August 3, 2025 |

NEWS FLASH

Latest News
शर्म करो एमएस साहब ! सरकारी नौकरी की मलाई खा रहे, लेकिन बिलासपुर में चला रहे निजी क्लिनिक – कब बंद होगा ये दोहरा खेल ?1200 नशीले इंजेक्शन के साथ युवक गिरफ्तारधमतरी में गौ-तस्करी करते सात आरोपी गिरफ्तार2 लाख के ईनामी नक्सली सहित 3 नक्सली गिरफ्तारमंत्री राजवाड़े ने शबरी एंपोरियम, और गारमेंट फैक्ट्री का किया अवलोकन2 से 15 अगस्त तक तीन चरणों में हो रहा हर घर तिरंगा कार्यक्रम का आयोजनफर्जी IPS ने रिपोर्टर को किया फोन, ठगी की कोशिशउपभोक्ताओं को मिलेगी हर 30 मिनट की बिजली खपत की जानकारीअब गांजा पीने वाले भी जाएंगे जेल, रायपुर पुलिस ने शुरू की कार्रवाईधारासिव के पनखत्ती तालाब में मिला अज्ञात भ्रूण, इलाके में सनसनी
छत्तीसगढ़

शर्म करो एमएस साहब ! सरकारी नौकरी की मलाई खा रहे, लेकिन बिलासपुर में चला रहे निजी क्लिनिक – कब बंद होगा ये दोहरा खेल ?

Gram Yatra Chhattisgarh
Listen to this article

कोरबा। स्वर्गीय बिसाहू दास महंत स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय संबद्ध चिकित्सालय (अधिग्रहित जिला अस्पताल) के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. गोपाल कंवर पर लगे आरोपों की फेहरिस्त दिन-ब-दिन लंबी होती जा रही है। सरकारी सेवा में रहते हुए जिस ईमानदारी, निष्ठा और प्रतिबद्धता की अपेक्षा की जाती है, डॉ. कंवर उस कसौटी पर बार-बार नाकाम साबित हो रहे हैं। इस बार मामला न केवल सेवा शर्तों के उल्लंघन का है, बल्कि नैतिकता की सारी हदें पार कर देने वाला है। डॉक्टर साहब, जो कि सरकारी अस्पताल में प्रशासनिक पद पर पदस्थ हैं, सरकार से मोटा एनपीए (नॉन प्रैक्टिशनल अलाउंस) ले रहे हैं – लेकिन मजे की बात यह है कि साहब निजी प्रैक्टिस भी धड़ल्ले से कर रहे हैं, वो भी किसी गुपचुप तरीके से नहीं, बल्कि खुलेआम, रोशनी में जगमगाते बोर्ड के साथ।

बिलासपुर के बैना चौक पर स्थित “चंद्राकर हेल्थ केयर (शुगर क्लिनिक)” में डॉ. गोपाल कंवर की मौजूदगी किसी रहस्य की तरह नहीं, बल्कि खुले आम पब्लिसिटी के साथ होती है। क्लिनिक के बाहर लगे डिजिटल बोर्ड में उनका नाम बड़े-बड़े अक्षरों में दर्ज है – “डॉ. गोपाल कंवर (एमडी, जनरल मेडिसिन)”, ताकि कोई भ्रम की गुंजाइश न रहे। यही नहीं, बिजनेस लिस्टिंग वेबसाइट ‘JustDial’ पर भी यह जानकारी साफ दर्ज है कि डॉ. कंवर हर शनिवार को सुबह 10 बजे से दोपहर 2 बजे तक और शाम 6 से 9 बजे तक इस क्लिनिक में अपनी सेवाएं देते हैं। गूगल सर्च करने पर उनके क्लिनिक का नाम “गोपाल मेडिसिन क्लिनिक” भी सामने आ जाता है।

अब सवाल ये है कि जब सरकार एनपीए के नाम पर लाखों की राशि इसीलिए देती है ताकि प्रशासनिक सेवा में नियुक्त सरकारी डॉक्टर निजी प्रैक्टिस न करें, तब डॉ. गोपाल कंवर जैसे अधिकारी खुलेआम इसका उल्लंघन कर कैसे बच निकलते हैं ? क्या संचालक स्वास्थ्य शिक्षा और स्वास्थ्य महकमा इस बात से वाकिफ नहीं है या फिर सब कुछ ‘साठ-गांठ’ के तहत दबाया जा रहा है ?

डॉ. गोपाल कंवर का मेडिकल सफर भी सामने है – उन्होंने 1999 में गांधी मेडिकल कॉलेज, भोपाल से एमबीबीएस किया और वर्ष 2008 में छत्तीसगढ़ मेडिकल काउंसिल में अपना पंजीयन क्रमांक 1714 के तहत करवाया। लेकिन सवाल यह नहीं कि उन्होंने पढ़ाई कब की, असली मुद्दा यह है कि क्या वे सरकारी सेवा के नियमों का पालन कर रहे हैं ? जवाब है – नहीं।

यही नहीं, कोरबा स्थित जिला अस्पताल में पहले से ही उनके खिलाफ भ्रष्टाचार की ढेरों शिकायतें हैं – चाहे वह मेडिसिन सप्लाई में गड़बड़ी हो, मरीजों को अनावश्यक रेफर करने का मामला हो, फर्जीवाड़े से कागजी उपस्थिति दर्शाकर भुगतान लेना हो या फिर संविदा स्वास्थ्यकर्मियों से वसूली का आरोप। लेकिन इन सबसे अलग ये नया मामला सीधा-सीधा सरकारी सेवा नियमों की धज्जियां उड़ाने का है।

अगर सरकार ने किसी डॉक्टर को एनपीए दिया है, तो वह इस शर्त पर होता है कि वह व्यक्ति सरकारी सेवा के अलावा किसी भी प्रकार की प्राइवेट प्रैक्टिस नहीं करेगा। लेकिन जब चंद्राकर हेल्थ केयर जैसे निजी क्लिनिक में सप्ताह में नियमित रूप से समय देकर सेवाएं दी जा रही हों, तो यह स्पष्ट रूप से सेवा शर्तों का उल्लंघन है – और सीधा भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है।

क्या जिला प्रशासन को इस बात की जानकारी नहीं है ? क्या स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारी अंधे-बहरे हो चुके हैं या फिर ‘मक्खनबाजी’ के चलते सब कुछ जानबूझकर नजरअंदाज किया जा रहा है ? ये वही सवाल हैं जो आम जनता के मन में उठ रहे हैं।

अब वक्त आ गया है कि स्वास्थ्य मंत्री, कलेक्टर और मेडिकल एजुकेशन विभाग इस मामले में कठोर निर्णय लें। डॉ. गोपाल कंवर पर केवल विभागीय जांच नहीं, बल्कि आर्थिक गबन और सेवा उल्लंघन के तहत भी कार्यवाही होनी चाहिए। वरना यह मामला अन्य डॉक्टरों को भी यही संदेश देगा कि ‘सरकारी मलाई खाओ, और प्राइवेट दुकान भी मजे से चलाओ।’

अंत में यही कहा जा सकता है – डॉक्टर होना गर्व की बात है, लेकिन जब वही डॉक्टर सरकारी पैसे से अपनी निजी दुकान चलाए, तो वह पेशे के नाम पर धब्बा बन जाता है।

शर्म करो एमएस साहब – कोरबा की जनता सब देख रही है!

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also
Close