कोरबा 23 अक्टूबर: नगर पालिक निगम कोरबा कोई कार्य कराये और उसकी शहर में चर्चा न हो ऐसा हो नहीं सकता है। नगर निगम का दस करोड़ी अशोक वाटिका इन दिनों फिर सुर्खियों में है। कारण जिर्णोद्धार से ज्यादा का भुगतान… हालाकि नगर पालिक निगम के अधिकारियों के मेजरमेंट बुक के मुताबिक काम तय मूल्य से कम में ही कराया गया है लेकिन यह बात महापौर राजकिशोर प्रसाद की जाति को चुनौती देने वाली पार्षद ऋतु चैरसिया को हजम नहीं हो रही है। लिहाजा ऋतु ने मामले में जिला कलेक्टर को शिकायत कर पूरे मामले की जांच की मांग की है। हालाकि कई मौकों पर जानकारों ने अशोक वाटिका पर किए गए खर्च में भ्रष्ट्राचार होने की बात कही है। हम आपको अशोक वाटिका के जिर्णोद्धार और उस कार्य को करने वाले ठेकेदार के संबंध में कुछ फैक्ट्स बताते है।
दरअसल अशोक वाटिका के जिर्णोद्धार की घोषणा पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने डाॅ. भीमराव ओपन आॅडिटोरियम में 12 अक्टूबर 2019 को एक कार्यक्रम के दौरान तब के राजस्व मंत्री और नगर विधायक जयसिंह अग्रवाल की मांग पर 10 करोड़ रूपए स्वीकृत करने की घोषणा की थी। हालांकि यह दिगर बात है कि एक अवैध वसूली के कथित आॅडियों से आहत तात्कालिन मुख्यमंत्री ने घोषणा करते वक्त इस कार्य का श्रेय सांसद ज्योत्सना महंत को देते कहा था कि
‘‘भाभी ज्योत्सना मंहत की मांग पर मैं अशोक वाटिका के कायाकल्प के लिए 10 करोड़ देने की घोषणा करता हूं।‘‘
घोषणा उपरांत तब की कलेक्टर ने सीएम घोषणा की फाईल राज्य भेजवाई लेकिन कोई वित्तीय स्वीकृति नहीं मिल सकी। बात को करीब डेढ़ वर्ष बीत गए लेकिन तात्कालिन राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने इस कार्य को कराने की जैसे जिद कर रखी थी लिहाजा इसके बाद आई कलेक्टर रानू साहू ने 10 अगस्त 2021 को डीएमएफ फंड से 10 करोड़ 72 लाख 85 हजार 109 रूपए की प्रशासकीय स्वीकृति जारी कर नगर पालिक निगम कोरबा को कार्य एजंेसी नियुक्त कर दिया। आप सोच रहे होंगे कि रानू साहू जो कथित तौर पर जयसिंह अग्रवाल के दुश्मनों के लिस्ट में शामिल है उसने ऐसा कैसे किया तो रानू वर्षो से कोरबा में कलेक्टर बनना चाहती थी कहते है कि उसकी पोस्टिंग में स्थानीय विधायक और तात्कालीन राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने यह कहते पेंच फंसा दिया था कि कोरबा में अब किसी महिला को कलेक्टर न भेजा जाए मुख्यमंत्री जिसे चाहे कोरबा भेज दें लेकिन महिला अधिकारी न भेजा जाए पोस्टिंग से पहले रानू ने तात्कालीन मंत्री से भेंट कि और यह आश्रवस्त किया कि उनका कोई कार्य नहीं रूकेगा। शायद यही वजह है कि इस कार्य को कर दिया गया। एक और महत्वपूर्ण बात जो इस टेंडर से जुड़ी है वो यह कि इस प्रशासकीय स्वीकृति की राशि बाद में संसोधित करते हुुए 12 करोड़ 2 लाख 73 हजार कर दी गई। बकौल रानू साहू इसे प्रदेश का सबसे सुंदर उद्यान के रूप में तब्दील करना चाहती थी हालाकि वह हो नहीं सका।
