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कोरबा में फिर से एक बड़े पैमाने पर कोयला की अफरा तफरी का खेल.. इस बार खिलाडी कांग्रेस सरकार के चहेते तिवारी नहीं फिर वो कौन जाने इस खबर से!

 

कोरबा स्थित बंद बालको कैप्टिव पावर प्लांट (BCPP) में फिर से कोयले का काला कारोबार शुरू हो गया है। यह प्लांट दिसंबर 2015 से बंद है, तो फिर बंद पावर प्लांट में लाखों टन कोयला का क्या काम? यह सवाल कोरबा के नागरिकों और प्रशासन के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है। इस कोयले को बीसीपीपी में डंप कर अब बालको के लिए सप्लाई किया जा रहा है। आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि बालको सीधे कोयला क्यों नहीं लिया इससे उसको डबल भाड़ा का खर्च करना पड़ रहा होगा। बस यहीं से खेला शुरू होता है दरअसल बीसीपीपी एक कैप्टिप विधुत प्लांट था, इसका उद्देश्य केवल बिजली उत्पादित कर अपने कॉलोनी और एल्युमिना संयंत्र को बिजली देना था। क्योंकि इस संयंत्र का कोई व्यावसायिक उद्देश्य नहीं था इस हेतु यहां भेजा जाने वाला कोयला रियायती दर पर भेजा जाता है। लेकिन मौजूदा स्थिति में बालको ने एल्युमिना संयंत्र परिसर में ही व्यावसायिक उपयोग हेतु विधुत संयंत्र की स्थापना कर रखी है ऐसे में यहां भेजे जाने वाले कोयले के दाम काफी अधिक है। यही वजह है कि बीसीपीपी संयंत्र के नाम से कोयले को मंगाया गया अब उपयोग नहीं होने का हवाला देते हुए कोयले को बालको भेजा जा रहा है सुत्र की मानें तो इस अवैध कृत्य को अंजाम देने के एवज में राजधानी के भाजपा नेता को उपकृत करने भी ख़बर है। के.सी.पी.एल नामक कंपनी को कोल ट्रांसपोर्टिंग का ठेका काफी महंगे दर पर दिया गया है यही वजह है कि विरोध के स्वर बुलंद नहीं हो रहे है। लेकिन इस पूरे खेल से केंद्र व राज्य को राजस्व का काफी बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है। बावजूद जिम्मेदार चुप बैठे हुए है। लिंकेज के नाम पर अवैध कमाई का जरिया बना रहे लोग बालको की कारगुजारियों को सीधे तौर पर अनदेखा कर रहे है।

क्या अवैध कोल डिपो बना दिया गया है बीसीपीपी को ?

इस थ्योरी से अलग जैसा बालको का स्वाभाव है कि वो कहे कोयला उसी का था और अब वो स्टॉक से उठा रहा है तो भी नियमानुसार कोल खदान से 25 किलोमीटर के एयर रेडियस में कोई कोल स्टॉक नहीं बनाया जा सकता है। मतलब चांपा और बिलासपुर से पहले कोई कोल डिपो वैध नहीं है फिर ये भंडारण अवैध हुआ तो इसको जप्त करने की कार्रवाई जिम्मेदार विभाग क्यों नहीं कर रहा है।

 क्या फिर जेल से चल रहा है कोल माफियाओं का व्यापार?

एसएस नाग, रानू साहू, और सूर्यकांत तिवारी जैसे ही कहीं इस बार कोई बड़ा घोटाला तो नहीं प्लान किया गया है। इनका नाम पहले भी कोयला माफिया के रूप में लिया जा चुका है। वहीं कहा जा रहा है कि बस खिलाड़ी बदल गया है बाकी खेल पुराना है।

क्या माइनिंग अधिकारी को नहीं है ED का डर ?

पूर्व में भी कोरबा में पदस्थ माइनिंग अधिकारी को भी ED ने कोल स्कैम में गिरफ्तार किया है वो आज भी जेल में है उसके बावजूद वर्तमान माइनिंग अधिकारी के देख रेख में BCPP में चल रहा है लाखो टन कोयला की अफ़रातफ़री

### राज्य शासन और केंद्र शासन को अरबों रुपये का चुना
इस अवैध कारोबार के चलते राज्य और केंद्र शासन को भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है। करोड़ों रुपये का कोयला अवैध रूप से बाजार में बेचा जा रहा है, जिससे सरकारी खजाने को अरबों रुपये का चुना लग रहा है।

ED के नजर से कैसे बच गया बालको ?

इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) की नजर से बालको कैसे बच गया। इतनी बड़ी मात्रा में कोयला का अवैध कारोबार हो रहा है और अब तक किसी बड़े कदम की कोई खबर नहीं है। यह संदेह उत्पन्न करता है कि क्या कहीं न कहीं किसी उच्च स्तर पर भी इस मामले में संलिप्तता है?

भाजपा सरकार के नाक के नीचे चल रहा अवैध कोयला का खेल जिम्मेदार अधिकारी को करनी चाहिए जांच कर कार्रवाई

इस अवैध कारोबार के चलते भाजपा सरकार की भी आलोचना हो रही है। उनके नाक के नीचे यह अवैध कोयला का खेल चल रहा है और अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। इससे उनकी साख पर भी प्रश्नचिह्न लग गया है।
सुशासन की सरकार में भी अवैध कोयला भंडारण एव परिवहन से आम जनता जानने को है परेशान आखिर खेला है क्या
जांच पड़ताल आवश्यक
और पुष्टि होने पर कार्यवाही की दरकार।

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