September 1, 2025 |

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छत्तीसगढ़

ढाई साल से बिना नेतृत्व के चल रहा सूचना आयोग, 40 हजार से ज्यादा मामले लंबित.

Gram Yatra Chhattisgarh
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रायपुर (ग्रामयात्रा छत्तीसगढ़ )। छत्तीसगढ़ का सूचना आयोग पूरी तरह से बिना नेतृत्व के, चरमराई हुई स्थिति में पहुंच चुका है। ढाई साल से मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) का पद खाली है, और वर्तमान में केवल एक सूचना आयुक्त से ही आयोग जैसे-तैसे संचालित हो रहा है। 40 हजार से ज्यादा मामले लंबित हैं, और सुनवाई की रफ्तार लगभग ठप हो चुकी है।

मुख्य सूचना आयुक्त की कुर्सी खाली, सिस्टम अधर में

नवंबर 2022 में तत्कालीन मुख्य सूचना आयुक्त एम.के. राउत के रिटायरमेंट के बाद से अब तक इस महत्वपूर्ण पद पर कोई नियुक्ति नहीं हुई। दिसंबर 2024 में सरकार बदलने के बाद दो सूचना आयुक्त—रिटायर्ड आईएएस एन.के. शुक्ला और आलोक चंद्रवंशी—की नियुक्ति की गई। लेकिन उम्र संबंधी कारणों से शुक्ला जल्द रिटायर हो गए, और अब आलोक चंद्रवंशी अकेले सूचना आयोग की पूरी ज़िम्मेदारी संभाल रहे हैं।

वनमैन आर्मी की स्थिति
आयोग में तीन सूचना आयुक्तों के पद हैं और चार कोर्ट बनाये गए हैं। लेकिन इस समय सिर्फ एक ही कोर्ट संचालित हो पा रहा है। यदि आलोक चंद्रवंशी अवकाश पर जाते हैं या अस्वस्थ हो जाते हैं, तो पूरी सुनवाई प्रक्रिया ठप हो जाती है।

पेंडेंसी का अंबार
आयोग में लंबित मामलों की संख्या 40,000 पार कर चुकी है। यह आंकड़ा उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्यों से भी ज्यादा है। विशेषज्ञों के अनुसार, इन मामलों को निपटाने में कम से कम 10 सूचना आयुक्तों को भी सालभर लग जाएगा।

नियुक्ति प्रक्रिया पर कोर्ट की रोक
सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए इंटरव्यू हो चुका है और पैनल भी तैयार है, लेकिन चयन प्रक्रिया को लेकर हाई कोर्ट में याचिका लंबित है। 25 साल के अनुभव की शर्त को लेकर विवाद के चलते बिलासपुर हाई कोर्ट में सुनवाई रुकी हुई है। सामान्य प्रशासन विभाग दो महीने से सुनवाई की तारीख का इंतजार कर रहा है।

जनसूचना अधिकारियों की मनमानी
आयोग की निष्क्रियता का सीधा असर जनसूचना अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर पड़ा है। जुर्माने और जवाबदेही के डर के बिना अधिकारी मनमानी कर रहे हैं। कई विभागों में सूचना देने से इनकार करने या टालने की प्रवृत्ति बढ़ी है, क्योंकि आयोग से उन्हें किसी कार्रवाई का डर नहीं है।

उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा आयोग
सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए बना था, लेकिन छत्तीसगढ़ में यह कानून दंतहीन साबित हो रहा है। राज्य में पीएससी 2003 स्कैंडल जैसे गिने-चुने मामलों को छोड़ दें, तो शायद ही कोई बड़ा खुलासा RTI के जरिए हुआ हो।

छत्तीसगढ़ सूचना आयोग इस समय नेतृत्वहीन, संसाधनविहीन और निष्क्रिय स्थिति में है। सरकार को चाहिए कि वह इस संवैधानिक संस्था को पुनर्जीवित करने के लिए त्वरित नियुक्ति और कानूनी रुकावटों को दूर करने की दिशा में प्राथमिकता से काम करे।

 

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