June 27, 2025 |

NEWS FLASH

Latest News
जहरीली गाय’ ने ली 5 बाघों की जान, जांच में हुआ खुलासा..अवैध रेत परिवहन पर कड़ी कार्रवाई, 2 हाइवा वाहन जप्तकृषि विभाग ने किया नि:शुल्क बीज वितरण, किसान उत्साहित, सोनहत क्षेत्र में मूँगफली और धान के बीजों का वितरणपांच मंदिरों में चोरी करने वाले गिरोह का भंडाफोड़, चार आरोपी गिरफ्तारबालको नगर में निकली जगन्नाथ यात्रारथयात्रा महोत्सव में शामिल हुए राज्यपाल डेकाकवि डॉ. सुरेंद्र दुबे का अंतिम संस्कार : मारवाड़ी शमशान घाट पहुंचे भाजपा महामंत्री पवन साय और मंत्रिमंडल के सदस्यग्रामीणों ने बाइक चोरों को सबक सिखाने किया ऐसा सुलूक, रस्सी से बांध कर दी तालिबानी सजा…बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान हेतु उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा के निर्देश पर टोल फ्री हेल्पलाइन नंबर जारीछत्तीसगढ़ श्रमजीवी पत्रकार संघ ने पद्मश्री पं. सुरेंद्र दुबे को दी श्रद्धांजलि
नेशनल

कश्मीरी मुसलमान नूर मोहम्मद डार, जो 11 सालों से कर रहे हैं मंदिर की देखरेख

Gram Yatra Chhattisgarh
Listen to this article

जम्मू और कश्मीर के अनंतनाग ज़िले के लागरीपुरा के रहने वाले एक स्थानीय मुसलमान नूर मोहम्मद डार पिछले 11 सालों से अपने गाँव के एक मंदिर की निगरानी कर रहे हैं.

नूर मोहम्मद ने 2011 में अपने गाँव से पलायन कर चुके कश्मीरी पंडितों को अपने गाँव आकर मंदिर में त्योहार मनाने का न्योता दिया था.

लागरीपुरा के मंदिर को खीर भवानी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. इस मंदिर से कुछ ही क़दमों की दूरी पर एक और छोटा सा मंदिर है. इन दोनों मंदिरों की निगरानी का काम नूर मोहम्मद ही करते हैं.

नूर मोहम्मद पेशे से कुक हैं और उनकी दो बेटियां हैं.

‘पंडितों से मिल उन्हें गाँव आने का न्योता दिया’
मोहम्मद बताते हैं कि जब उनके गाँव से पंडित पलायन कर गए तो बाद में कई बार वो अपने गाँव के उन पंडितों के पास जम्मू गए और उनसे वापस कश्मीर आने को कहा.

वो बताते हैं, “2011 तक, मैं कई बार अपने गाँव से पलायन कर चुके पंडितों के पास जम्मू गया. मैंने उन्हें वापस आने को कहा. हर बार वो गाँव के अपने मंदिर के बारे में पूछते थे. मैं उनसे कहता था कि हम उसकी देखरेख करते हैं. जब भी मैं अपने गाँव के पंडितों के पास जम्मू जाता, वो मेरी बहुत इज़्ज़त करते.”

नूर मोहम्मद बताते हैं, “गाँव आकर मंदिर में त्योहार मनाने के मेरे आग्रह पर पंडितों ने मुझसे कहा कि जब उनका मन बनेगा तब हम फ़ोन पर बताएंगे. कुछ समय के बाद उनका फ़ोन आया कि वो त्योहार मनाने इस बार अपने गाँव आएंगे. गाँव के पंडितों से यह सुनने के बाद मैंने मंदिर को सजाना शुरू किया.”

उन्होंने आगे बताया, ”कई दिनों तक मंदिर सजाने के बाद आख़िरकार 21 जून, 2011 को पंडित लोग गाँव पहुंचे. जब उन्होंने मंदिर को दुल्हन की तरह सजा हुआ पाया, तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. उन्होंने यहां खीर भवानी का त्योहार मनाया और कई दिनों तक हमारे पास ही मुसलमानों के घरों में ठहरे.”

‘मुसलमानों ने कभी नहीं रोका टोका’
नूर मोहम्मद का कहना था कि 2011 से आज तक वो अपने गाँव के इस मंदिर की देखरेख कर रहे हैं.

मालूम हो कि कश्मीर में चरमपंथ शुरू होने के बाद 1990 में कश्मीर से पंडितों ने पलायन किया और भारत के अलग-अलग शहरों में जाकर रहने लगे. उस समय लागरीपुरा कश्मीरी पंडितों के कुल 31 मकान थे.

वो बताते हैं कि उनके गाँव के मुसलमानों ने कभी भी उन्हें इस बात के लिए नहीं टोका कि वो मंदिर की देखरेख क्यों करते हैं?

उनका कहना था, “मुझे आज तक इस मंदिर की निगरानी करने में कोई मुश्किल नहीं आई. अपने पड़ोसी मुसलमानों ने हमेशा मेरा साथ दिया. बल्कि मैं ये कह सकता हूँ कि हम सब ने मिलकर मंदिर की सुरक्षा की और आज भी कर रहे हैं. मुझे किसी ने यह नहीं कहा कि आप मुसलमान होकर मंदिर क्यों जाते हैं?”

‘मेरे लिए मंदिर-मस्जिद ख़ुदा के घर हैं’
नूर मोहम्मद के मुताबिक़ उनके लिए मंदिर और मस्जिद एक ही जैसे हैं.

वो कहते हैं, “मेरे लिए मस्जिद और मंदिर जाना एक जैसा है. दोनों ही जगहें ख़ुदा के घर हैं. मैं मंदिर जाकर अगरबत्ती जलाता हूँ, पानी डालता हूँ, झाड़ू लगाता हूँ. मेरे मज़हब में ऐसा करने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. मंदिर की निगरानी के साथ-साथ मैं अपने मज़हब का भी पालन करता हूँ.”

नूर मोहम्मद बताते हैं कि वो इसके लिए ख़ुदा और अपने पंडित भाइयों के शुक्रगुज़ार हैं कि उन्हें इस काम के लिए चुना गया.

यह पूछने पर कि उनके दिमाग़ में मंदिर की निगरानी करने का ख़्याल कैसे आया, तो उनका कहना था, “मेरे दिमाग़ में इस बात को ख़ुदा ने ही डाला. मैं समझता हूँ कि यह एक तरह से मेरी ज़िम्मेदारी बनती थी कि मैं ऐसा करूं.” (bbc.com)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also
Close