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इन्सानों की तरह बंदर भी पुकारते हैं एक-दूसरे का नाम

डॉल्फिन-हाथियों में भी होती है इस तरह की काबिलियत

नई दिल्ली। बंदर अपने साथियों को बुलाने के लिए खास आवाजों का इस्तेमाल करते हैं और हर बंदर के लिए यह आवाज भी अलग तरह की होती है। इसे फी-कॉल कहा जाता है। साइंस जर्नल में प्रकाशित इस्राइल के यरुशलम के हिब्रू विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अध्ययन में यह खुलासा हुआ है। इसमें शोधकर्ताओं ने पाया कि दक्षिण अमेरिका के मूल के मार्मोसेट्स बंदर एक-दूसरे को पहचानने और बातचीत करने के लिए विशिष्ट लहजे का इस्तेमाल करते हैं। शोधकर्ताओं ने मार्मोसेट्स के जोड़े के बीच प्राकृतिक बातचीत के साथ ही बंदरों और एक कंप्यूटर सिस्टम के बीच बातचीत को रिकॉर्ड किया। टीम ने पाया कि इन बंदरों ने विशिष्ट व्यक्तियों को पुकारने लिए अपनी फी-कॉल का इस्तेमाल किया।

मतलब जैसे इन्सानों में नाम होते हैं, वैसे ही हर बंदर के लिए एक अलग आवाज थी। शोधकर्ताओं ने देखा कि बंदरों ने उन आवाजों को भी सही तरीके से समझा और जवाब दिया जो उनके समूह में खास तौर से उनके लिए तय की गई थीं। शोधकर्ताओं ने कहा कि दूसरों का नाम लेना सामाजिक जानवरों में देखी जाने वाली एक बेहद उन्नत संज्ञानात्मक क्षमता है। हाल तक यह केवल मनुष्यों, डॉल्फिन और हाथियों में ही मौजूद थी। इससे पहले जून में नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि जंगली अफ्रीकी हाथी एक-दूसरे को नाम जैसी लगने वाली आवाज से पुकारते हैं। यह हर हाथी के अलग होती है।

मानव भाषा के विकास को समझने में मिलेगी मदद

शोधकर्ताओं के मुताबिक, मार्मोसेट्स की इस खूबी का पता चलने से मानव भाषा के विकास का पता लगाने में मदद मिल सकती है। हिब्रू विश्वविद्यालय के मुख्य शोधकर्ता डेविड ओमर ने कहा, मार्मोसेट्स छोटे एकल परिवार समूहों में रहते हैं और इन्सानों की तरह ही अपने बच्चों की देखभाल एक साथ करते हैं। ये समानताएं बताती हैं कि उन्हें हमारे शुरुआती भाषा-पूर्व पूर्वजों के समान विकासवादी सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इस वजह से उन्होंने हमारी तरह ही संचार विधियां विकसित की होंगी।

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