सरप्लस बिजली उत्पादन वाले राज्य की राजधानी अंधेरे में
रायपुर। राजधानी अंधेरे में है। शहर की गई गली, मोहल्लों में स्ट्रीट लाइट बंद है। फ्यूज लाइट बदली नहीं जा रही हैं। जो लगी हैं उनमें भी कई जल-बुझ रही हैं, इसलिए इनका कोई मतलब नहीं। यह हालात तब हैं जब त्योहारों का सीजन शुरू हो चुका है। शहर की हर सड़क रोशन होना चाहिए, लेकिन ये अंधेरे में डूबी हैं। इसे लेकर जनता तो परेशान है ही, पार्षद भी परेशान हैं।
हर वार्ड से शिकायतें पार्षदों के माध्यम से नगर निगम मुख्यालय पहुंच रही हैं। निगम का शिकायत नंबर निदान 1100 में भी स्ट्रीट लाइट्स बंद होने की शिकायतें आवारा मवेशियों के बाद सर्वाधिक है। बावजूद इसके निगम इस समस्या को दूर नहीं कर पा रहा है। वह इसलिए क्योंकि पूरी व्यवस्था ठेके पर है।
पड़ताल में सामने आया कि तीन साल पहले तत्कालीन सरकार ने ईएसएल कंपनी को शहर के 55 हजार खंभों में लगे बल्ब को बदलकर उनकी जगह एलईडी लाइट लगाने का वर्कऑर्डर दिया। कंपनी ने ऐसा काम किया की पूरा प्रोजेक्ट ही तीन सालों से सवालों के घेरे में है। मेंटेनेंस का कोई काम नहीं हो रहा है।
शनिवार को बिजली विभाग के अध्यक्ष जसबीर सिंह ढिल्लन ने अफसरों से इस पर चर्चा की। अफसरों का कहना था- ‘सर, नोटिस दे दिया है।’ बता दें कि कंपनी को इन तीन सालों में दो दर्जन से अधिक नोटिस जारी हो चुके हैं, लेकिन व्यवस्था जस की तस है। यह प्रोजेक्ट 46 करोड़ रुपये का है, निगम ने भुगतान पर रोक लगा दी है।
पूरा प्रोजेक्ट ही सवालों के घेरे में है
शुरुआत से ही हो रहा है प्रोजेक्ट का विरोध- बल्ब की जगह एलईडी लाइट का प्रोजेक्ट भाजपा सरकार के कार्यकाल में आया था। मंत्रालय से टेंडर हुआ। वहीं से शहर के बल्ब बदलने का ऑर्डर जारी हुआ था। सामान्य सभा में इस प्रोजेक्ट का विरोध हुआ था। प्रस्ताव गिर गया था।
मगर तीन एमआइसी सदस्य बिजली विभाग के अध्यक्ष जसबीर ढिल्लन, सतनाम सिंह पनाग, श्रीकुमार मेनन की तीन सदस्यीय कमेटी बनाई गई। कमेटी ने भी लिखा कि बाहरी कंपनी को ठेका देना उचित नहीं। बावजूद इसके वर्कऑर्डर जारी कर दिया गया।
सिर्फ 18 वॉट की एलईडी लगाई गई
कंपनी ने जब एलईडी लाइट लगानी शुरू की तो सिर्फ 18 वॉट के बल्ब लगाए गए। इनकी रोशनी कम रही। विरोध हुआ। इसके बाद 35, 70 और 110 वॉट की एलईडी लगाने का फैसला लिया गया। तब जाकर कहीं सड़कों तक पर्याप्त रोशनी पहुंची।
कंपनी के पास कर्मचारी ही नहीं
निगम अफसरों का कहना है कि कंपनी के पास कर्मचारी ही पर्याप्त नहीं है। जो कर्मचारी हैं, उन्हें शहर के बारे में जानकारी ही नहीं है। पूरे शहर के लिए सिर्फ दो सुपरवाइजर हैं।
55 हजार खंभे, सभी के बदले बल्ब, लेकिन एलइडी फ्यूज- शहर के 55 हजार खंभों के बल्ब बदलकर उनकी जगह पर एलईडी लाइट लगाई जा चुकी है। कंपनी ने रो-धोकर काम पूरा किया। मगर अगले पांच साल के मेंटेनेंस का जिम्मा भी कंपनी का ही है, जो इसने पेटी कांट्रेक्टर को दे रखा है। इनके पास न तो कर्मचारी हैं, न ही साधन-संसाधन। यही कारण है कि मेंटेनेंस नहीं हो पा रहा है।
मुझे भी ढेरों शिकायतें मिल रही हैं। इसे लेकर मैं अफसरों से पूछा तो बोले नोटिस दिया है। अरे भाई नोटिस से कुछ नहीं होने वाला, आप पहले भी दर्जनों नोटिस दे चुके हैं। कार्रवाई करो। कंपनी काम नहीं कर रही है तो ब्लैक लिस्टेड कर दो। यह पूर्व की सरकार का थोपा गया प्रोजेक्ट था।-जसबीर सिंह ढिल्लन, एमआइसी सदस्य एवं अध्यक्ष बिजली विभाग, नगर निगम
स्ट्रीट लाइट्स बंद होने के बारे में संबंधित अधिकारियों से बात करता हूं। कंपनी क्यों नहीं काम कर रही है, पूछा जाएगा। बहुत जल्द इस समस्या का निराकरण होगा।- पुलक भट्टाचार्य, अपर आयुक्त, नगर निगम
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