मेट्रन मैडम बड़े ठाट, इनके हाथ में मेडिकल कॉलेज की नर्सिंग सिस्टम का कंट्रोल, मर्जी पड़ी तो काम पर आती है, दूसरों की ड्यूटी भी अपनी पसंद से लगाती है, एलॉट है डॉक्टर क्वार्टर, सब्जी लेकर आते हैं स्टाफ पकाते हैं रसोई
कोरबा। न जाने किसके इशारे से, पर कोरबा के जिला अस्पताल की मेट्रन इतनी पावरफुल है कि मेडिकल कॉलेज का पूरा नर्सिंग डिपार्टमेंट इन्हीं के इशारों पर चलता है। इनके ठाट के किस्से सुनें, तो पता चलता है कि खुद ड्यूटी कब करनी और दूसरे नर्सिंग स्टाफ की कब कहां लगानी है, ये इन्हीं की मर्जी से होता है। मन पड़ता है तो काम पर आती हैं, नहीं तो स्टाफ ही सब्जी भाजी लेकर इन्हें एलॉट किए गए अफसरों वाले डॉक्टर क्वार्टर पहुंच जाता है और मरीजों की तीमारदारी छोड़ इनकी रसोई पकाता है। भ्रष्टाचार में गले तक लिप्त मेट्रन मैडम पैसे के लिए कुछ भी कर सकती हैं और इन्हें रोकने का पावर न तो सुपरिटेंडेंट के पास है और न ही डीन को। आखिर किसके इशारे पर इनका राज कायम है, यह भी बड़े राज की बात है। अगर आपको जानना हो तो ग्राम यात्रा न्यूज नेटवर्क पर बने रहें।
बड़े लम्बे इंतजार के बाद कोरबा जिले के भाग्य में आए मेडिकल कॉलेज की व्यवस्था में सेंध लगनी शुरू हो गई है। कभी लचर सुरक्षा इंतजाम, तो कभी दलालों की सक्रियता जैसी आउटर शिकायतों के बाद अब अंदरूनी विभाग में भी बदिंतजामी, मनमानी और भर्राशाही का शोर सुनाई दे रहा है। ताजा मामला मेडिकल कॉलेज के अधीन संचालित जिला चिकित्सालय के नर्सिंग विभाग का सामने आया है। बताया जा रहा है कि जिला अस्पताल के नर्सिंग डिपार्टमेंट का कंट्रोल किसी मेडिकल अफसर नहीं, बल्कि एक मेट्रन के हाथों में है। यहां तक कि जिला अस्पताल में मरीजों की तीमारदारी का यह पूरा डिपार्टमेंट ही इन मेट्रन साहिबा के भरोसे चल रहा है। मेट्रन अपने पसंदीदा लोगों को उनके पसंद की जगह पर ड्यूटी पर लगा दिया करती हैं और जब इन्हें आना होता है आटी हैं नहीं आना है तो भी उनकी बकायदा एटेंडेड लग ही जाती है। डिपार्टमेंट के तकनीकी जानकारों की मानें तो मेडिकल कॉलेज बनते ही जिला अस्पताल को मेडिकल कॉलेज के अधीन कर दिया गया। मेडिकल हॉस्पिटल समेत स्टाफ, अफसरों और के मेडिकल कॉलेज के लिए टीचर्स अप्वाइंट करने का प्रोटोकॉल भी मेडिकल कॉलेज से फॉलो होता है। इसके बाद मेट्रन का पद भी समाप्त हो जाना चाहिए था। फिर यहां मेट्रन को पदभार क्यों दे दिया गया है ये भी संदेह के दायरे में है, जिसकी जांच लाजमी हो जाता है। खबर है कि इनकी मर्जी हो तो काम पर चली आती हैं, न हो तो कई दिन गायब रहती हैं पर हाजिरी बराबर लगा दी जाती है। उधर दूसरों की, यानी मेडिकल कॉलेज सह जिला अस्पताल के इंटायर नर्सिंग स्टाफ की ड्यूटी का लेखा जोखा इनकी मर्जी और पसंद पर तय किया जाता है। यानी जो इनके कृपा पात्र हैं, उनकी बल्ले बल्ले और जिसने मैडम को नाराज किया, तो हो सकता है कि कभी उसकी नाइट शिफ्ट खत्म ही न हो।
