छत्तीसगढ़

बिलासपुर जिले की हमारी दीदियां ने भेदा लक्ष्य, बन गईं 27,889 महिलाएं लखपति दीदी

बिलासपुर। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत विभाग को 25 हजार 427 महिलाओं को लखपति दीदी बनाने का लक्ष्य मिला था, लेकिन 27 हजार 889 महिलाएं लखपति दीदी बनने की कगार पर हैं। अधिकारियों की माने तो महिलाओं ने स्व-सहायता समूहों से जुड़कर शासन की योजनाओं का लाभ उठाया और खुद को आत्मनिर्भर बनाया हैं। इन समूहों से जुड़ी महिलाओं ने खुद को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया और अब किसी भी मंच पर निर्भीकता से अपनी बातें रखने में सक्षम हो रही हैं।

 10 हजार 074 महिलाओं की आय एक लाख के पार

राष्ट्रीय आजीविका मिशन विभाग को सौ दिनों में 25 हजार 427 महिलाओं को लखपति दीदी बनाना था। विभाग ने स्व-सहायता समूह की महिलाओं का आर्थिक विश्लेषण किया और पाया कि शासकीय योजनाओं का लाभ लेकर अपने व्यवसाय बढ़ाने वाली 27 हजार 889 महिलाएं लखपति बनने के करीब हैं। जिले में 10,074 महिलाएं ऐसी हैं, जिनकी वार्षिक आय एक लाख से अधिक हो चुकी है।

किस ब्लाक में कितनी लखपति दीदी

मस्तूरी: लक्ष्य 14,467, स्वीकृति 15,644
बिल्हा: लक्ष्य 3,200, स्वीकृति 3,407
कोटा: लक्ष्य 2,480, स्वीकृति 2,525
तखतपुर: लक्ष्य 5,280, स्वीकृति 5,518

कैसे हासिल किया लक्ष्य

राष्ट्रीय आजीविका मिशन के अधिकारियों ने स्व-सहायता समूह की ऐसी महिलाओं को चिन्हित किया जिनकी वार्षिक आय 50 से 70 हजार रुपये के बीच थी। विभाग ने इन महिलाओं को एक लाख से छह लाख तक का लोन दिलवाया। लोन की ब्याज दर कम होने से महिलाओं पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ा और उन्होंने अपने काम को बढ़ाकर अपनी आय एक लाख से अधिक कर ली।
दीदियों की कहानी उन्हीं की जुबानी
-जनपद पंचायत बिल्हा क्लस्टर ज्ञान सुधा संकुल संगठन सेमरताल की ग्राम पंचायत सेंदरी की प्रियंका यादव गृहणी हैं। आर्थिक तंगी से जूझ रही प्रियंका ने गांव में चलने वाले समूह मां दुर्गा स्व सहायता समूह में जुडीं। शासन की योजना का लाभ लेते हुए भैंस पालन व डेयरी का काम शुरू किया और अब वह गांव की अन्य महिलाओं को रोजगार दे रही हैं।
-जनपद पंचायत बिल्हा क्लस्टर ज्ञान सुधा संकुल संगठन सेमरताल ग्राम पंचायत सेंदरी निवासी किरण कुर्रे शांति स्व सहायता समूह से जुड़कर घर की बाड़ी को अपनी आर्थिक सुधार के लिए इस्तेमाल शुरू किया। किरण बताती हैं कि उन्होंने बाड़ी के एक हिस्से में सब्जी उगाना शुरू किया। धीरे-धीरे पैदावार बढ़ता गया और उनकी बाड़ी अब उनकी आय का स्रोत बन गई है।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button