
कोरबा। क्या किसी मां-बाप के लिए इससे बड़ा कोई अजाब हो सकता है कि उनकी मासूम बेटी की लाश 17 घंटे तक सरकारी तंत्र की लापरवाही के कारण यूं ही पड़ी सड़ती रहे और अफसर-कर्मचारी चैन की नींद सोते रहें ? कोरबा के स्व. बिसाहू दास महंत मेडिकल कॉलेज में यही हुआ। एक 13 साल की बच्ची ने दम तोड़ दिया, पर यहां के अफसर और डॉक्टरों की संवेदनहीनता देखिए — पोस्टमार्टम की मामूली कानूनी औपचारिकता पूरी करने में पूरे 17 घंटे टालमटोल किया गया।
फांसी पर झूली पियांशी, अस्पताल में तोड़ा दम
आदर्श नगर, कुसमुंडा निवासी पियांशी जायसवाल (13) ने घर में मामूली विवाद के बाद फांसी लगा ली। बदहवास परिजन उसे मेडिकल कॉलेज अस्पताल लेकर भागे। डॉक्टरों ने कुछ देर खानापूरी की और शाम 5 बजे मौत की पुष्टि कर दी। यहां से शुरू हुआ सरकारी सिस्टम का अमानवीय तमाशा।
एक घंटे का नियम, 17 घंटे की शर्मनाक देरी
नियम कहता है कि मौत की सूचना एक घंटे के भीतर अस्पताल पुलिस चौकी तक जानी चाहिए ताकि पोस्टमार्टम की प्रक्रिया शुरू हो सके। लेकिन मेडिकल कॉलेज के अफसरों ने न तो कोई मेमो भेजा और न ही पुलिस को सूचना दी। उधर, मां-बाप अपनी बच्ची की लाश के साथ रातभर अस्पताल के गलियारे में बिलखते बैठे रहे। लेकिन डॉक्टर और जिम्मेदार अधिकारी गायब होकर सिस्टम को मुंह चिढ़ाते रहे।
चौकी प्रभारी का पड़ा डंडा, तब टूटी कुंभकर्णी नींद
मंगलवार दोपहर तक भी जब अस्पताल से मेमो नहीं भेजा गया, तब गुस्साए परिजन पुलिस चौकी पहुंचे। चौकी प्रभारी दाऊद कुजूर को जब इस हैवानियत की भनक लगी तो उन्होंने मेडिकल कॉलेज प्रशासन को फटकारा। हड़कंप मचते ही प्रभारी सहायक अस्पताल अधीक्षक रविकांत जाटवर ने आनन-फानन में कागज भिजवाए। बाद में डीन ने दोषी डॉक्टर और ड्यूटी नर्स पर कार्रवाई की बात कही, भविष्य में घटना की पुनरावृत्ति नहीं करने पत्र जारी किया, लेकिन यह डीन साहब यह कोई पहली घटना नहीं है, इससे पहले कई बार ऐसा होते रहा है !
- क्या करते है आपके अस्पताल अधीक्षक डॉ. गोपाल कंवर ?
- शिशुरोग विभाग एचओडी डॉ. राकेश वर्मा क्या कर रहे थे ?
- नियमों को ताक पर रख टेंडर बांटने वाले एमएस डॉक्टर गोपाल कंवर औऱ डॉक्टर राकेश वर्मा ने क्यों नहीं इस संवेदनशील मामले में संज्ञान लिया ?
- अगर उन्होंने संज्ञान नहीं लिया है तो उन पर कार्रवाई क्यों नहीं ?
लापरवाही से अंतिम संस्कार भी टला
पोस्टमार्टम में 17 घंटे की देरी का खामियाजा ये हुआ कि मंगलवार शाम होने वाला अंतिम संस्कार भी टालना पड़ा। परिजनों का कहना है —
“हम पूरी रात अस्पताल के बाहर रोते-बिलखते बैठे रहे, कोई सुनने वाला नहीं था। आखिरकार चौकी प्रभारी की सख्ती से कागज आए।”
अस्पताल प्रशासन की कायराना चुप्पी
इतनी बड़ी लापरवाही के बाद भी अस्पताल प्रबंधन का कोई जिम्मेदार अफसर सामने नहीं आया। सिर्फ एक औपचारिक दस्तावेज भिजवाकर मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की गई। अधीक्षक डॉ. गोपाल कंवर भी पूरे मामले पर मुंह सिलकर बैठे रहे।
सिस्टम की सड़ांध उजागर
ये कोई पहली बार नहीं है। मेडिकल कॉलेज में इलाज में लापरवाही, शव को लेकर खानापूर्ति और जिम्मेदार अफसरों की ढिलाई के मामले पहले भी सामने आ चुके हैं। मगर इस बार 13 साल की मासूम की लाश के साथ सिस्टम का खेल देखने के बाद सवाल उठ रहा है — आखिर कब जागेगा ये मुर्दा तंत्र ?
सख्त कार्रवाई की मांग
परिजन और स्थानीय लोगों ने जिला प्रशासन से जिम्मेदार अफसरों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि “अगर अब भी प्रशासन नहीं चेता तो लोग सड़कों पर उतरने को मजबूर होंगे।”