बड़े बड़े अफसरों के बीच आखिर क्या है मेट्रन का राज, जल्द खुलेगा ठाट के राज से पर्दा
सूत्र बताते हैं मैट्रन मैडम के घर की सब्जी भाजी से लेकर तेल मसाले भी नया स्टाफ पूरा करते हैं। इनकी सेवा में कभी कभी तो घर की कुकिंग का काम भी यही स्टाफ संभाल कर मैडम को खुश करते हैं, जो बदस्तूर जारी है। पर उच्च अधिकारियों के कान में जूं तक नहीं रेगती। आखिर कारण क्या है यह जांच का विषय है। शंका जताई जा रही है कि मेडिकल कॉलेज में कोई बड़ा खेल खेला जा रहा है। तभी इस प्रकार की व्यवस्था उच्च अधिकारियों को दिखाई तक नही देती। या फिर वे कोई उच्च दबाव में ये सब देख रहे हैं। आखिर किसका आशीर्वाद प्राप्त है, जो इतने बड़े अधिकारियों के बीच मेट्रन मैडम पूरे नर्सिंग स्टाफ की बेताज बादशाह बनकर राज चला रही हैं। जल्द ही सभी के कारनामों का भांडा फोड़ किया जाएगा।
मेट्रन की मनमानी से जहां अपने हिस्से ही ड्यूटी और जिम्मेदारियों से वास्ता रखने वाले निष्ठावान कर्मी तनाव में हैं तो मेट्रन की सरपरस्ती में कामचोरी की सहूलियतों के आदि हो चुके चापलूस मौज काट रहे हैं। बताया जा रहा है कि जो काम करने वाले हैं उन्हें ही लगातार काम के बोझ में रगड़ा जा रहा जबकि संविदा में लगे कर्मियों से लेकर जिला अस्पताल के रसूखदार नर्सों की बड़ी मौज चल रही है। स्टाफ सेट अप पर गौर करें तो पदों की वरिष्ठता सूची के अनुसार सबसे नीचे स्टाफ नर्स, फिर नर्सिंग सिस्टर और इन सब पर सुप्रीटेंडेंट का कंट्रोल होना चाहिए पर यहां पद की शक्तियों और गरिमा के विपरीत उल्टी ही गंगा न जाने कब से बहाई जा रही है जिसे देखने वाला भी कोई नहीं।
कांग्रेसकाल खत्म पर गई नहीं कांग्रेसी माहौल की आदतों वाली बदहाली
नियमों की मानें तो वर्तमान में मेडिकल कॉलेज सह जिला अस्पताल में स्टाफ नर्स की ड्यूटी आदि के लिए सुप्रीटेंडेंट का पद होना चाहिए। पर शायद कांग्रेस सरकार का शासनकाल गुजर जाने के बाद भी मेडिकल कॉलेज की अव्यवस्थाओं का आलम दूर नहीं हो सका है और तब के दौर की नियम कायदों को ताक पर रखने की बुरी आदत अब भी बनी हुई है। नियमानुसार किसी जिला चिकित्सालय के मेडिकल कॉलेज में मर्ज हो जाने के साथ ही मेट्रन का पद समाप्त हो जाता है। सुप्रिटेंडेंट की पदस्थापना होती है और नर्सिंग सिस्टर के द्वारा यह सारी जिम्मेदारियां निभाई जाती हैं। यहां मेडिकल कॉलेज के अधीन होकर भी जिला अस्पताल की व्यवस्थाएं यहीं के स्टाफ यानी मेट्रन के भरोसे छोड़ दी गई हैं।
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