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कोरबा के मेडिकल कॉलेज अस्पताल में महिला और उसके जुड़वा बच्चों की मौत ने अस्पताल प्रबंधन की घोर लापरवाही को उजागर कर दिया है। आरोपों के मुताबिक, यहां डॉक्टर समय पर नहीं आते, नर्सिंग स्टाफ पर कोई नियंत्रण नहीं है, और एमएस गोपाल कंवर को ऑफिस से बाहर निकलने की फुर्सत नहीं है। मरीज और उनके परिजन खुद को असहाय महसूस करते हैं, जबकि अस्पताल प्रबंधन कानों में तेल डाले बैठा है।
महिला और नवजात की मौत: समय पर इलाज होता, तो बच सकती थी जान
दो दिन पहले करतला के जोगीपाली गांव की रहने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ता क्रांति राठिया को गंभीर स्थिति में जिला अस्पताल सह मेडिकल कॉलेज अस्पताल लाया गया। प्रभारी सीएमएचओ डॉ. सी.के. सिंह के मुताबिक, महिला का ऑक्सीजन स्तर सही था और अस्पताल में भी वह जीवित पहुंची थी। इमरजेंसी वार्ड में उसे अटेंड भी करवाया गया।
जुड़वा बच्चों के समय से पहले जन्म और प्लेसेंटा (फूल) न निकलने की वजह से उसकी हालत बिगड़ रही थी। इसके कारण उसे करतला सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से संजीवनी एक्सप्रेस के माध्यम से जिला अस्पताल भेजा गया था।
डॉ. सी के. सिंह, प्रभारी सीएमएचओ
संजीवनी एक्सप्रेस के डीएम प्रिंस कुमार पांडेय के मुताबिक, महिला को इमरजेंसी वार्ड में दाखिल करते ही उसकी गंभीर स्थिति की जानकारी दी गई। महिला को नर्सों ने देखा भी, लेकिन इधर-उधर करते हुए 20 मिनट लग गए यह मानने में कि महिला को त्वरित उपचार की आवश्यकता है।
मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंचने पर भी महिला को समय पर इलाज नहीं मिला। इस वजह से उसकी मौत हो गई। जबकि संजीवनी एक्सप्रेस में डॉक्टरों के कहे अनुसार जुड़वा बच्चों को ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया था, लेकिन उनकी भी जान चली गई।
एमएस गोपाल कंवर: जिम्मेदारी से भागने वाला प्रबंधन
इस मामले में हर बार की तरह ही एमएस डॉ. गोपाल कंवर का गैर जिम्मेदाराना बयान सामने आया है। उनके अनुसार, महिला को “ब्रॉड डेड” लाया गया था।
डॉक्टर साहब, अगर महिला मृत थी, तो फिर उसका भूत क्या अस्पताल में चल-फिर रहा था? क्यों आप अपने लापरवाह सिस्टम को सुधारने के बजाय उसे छिपाने में लगे रहते हैं?
क्यों नहीं ऐसे जिम्मेदारों की ड्यूटी इमरजेंसी वार्ड में लगाई जाती है, जो चिकित्सा पेशे को केवल नौकरी नहीं, बल्कि सेवा समझें! अगर यह कहा जाए कि महिला की मौत स्वाभाविक नहीं, बल्कि उसका मेडिकल मर्डर किया गया है, तो क्या यह गलत होगा?
- अगर प्लेसेंटा तुरंत निकाल दिया जाता और ब्लड चढ़ा दिया जाता, तो क्या महिला की जान नहीं बच सकती थी?
- बच्चों को तुरंत पीडियाट्रिक्स को दिखाकर SNCU में दाखिल क्यों नहीं कराया गया?
लेकिन गोपाल जी, आप क्या करेंगे? आपको तो सिर्फ मीटिंग लेनी होती है और अपने चेंबर में बैठे रहना। अस्पताल में क्या हो रहा है, इससे आपको कोई फर्क नहीं पड़ता।
डॉक्टर और स्टाफ पर कोई नियंत्रण नहीं
मेडिकल कॉलेज अस्पताल में 1 बजे के बाद ओपीडी में कोई डॉक्टर मिल जाए, तो यह चमत्कार होगा।
- सुबह 10 बजे से पहले डॉक्टरों के दर्शन नहीं होते।
- नियम तो 8 से 2 बजे तक ड्यूटी का है। फिर 6 घंटे की जगह 3 घंटे क्यों काम लिया जा रहा है? आपका इसमें कोई स्वार्थ छुपा है क्या ?
- नर्सिंग स्टाफ बिना हैंडओवर दिए ड्यूटी छोड़कर चली जाती है, और दूसरा स्टाफ एक घंटे बाद आता है।
- कैमरों की निगरानी के लिए मॉनिटरिंग सिस्टम आपके चेंबर में लगा है, लेकिन आप उस पर नजर डालने की फुर्सत भी नहीं लेते।
अस्पताल में बदहाल व्यवस्थाएं
- मरीज अस्पताल की दहलीज पर घंटों पड़े रहते हैं, लेकिन कोई सुध लेने नहीं आता।
- मरीज को स्ट्रेचर पर शिफ्ट करने का काम परिजन खुद करते हैं।
- ड्रिप/कैनुला निकालने के लिए गार्ड को मशक्कत करनी पड़ती है।
- गार्ड की मौजूदगी के बावजूद अनाधिकृत लोग वार्ड में घूमते रहते हैं।
- गंभीर मरीजों को रेफर करने का ट्रेंड बन गया है।
एमएस गोपाल कंवर को देना होगा जवाब
गोपाल कंवर जी, जिम्मेदारी का मतलब समझिए। अस्पताल में पक्षपात और लापरवाही का यह सिलसिला बंद नहीं हुआ, तो मौतों का यह आंकड़ा बढ़ता ही रहेगा। इस लापरवाही के छींटे आपके दामन पर भी पड़ेंगे।
अगर अब भी इस मामले में कार्रवाई नहीं हुई, तो यह साफ हो जाएगा कि मरीजों की जान इस सिस्टम के लिए कोई मायने नहीं रखती।