए किया जा रहा है, जबकि नगर निगम की दिलचस्पी केवल टैक्स वसूलने तक सीमित है। अधिकारियों के साथ कई बार बातचीत के बावजूद, स्थानीय लोग और उपनगरीय क्षेत्र बांकी मोंगरा की जन समस्याओं को हल करने के लिए न तो अफसर गंभीर दिख रहे हैं और न ही क्षेत्र के जनप्रतिनिधि ही कोई खैर लेने को तैयार दिख रहे हैं। सड़क चैड़ीकरण का कार्य अधूरा पड़ा हुआ है, लेकिन बारिश के दिनों में सड़क में कीचड़ ही कीचड़ देखा जा सकता है। जिससे नगर निगम के पश्चिम क्षेत्र के लगभग डेढ़ से दो लाख की आबादी प्रभावित होती है। जिला मुख्यालय तक पहुंचने के लिए उन्हें काफी जद्दोजहद का सामना करना पड़ता है।

अब पढ़िए देश की सबसे बड़ी एल्युमिनियम उत्पादक कंपनी बालको की सड़कों का हाल

परसाभांठा चैक से रूमगड़ा होते हुए मेजर ध्यानचंद चैक तक की यह सड़क बालको के औद्योगिक सामाजिक दायित्वों के तहत उनके अधीन है। देश की सबसे बड़ी एल्युमिनियम उत्पादक कंपनी बालको की मनमानी थमने की बजाय और भी बढ़ती दिखाई दे रही है। पूर्ववर्ती कांग्रेस की सरकार में तो मानों बालको का दिमाग सातवें आसमान पर था, जो एल्युमिनियम उत्पादन के विस्तार के लिए जिले में ही 10,000 करोड़ रुपये का निवेश कंपनी द्वारा किया जा रहा। कंपनी द्वारा एल्युमिनियम उत्पादन की दिशा में नित नए कीर्तिमान गढ़े जा रहे हैं, लेकिन, जिले के लोगों के लिए ठीक से एक सड़क तक नहीं दे पा रही है। रूमगड़ा से बालको परसाभांठा तक जाने वाले सड़क मार्ग पूरी तरह से उखड़ चुका है। गड्ढे इतने बड़े हैं कि यदि कोई स्कूटी चालक इन गड्ढों में उतर जाए, तो वह निश्चित रुप से गंभीर दुर्घटना से नहीं बच सकता। प्रबंधन लगातार जिले में जनहित वाले कार्यों की उपेक्षा कर, अपनी मनमानी पर उतारू है। 

विकास कार्य का ढिंढोरा पीट रहा बालको और दुर्घटना के शिकार हो रहे आम लोग

इस मार्ग से दर्री-जमनीपाली क्षेत्र के भी लगभग डेढ़ लाख लोग सफर करते हैं। बालको जाने के लिए यही एक मात्र विकल्प है। इस सड़क से नहीं जाने पर लोगों को 10 से 12 किलोमीटर का अतिरिक्त फासला तय करना पड़ रहा है। वर्तमान में यह सड़क इतनी जर्जर है कि लोग इससे सफर करने से बचते हैं। बालको प्लांट से उत्सर्जित राख परिवहन इसी सड़क के जरिए होता है। बालको के ही भारी वाहन इस सड़क से आवागमन करते हैं। जिससे सड़क पूरी तरह से उखड़ चुकी है। बारिश होने पर यहां कीचड़ जम जाता है, तो सूखे मौसम में धूल उड़ता है। यह बेहद दुर्भाग्यजनक स्थिति है। बालको के 51 फीसदी शेयर का निजीकरण करने के बाद केवल 49 फीसदी शेयर ही सरकार के पास है। यह एक प्राइवेट सेक्टर की सार्वजनिक उपक्रम है। जिसका यह दायित्व है कि जिले में वह सामाजिक कार्यों को पूर्ण करें और आसपास के लोगों का जीवन स्तर उठाने का काम करें। लेकिन, बालको ने सदैव इसके विपरीत ही काम किया है। बालको के अधिकारी विकास कार्य कराने का ढिंढोरा जरूर पीटते हैं पर वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है।

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