खेल यहीं शुरू हुआ नगर पालिक निगम ने जैसे ही टेंडर फ्लोट किया यह कार्य पूर्व निर्धारित ठेकेदार अभिषेक गोयल को आबंटित कर दिया गया। नगर निगम के काबिल इंजीनियरों ने इस वाटिका के कायाकल्प की योजना कुछ इस कदर बनाई कि यहां अधिक से अधिक इलेक्ट्रीफिकेशन का कार्य हो सके और सिविल कार्य कम से कम करना पड़े। क्योंकि तब पीडब्लूडी सिविल एसओआर 2015 लागू था जबकि विद्युत एवं यांत्रिकी विभाग का 2020 का एसओआर आ गया था। एसओआर में उल्लेखित दरों के मुताबिक ही मेजरमेंट किया जाता है और बिल इंजीनियर उसी मुताबिक ही करते है। दूसरी खास बात यह है कि इलेक्ट्रीक कार्य के एसओआर बिल्कुल सीएसआईडीसी के जैसे ही है जिसमें 2 रूपए के सामान की दर 10 रूपए होती है। यही वजह है सिर्फ लाइट और झूलों को छोड़ आपको बहुत ऐसा कुछ दिखेगा नहीं जिसकों ठेकेदार ने साढ़े 9 करोड़ से अधिक का भुगतान प्राप्त कर लगाया है। अपनी रफ्तार के काफी धीमी गति से कार्य करते हुए इंजीनियरों ने अपने काबिलियत के दम पर इस कार्य को करीब डेढ़ वर्षो में पूरा कराया है। बाद में संजीव झा के कलेक्टर रहते इस कार्य के अंतर की राशि 5 करोड़ 73 लाख 4 हजार 3 सौ 57 रूपए का धनादेश नगर पालिक निगम को दिया गया है। इससे पहले 3 करोड़ 78 लाख 55 हजार 105 रूपए की राशि अग्रिम दी जा चुकी थी। संजीव झा के समय भी इस अशोक वाटिका के कार्यो की जांच की मांग होती रही लेकिन जांच किसी कारण नहीं हो सकी।
सीएसईबी चैक से दर्री पुल से पहले मेजर ध्यानचंद चैक के कार्य में भी आरोप
अभिषेक गोयल ने इससे पहले सीएसईबी चैक से दर्री डैम फोरलेन सड़क का निर्माण किया था। तीन साल में महज 4 किलोमीटर की सड़क को पूरा किया गया था। इस सड़क की लागत जान आप हैरान रह जायेंगे इस सड़क की निर्माण लागत नेशनल हाइवे की सड़क की लागत जो प्रति किलोमीटर निर्धारित है उससे अधिक आंकी गई है। यह सड़क करीब 48 करोड़ 68 लाख 92 हजार में तैयार कराई गई है। जिसमें इस सड़क निर्माण हेतु पर्यावरण अधोसंरचना मद से 20 करोड़ की ही स्वीकृति मिली थी लेकिन बाद में डीएमएफ से पहले इसके लिए 25 करोड़ 66 लाख 91 हजार रूपए दिए गए और बाद में कलेक्टर रानू साहू ने इसमें 3 करोड़ 2 लाख 1 हजार अतिरिक्त दिए है। आरोप है कि इस सड़क को लाॅक डाउन के समय तैयार किया गया जिसमें चोरी के बालू का उपयोग गेरवा घाट से निकाल किया गया वहीं बहुत सी गिट्टी दिलीप बिल्डकाॅन के परला साइट से बिना पैसे दिए लाई गई थी। वहीं बिना राॅयल्टी और माइनिंग की अनुमति के ही मिट्टी का उपयोग किया गया है। हालाकि यह काम गुजरात की बैकबोन कंपनी को मिला था लेकिन दबाव बनाकर अभिषेक गोयल ले लिया।
नमस्कार
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